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बकाया चुकाने पर ही मिलेगा बिजली का नया कनेक्शन

Last Updated- December 08, 2022 | 4:48 AM IST

पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम बनाम डीवीएस स्टील्स ऐंड एलॉयज के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने  इस नियम को वैध माना है।


जिसके तहत परिसर के नए मालिक को पुराने मालिक पर बिजली के बिल के बकाये का भुगतान करना होगा।  इस मामले में उत्तर प्रदेश बिजली बोर्ड की उत्तराधिकारी वितरण कंपनी ने इस बात पर जोर दिया कि डीवीएस कंपनी पहली कंपनी पर बकाये का भुगतान करे, उसके बाद ही बिजली का नया कनेक्शन मिल सकता है।

डीवीएस कंपनी ने इसके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की और न्यायालय ने उसके पक्ष में फैसला दिया।वितरण कंपनी ने इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, ‘वितरक ने जो बिजली की बकाया राशि के बारे में कहा है कि जब तक पुराना बिल चुका नहीं दिया जाता, तब तक नया कनेक्शन नहीं मिलना चाहिए, को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं किया जाएगा, तो हो सकता है कि उपभोक्ता डिफॉल्टर बनने की भी कोशिश करे।’

देर से अपील

अगर आयकर विभाग उच्च न्यायालय के किसी आदेश के खिलाफ कई साल तक अपील नहीं करता है तो क्या वह उसके बाद मामले से जुड़ा सवाल नहीं उठा सकता है? आयकर आयुक्त बनाम जेके चैरिटेबल ट्रस्ट के एक मामले में इसी सवाल पर उच्चतम न्यायालय का जवाब था, कि आयकर विभाग कई साल बाद भी किसी फैसले के खिलाफ  अपील कर सकता है।

कई साल तक अपील नहीं करने की वजह यह थी कि राशि बहुत छोटी थी और आदेश का प्रभाव बहुत बड़ा नहीं था। फैसले में कहा गया कि जरूरी मामलों में विभाग को अपील करने से नहीं रोका जा सकता है।

दावे की जांच

सर्वोच्च न्यायालय ने राजकोट में आयकर अपील ट्रिब्यूनल से कहा कि वह गुजरात सिद्धि सीमेंट लिमिटेड के दावे की फिर से जांच करे।

विदेशी विनिमय दर में उतार चढ़ाव के कारण संयंत्र और मशीनरी का खर्च बढ़ जाने से आयकर कानून की धारा 43 ए के तहत कंपनी को निवेश भत्ता दिया जाना चाहिए, ऐसा कंपनी ने दावा किया था। कर अधिकारियों ने कंपनी के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जिस संयंत्र और मशीनरी का इस्तेमाल किया गया था वे कई साल पहले लगाए गए थे।

अपील ट्रिब्यूनल और गुजरात उच्च न्यायालय ने कंपनी के दावे को स्वीकार कर लिया। तब आयकर आयुक्त ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। अदालत ने पुराने फैसले को दरकिनार कहते हुए कहा कि वास्तविक स्थिति क्या थी, इसकी जांच किसी भी अदालत ने नहीं की।

First Published - November 23, 2008 | 11:54 PM IST

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