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शुल्क वसूली : उत्पादों की सही जानकारी जरूरी

Last Updated- December 08, 2022 | 9:03 AM IST

एक्रीडेटेड क्लाइंट्स प्रोग्राम (एसीपी) पेश किए जाने के बाद से ही आयातकों के दिमाग में एक नया डर बैठ गया है कि अगर वे उन उत्पादों का सही सही जिक्र नहीं करेंगे जिन पर शुल्क वसूला जाना है तो उन पर इसके लिए जुर्माना लगाया जा सकता है।


एसीपी प्रक्रिया के तहत आयातकों के माल की जांच बहुत कम समय में पूरी कर दी जाती है, बशर्ते वे माल को लेकर ठीक ठीक घोषणा कर दें।

एंट्री के बिलों की जांच विभाग बाद में करता है। एसीपी के तहत जरूरी है कि टैरिफ वर्गीकरण के साथ साथ शुल्क की दर भी सही सही लिखी जाये।

कई बार ऐसा होता है कि शुल्क की दर तो सही होती है पर जिन उत्पादों पर शुल्क वसूला जाना होता है उनकी सूचना ही गलत दी जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शुल्क दर तो समान होती है पर जिन उत्पादों पर शुल्क वसूला जाना होता है वे अलग अलग होते हैं।

उदाहरण के लिये कई ऐसी मशीनरी हैं जो अलग अलग शुल्क के दायरे में आने वाले उत्पाद वर्ग के तहत आती हैं पर इन पर समान दर से शुल्क वसूला जाता है। अब सवाल यह उठता है कि अगर केवल टैरिफ की जानकारी गलत दी गई हो तो क्या इसे भी गलत सूचना देने का अपराध माना जाये।

सामान्य प्रक्रिया के तहत आयातकों की जिम्मेदारी बस इतनी बनती है कि वे माल के बारे में जानकारी दें। उन्हें शुल्क दर के बारे में जानकारी नहीं देनी पड़ती है।

वे इन सब बिंदुओं का जिक्र करते भी हैं तो भी उनके खिलाफ गलत सूचना देने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। अदालतों का हमेशा से यह मानना रहा है कि शुल्क के लिए वर्गीकरण करना राजस्व विभाग की भी जिम्मेदारी है।

पर एसीपी प्रक्रिया के तहत हालात कुछ अलग हैं। यहां आयातकों का कस्टम हाउस के साथ माल के वर्गीकरण के लिये समझौता होता है। वे माल, टैरिफ उत्पाद और शुल्क दर की जानकारी देते हैं।

फिर वे इन सूचनाओं को कंप्यूटरीकृत प्रणाली ईडीआई (इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरफेस) के जरिये कस्टम हाउस के पास जमा कराते हैं। कस्टम हाउस में कंप्यूटर से बिल ऑफ एंट्री में आंकड़ों का मिलान किया जाता है। सिस्टम विभाग ने इन आंकड़ों को पहले ही कंप्यूटर में फीड कर दिया होता है।

अगर बिल ऑफ एंट्री को कंप्यूटर पास कर देता है, भले ही शुल्क चुकाने के पहले इसमें मूल्यांकनकर्ता के हस्ताक्षर न हों फिर भी ऐसा माना जाता है कि राजस्व विभाग ने इसे मंजूर कर लिया है। ऐसे में माल के वर्गीकरण की जिम्मेदारी तब भी राजस्व विभाग की ही होती है। कानूनी तौर पर वर्गीकरण की जिम्मेदारी राजस्व विभाग की ही होनी चाहिये।

एसीपी दस्तावेज में यह लिखा होता है कि शुल्क वर्गीकरण समेत सभी सूचनाएं सही सही दी जानी चाहिए, पर इसका मतलब यह नहीं होता है कि अगर शुल्क के दायरे में आने वाले उत्पादों की जानकारी गलत दी गई हो तो यह गलत सूचना देना माना जाये। यह व्यवस्था इसलिए होती है ताकि कंप्यूटर मूल्यांकनकर्ता के हस्तक्षेप के बिना दस्तावेज को पास कर दे।

कानूनी रूप से तो माल की ठीक ठीक जानकारी देना तो आयातक की जिम्मेदारी होती है और वर्गीकरण की जिम्मेदारी राजस्व विभाग की होती है। उच्चतम न्यायालय ने अब तक इस मामले में जितने फैसले सुनाये हैं वे कस्टम कानून की धारा 111 (एम) के तहत थे और मूल्यांकन और माल के वर्गीकरण से जुड़े हुये थे।

निष्कर्ष यही है कि चाहे परंपरागत प्रणाली हो या फिर एसीपी व्यवस्था, गलत सूचना देना माल की जानकारी देने से जुड़ा हो सकता है, शुल्क के दायरे में आने वाली वस्तुओं और शुल्क दर से नहीं।

अगर शुल्क दर की सही सूचना दी गई है तो सिर्फ इस आधार पर इसे गलत सूचना देने का अपराध नहीं बताया जा सकता कि टैरिफ की सूचना गलत दी गई है। इसलिये राजस्व विभाग से सहयोग की अपेक्षा की जा सकती है, इस मसले पर विरोध की अपेक्षा नहीं।

First Published - December 14, 2008 | 11:52 PM IST

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