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बढ़ रहे हैं विवाद तो बढ़ाइए वैकल्पिक समाधान

Last Updated- December 06, 2022 | 12:03 AM IST

वाणिज्य, उद्योग और व्यापार में पिछले कुछ दशकों से काफी वृद्धि हुई है और यह सारी सीमाओं और सरहदों को पार कर गया है।


इसी बढ़ती मांग के चलते इससे जुड़े मुद्दे के निपटान के लिए न्यायिक अदालतों की भी जरूरत बढ़ती गई। चूंकि इससे जुड़े मामले इतने ज्यादा हो गए कि इसकी सुनवाई में काफी देरी भी होने लगी और इसकी जल्द से जल्द निपटारे के लिए इस तरह की अदालतों की मांग बढ़ती गई।


तकनीक के विकास से भी विवाद निपटान की प्रक्रिया और ज्यादा जटिल होती गई जिसमें बहु न्यायिक अधिकार क्षेत्र, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के निर्माण से दूर व्यापारिक गतिविधियां,मुक्त व्यापार नीतियों के तहत देश के आर्थिक विकास की परिकल्पना और बहुस्तरीय निवेश के समझौते के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय विवादों को निपटाने जैसी कई मुद्दों ने इसे और जटिल बना दिया।


एडीआर की गैर क्षेत्रीय प्रवृत्ति ने इसे और आकर्षक और प्रभावकारी बना दिया। वैसे भी इन मुद्दे पर विदेशी प्राधिकरणों के जरिये विवादों को निपटाने की प्रक्रिया हमेशा संदेह के घेरे में रही। इसके बावजूद इसमें लगने वाले ज्यादा समय, इसकी जटिलताएं और इसमें होने वाले अधिकाधिक खर्च ने इसे और ज्यादा अविश्वसनीय बना दिया।


लेकिन एडीआर को समर्थन मिलने के पीछे मुख्य वजह यह रही कि इसमें समय कम लगता है और प्रक्रिया प्रभावकारी है। आधुनिक व्यापार में लेनदेन में तकनीक की जटिलताएं और विषय वस्तु के मामले में काफी पेंच होता है। वैसे आज भी न्यायाधीशों की बेंच के जरिये इस मुद्दे को सुलझाना आज एक सामान्य प्रक्रिया है।
 
इस बात का अपना महत्व है कि अगर किसी मामले में ऐसे मध्यस्थ मौजूद हो जिसे उस विषय पर काफी पकड़ हो और वह निष्पक्ष हो। न्यायाधीशों को इस विवाद का ज्यादा ज्ञान नहीं होने के बावजूद इस तरह के मध्यस्थ रहने से काफी मदद मिलती है।


इसके बाद एक बार पैनल का चुनाव हो जाने के बाद इसे ही पूरे मामले की सुनवाई करनी पड़ती है। दूसरी तरफ जब कोर्ट की सुनवाई शुरू हो जाती है तो यह विभिन्न प्रक्रिया से गुजरती है और हर अलग अलग न्यायाधीश अपने अलग विचार प्रस्तुत करते हैं।


वैसे आदमी जो व्यापार के जोखिमों को अच्छी तरह समझते हैं और वे इस योग्य होते हैं कि इन चीजों को तकनीक और व्यापारिक भाषाओं से जोड़ सकें तो ऐसे लोगों के लिए एडीआर इस तरह के विवाद को सुलझाने की संभावना बना देते हैं।एडीआर, अन्य अदालतों की तुलना में इन विवादों की सुनवाई में काफी कम समय लेता है।


बैकलॉग और सुनवाई में होने वाली देरी पर तो किसी का वश नहीं चलता है लेकिन एडीआर इस प्रक्रिया को समय के प्रारूप में बांधकर  प्रक्रिया और अनुबंधों को अच्छे से अध्ययन कर विवाद को हल करने की कोशिश करता है।


वैसे एडीआर में भी इन विवादों को निपटाने में कम खर्च नहीं आता है लेकिन अन्य अदालतों की तुलना में यह खर्च कम होता है अगर इसकी तुलना समय में हो रहे बचत और फाइलिंग में लग रहे कम समय से करें।सुनवाई के दौरान यह बाध्यता रहती है कि यह अपीली प्राधिकरण में ही होगी लेकिन एडीआर के जरिये प्रक्रिया में काफी लचीलापन होता है और कानून के क्रियान्वयन और फोरम की प्रभुत्ता में काफी नरमी होता है।


एडीआर के तहत मुद्दई को यह सुविधा होती है कि वे इन विवादों को सुलझाने के लिए लचीले मानक तय करें जो विवादों के दस्तावेज नहीं होते हैं। इसकी प्रक्रिया को मुद्दई और मध्यस्थ की सुविधाओं के अनुसार तय किए जाते हैं लेकिन न्यायिक अदालतों में यह प्रक्रिया सिविल न्याय प्रक्रिया के तहत गुजरती है और इसमें पत्र, पेटेंट और प्रक्रिया की सारे कारकों को शामिल किया जाता है।


एडीआर विधियां निजी होती है। इन कार्यवाहियों में प्रेस कांफ्रेस में भाग लेना मुश्किल होता है। इसलिए ये कम लोकलुभावन वाली होती है। व्यापारिक सूचनाएं और इसी समान अन्य सूचनाओं को गुप्त बनाए रखने के लिए इन्हें वादी का प्रयास इन्हें लोगों की नजरों से दूर रखने का प्रयास रहता है। इसके साथ ही वादी इन्हें सार्वजनिक तर्क-वितर्क की सीमा में लाने से बचाने का भी प्रयास करता है।


वैसे तो ज्यादातर कोर्ट की कार्यवाही और रिकार्ड सार्वजनिक तौर पर खुले होते है। इनमें वादी के लिए किसी भी तरह की गोपनीयता की गांरटी नहीं होती है। दूसरी तरफ एडीआर के ज्यादातार केसों में निर्णय का आना निश्चित होता है। एडीआर का जो सबसे बड़ा नकारात्मक पक्ष यह है कि इनसे पारदर्शिता की कमी होती है।


एक वाद को निबटाने का अतिरिक्त गुणात्मक मैकेनिज्म है जो कोर्ट को उन स्थानों में निर्णायक की भूमिका अदा करने की आवश्यकता बताता है जहां एडीआर कार्यान्वित नहीं हो सकता है।

First Published - April 28, 2008 | 3:03 PM IST

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