हरियाणा रियल एस्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी (हरियाणा रेरा) ने हाल ही में एक ऐसे घर खरीदने वाले का रीफंड का अनुरोध ठुकरा दिया जिनका आवंटन किस्तें नहीं चुका पाने के कारण रद्द कर दिया गया था। खरीदा ने कुल राशि का 10 फीसदी से भी कम चुकाया था। ऐसे मामले इस जरूरत को सामने लाते हैं कि खरीदारों को आवंटन रद्द करने संबंधी नियमों को भलीभांति समझने के बाद ही किसी डेवलपर के साथ खरीद समझौता करना चाहिए।
Also Read: TCS ने वेतन बढ़ोतरी पर नहीं लिया फैसला, आर्थिक अनिश्चितता और डील में देरी बनी वजह
रेरा आवंटन रद्द किए जाने के प्रावधानों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं करता। किंग स्टब्स ऐंड कासिवा, एडवोकेट्स ऐंड अटॉर्नी के साझेदार अदनान सिद्दीकी कहते हैं, ‘बिल्डर-खरीदार समझौता (रेरा द्वारा तय स्वरूप में) ही रद्दीकरण अधिकारों और परिणामों को तय करता है।’ रेरा अनुच्छेद 18 के अधीन रीफंड की प्रक्रिया तब शुरू की जाती है जब देरी या डिफॉल्ट की स्थिति बनती है और धारा 19(4) के तहत समझौते का अनुपालन नहीं किया जाता है।
डेवलपर उस स्थिति में आवंटन रद्द करके जमा राशि जब्त कर सकता है जबकि खरीदार तीन महीनों तक किश्तें चुकाने में विफल रहे या फिर बार-बार कहे जाने पर भी समझौते पर हस्ताक्षर न करे। रेरा जहां जब्ती की कोई सीमा तय नहीं करता वहीं न्यायिक उदाहरण और हरियाणा रेरा जैसे प्राधिकारों के मुताबिक इसके लिए उचित समय दिया जाना चाहिए। सिद्दीकी कहते हैं, ‘आमतौर पर न्यायालयों द्वारा इसे कुल बिक्री मूल्य के 10 फीसदी तक सीमित रखा जाता है बशर्ते कि उच्च जब्ती पर सहमति नहीं बनी हो और वह उचित न हो।’ रीफंड की राशि आवंटन की शर्तों और निर्माण के स्तर पर निर्भर करती है।
कोलियर्स इंडिया के राष्ट्रीय निदेशक और शोध प्रमुख विमल नादर कहते हैं, ‘बुकिंग राशि के अलावा डेवलपर देरी वाले हिस्से पर लागू ब्याज भी काट सकता है।’डेवलपर मनमाने ढंग से फंड जब्त नहीं कर सकते भले ही कोई पंजीकृत समझौता न हो। खैतान ऐंड कंपनी में साझेदार हर्ष पारिख कहते हैं, ‘रेरा के अनुसार एक बार जब खरीदार कुल राशि का 10 फीसदी या उससे अधिक चुका देता है तो डेवलपर और खरीदार के बीच का समझौता पंजीकृत हो जाना चाहिए।’ सिद्दीकी कहते हैं कि बिना किसी समझौते के 10 फीसदी से अधिक राशि जब्त करने को रेरा या उपभोक्ता अदालत के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
कुछ परिस्थितियों में घर खरीदने वाले बुकिंग रद्द करने के अधिकारी होते हैं: परियोजना के पूरा होने में देरी, गलत बयानी, लेआउट में अवैध परिवर्तन, सांविधिक मंजूरियों का पालन न होना आदि। ओराम डेवलपमेंट्स के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक प्रदीप मिश्रा कहते हैं, ‘रेरा के अनुच्छेद 18 के तहत एक डेवलपर को ऐसे मामलों में राशि जब्त करने का अधिकार नहीं होता है। यह अनुच्छेद कहता है कि ब्याज के साथ पूरा रीफंड किया जाए।’ वह यह भी कहते हैं कि अगर समझौता होने के पहले बुकिंग कैंसिल की जाती है और ऐसा डेवलपर की कमी की वजह से होता है तो पूरी राशि लौटाई जानी चाहिए।
Also Read: सरकार के साथ समझौते के उल्लंघन से वेदांत को बड़ा जोखिम : वायसराय रिसर्च
अगर एक डेवलपर 45 दिन के भीतर रीफंड करने में विफल रहता है तो खरीदार मूल धन और ब्याज दोनों पाने का अधिकारी होता है। इसके लिए स्टेट बैंक की दर के साथ दो फीसदी अतिरिक्त राशि का भुगतान किया जाता है। एक्विलॉ में साझेदार सौम्या बनर्जी के मुताबिक, ‘निरंतर देरी होने पर खरीदार रेरा या अन्य सक्षम प्राधिकार के समक्ष शिकायत कर सकता है जो डेवलपर को निर्देश दे सकता है कि वह दंडस्वरूप ब्याज के साथ भुगतान करे और जहां लागू हो वहां मौद्रिक जुर्माना भी लगाए। अगर डेवलपर आदेश का पालन करने में विफल रहता है तो खरीदार को अदालत से क्रियान्वयन का आदेश जारी करवाना चाहिए।’
कुछ राज्यों के नियामक भू-राजस्व बकाया के रूप में रिकवरी की शुरुआत कर सकते हैं जिससे रीफंड की समय सीमा कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाए।
Also read: भारत ने इस्पात, एल्युमीनियम पर डब्ल्यूटीओ में जवाबी शुल्क के प्रस्ताव में किया संशोधन
अगर उचित वजह होने के बावजूद रीफंड देने से इनकार किया जाता है तो खरीदार रेरा और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 दोनों के तहत राहत मांग सकते हैं।
इंडिया लॉ एलएलपी की एसोसिएट पार्टनर श्वेता तिवारी कहती हैं, ‘रेरा ने खरीदारों अधिकार संपन्न बनाया है कि अगर डेवलपर डिफॉल्ट करता है तो वे समय पर ब्याज सहित रीफंड का दावा कर सकें और रेरा और उपभोक्ता कानूनों के तहत विधिक उपचार डेवलपर्स के गलत व्यवहार के विरुद्ध मजबूत प्रतिरोध का काम करते हैं।’