केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने अगस्त 2008 में जारी एक अधिसूचना में यह निर्देश दिया है कि अगर केंद्र सरकार ने कर में राहत देने या दोहरे कराधान से बचने के लिए किसी विदेशी सरकार के साथ समझौता किया है तो भारत के किसी निवासी की आय पर अन्य देश में कर लगाया जा सकता है।
इस तरह की आय को आयकर कानून के तहत भारत में उसकी कर योग्य आय में शामिल किया जाएगा। इस अनुबंध में दोहरे कराधान को त्यागने या उसे हटाने के तरीके के अनुसार इसमें रियायत दी जाएगी।
दिनांक 28.08.2008 को जारी इस नोटिफिकेशन संख्या 91 के तहत निवासी की आय पर भी कर लगाया जा सकता है, अगर वह अपना कारोबार देश के बाहर कर रहा हो, और उस देश के साथ भारत ने दोहरे कराधान से बचने का समझौता किया हो।
इस तरह का आदमी इस प्रकार की आय को कर आरोपण के दायरे में इस तरह रख सकता है कि कर संधि के अनुसार वह रियायत का दावा कर सकता है। दूसरे शब्दों में, पहले चरण में आय को कर के दायरे में दिखाया जाना चाहिए और दूसरे चरण में कर संधि के मुताबिक कर में राहत दी जानी चाहिए।
अगर भारत के बाहर भी आय कर के दायरे में आती है, तो जांचकर्ता को इसे भारत में कुल आय पर लगने वाले कर के मद में शामिल करना चाहिए। इसके बाद ही किसी तरह की राहत पर विचार किया जाना चाहिए।
इस नोटिफिकेशन के उद्देश्य को समझ पाना मुश्किल है। ऐसा बहुत सारी रिपोर्ट में भी सामने आया है। विभाग ने पाया है कि बहुत सारी विदेशी कंपनियां जो भारत में क्रियाशील है, वे अपनी आय का ब्योरा नहीं देती है या देने में बहुत देर करती हैं। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि अगर वे अपनी आय का सही ब्योरा दें, तो आमदनी को सही तरीके से प्रस्तुत करने में आसानी होगी।
हालांकि जांचकर्ता के लिए यह जरूरी होना चाहिए कि वह उस आय को भी कुल आय में जोड़ दें, जिस पर कर नहीं लगाया जा रहा है। अन्य देशों में ऐसा ही होता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्य बात है कि कर संधि में जो नियम उल्लिखित हैं, उस पर घरेलू कानून हावी नहीं हो पाता है। इस तरह की संधियां अपने आप में एक संपूर्ण कानून का दस्तावेज है।
यह दो संप्रभु देशों के बीच का एक अनुबंध है और इसलिए यह घरेलू कानून से ऊपर है। जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने आजादी बचाओ आंदोलन (706 की 263 आईटीआर) में भी इस बात को माना था। कर संधि एक तरह से दो देशों के बीच कर के लेनदेन को लेकर किया गया मोलभाव है। इस प्रकार कर संधि अगर सर्वोच्च है, तो सीबीडीटी कैसे कर लगाने की बात कह सकती है।
दूसरे देशों के आयकर कानून के तहत इसे कुल आय में शामिल किया जाना अनिवार्य है। यह स्पष्ट नहीं है कि एक जांचकर्ता कैसे दोहरे कराधान से राहत दे पाएगा। आय का रिटर्न भरने के लिए इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग का फॉर्मेट तैयार किया है,उसमें भी दोहरे कराधान से राहत का कोई कॉलम नहीं दिया गया है। जबकि आज कल यह आवश्यक है कि आयकर रिटर्न इसी के जरिये भरा जाए।
ऐसा मालूम पड़ता है कि सीबीडीटी इस मामले में विदेशी उद्यमों पर यह दबाव देने की कोशिश कर रही है कि वे अपने आयकर रिटर्न में उस आय को भी शामिल करें जिन पर भारत के बाहर कर लगाया जा सकता है।
इसलिए आयकर कानून की धारा 90 (3) के तहत एक नोटिफिकेशन जारी किया गया , जिसमें यह जानने की जेहमत भी नहीं उठाई गई कि इस धारा के उपबंध क्या हैं, जिसमें इस परिकल्पना पर जोर दिया गया कि अनिवार्य प्रक्रिया को भी बंद करवा दिया जाए।
राजस्व में बिना कोई फायदा पहुंचाए, दिया गया नोटिफिकेशन बेवजह एक भ्रम पैदा करता है। इसलिए सीबीडीटी को अपने निर्णय पर फिर से विचार करना चाहिए , जो न सिर्फ अतार्किक दिखता है, बल्कि यह कानून के भी खिलाफ है।
(लेखक एस एस कोठारी मेहता एंड को. में पार्टनर है। )