कानून

मध्यस्थता फैसले बदल सकते हैं कोर्ट

अदालतें मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 और 37 के तहत मध्यस्थता फैसलों को संशोधित कर सकती हैं।

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- April 30, 2025 | 11:39 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने आज एक महत्त्वपूर्ण आदेश में कहा कि अदालतों के पास कुछ सीमाओं के साथ मध्यस्थता फैसलों को संशोधित करने की शक्ति है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति संजय कुमार, केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एजी मसीह ने एक के मुकाबले चार के बहुमत से फैसला सुनाया कि अदालतें मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 और 37 के तहत मध्यस्थता फैसलों को संशोधित कर सकती हैं।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मध्यस्थता निर्णयों को पूरी तरह निरस्त किए बिना फैसले में संशोधन केवल दुर्लभ मामलों में ही किया जाना चाहिए जैसे कि गणना संबंधी त्रुटियों को ठीक करते समय, ब्याज समायोजित करते समय, या अन्य साधारण बदलाव करते समय। पीठ ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में संविधान के अनुच्छेद 142 का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक ‘कोई भी आदेश’ पारित करने का अधिकार देता है। 

संविधान पीठ में शामिल न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन ने असहमति जताते हुए कहा कि अदालतें मध्यस्थता के फैसलों में बदलाव नहीं कर सकतीं। धारा 34 के तहत न्यायालय निर्णय को तब तक संशोधित नहीं कर सकता जब तक कि कानून द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकृत न किया जाए क्योंकि यह गुण-दोष की समीक्षा करने के समान है।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा, ‘धारा 34 के तहत अधिकार का प्रयोग करने वाली अदालतें मध्यस्थता फैसलों को बदल, परिवर्तित या संशोधित नहीं कर सकतीं क्योंकि यह मध्यस्थता नियम की बुनियाद पर चोट करती है।’ धारा 34 में मध्यस्थता फैसलों को चुनौती देने की व्यवस्था के बारे में बताया गया है जबकि धारा 37 में कौन से आदेश अपील योग्य हैं, उसका उल्लेख किया गया है।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने इस बात से भी असहमति जताई कि संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल फैसलों को संशोधित करने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसी शक्ति को मान्यता दी जाती है तो इससे मध्यस्थता मामले में अनिश्चितता पैदा होगी। हालांकि उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि लिपिकीय या टाइपिंग गलतियों को धारा 34 के तहत ठीक किया जा सकता है।

विशेषज्ञों ने कहा कि मध्यस्थता का विकल्प चुनने वाले पक्षों को मध्यस्थता अधिनियम के तहत हस्तक्षेप की आशंका से बचने के लिए अपना नजरिया बदलना होगा। लॉ फर्म कोचर ऐंड कंपनी में पार्टनर शिव सपरा ने कहा, ‘फैसले से यह पुष्टि होती है कि न्यायालय के पास कुछ परिस्थितियों के अधीन रहते हुए भी मध्यस्थता फैसले को संशोधित करने की शक्तियां हैं। इससे मध्यस्थता में पक्षकार स्वायत्तता के सिद्धांत पर प्रभाव पड़ना तय है।’

कानूनी फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर इंद्रनील डी देशमुख ने कहा कि बहुमत के फैसले ने फैसलों और मध्यस्थता प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर किया है।

कानूनी फर्म गांधी लॉ एसोसिएट्स के पार्टनर कुणाल व्यास ने कहा कि न्यायमूर्ति विश्वनाथन की असहमति तर्कसंगत थी मगर न्यायालयों द्वारा निर्णयों में संशोधन की सीमित गुंजाइश सही दिशा में उठाया गया कदम है।

सपरा ने कहा कि इस निर्णय का ओएनजीसी बनाम रिलायंस इंडस्ट्रीज के मध्यस्थता मामलों पर भी प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस वर्ष की शुरुआत में 2018 के अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता फैसले को पलट दिया था, जिसमें केजी बेसिन से संबंधित ओएनजीसी और रिलायंस मामले में मध्यस्थता अदालत ने मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस के पक्ष में फैसला सुनाया था।

First Published : April 30, 2025 | 11:06 PM IST