सामान्यत:कंपनियां कर भुगतान के बाद होने वाले फायदे पर ही लाभांश देती हैं।
इस तरह, लाभांश देने वाली कंपनियां पहले अपने लाभ पर आयकर का भुगतान करती हैं, उसके बाद बचे हुए मुनाफे पर लाभांश देती हैं।ऐसे में जिस शेयधारक को जो लाभांश प्राप्त होता है वह उसी मुनाफे पर होता है जिस पर पहले कर अदा कर दिया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में जब शेयरधारक लाभांश प्राप्त करता है उसको फिर से उस पर आयकर चुकाना होता है। इस तरह देखा जा सकता है कि एक ही आय के लिए दो-दो बार कर चुकाना पड़ता है। कई देशों में लाभांश आय पर किसी भी तरह के कर का प्रावधान नहीं है जबकि कहीं-कहीं पर इसमें कर में रियायत दी जाती है।
भारत में आयकर की धारा 10(34)के तहत ऐसी कोई भी आय जो लाभांश के जरिये हुई हो (इसमें विदेशी कंपनी भी शामिल हैं) उसके लिए धारा 115-ओ के अंतर्गत लाभांश वितरण कर (डीडीटी)का भुगतान करना होता है। इसमें लाभांश की जो राशि घोषित की जाती है उसका 16.995 फीसदी कर के रूप में जमा करना होता है चाहे वह वितरित किया गया हो या फिर भुगतान किया गया हो।
यहां यह बात स्पष्ट कर दें कि भारत में कोई घरेलू कंपनी लाभांश देती है तो उसको कर नहीं देना होता है। लेकिन यदि वह लाभांश भारत से बाहर किसी कंपनी द्वारा लिया जाए तो उसको भारत में कर देना होता है। इसमें इस तरह का प्रावधान है कि कर में राहत उस स्थिति में नहीं मिल पाएगी जब लाभांश देने वाली कंपनी भारत से बाहर हो।
इस तरह के मामले में भी यदि प्रवासी भारतीय से जुड़ा लाभांश का मुद्दा है तो उसे सामान्य कर देना होगा लेकिन अप्रवासी भारतीयों और विदेशी कंपनियों के मामले में स्थिति एकदम उलट है। इनको 20 फीसदी अधिक कर देना होता है।
इस स्थिति में कई बातें इस पर भी निर्भर करती हैं कि जिस देश में कंपनी स्थित है, उस देश ने भारत के साथ दोहरे कर से बचने वाला समझौता कर रखा है या नहीं। इसमें कर की दर इसी समझौते के प्रावधानों के अंतर्गत तय होती है। मान लीजिए कोई लाभांश का भुगतान करने वाली कंपनी मॉरिशस में है, इस स्थिति में यदि कोई व्यक्ति भारत में लाभांश प्राप्त करता है तो उसको 5 प्रतिशत कर देना होगा और 15 प्रतिशत कर कर इस बात पर निर्भर करेगा कि मॉरिशस के साथ समझौते में क्या प्रावधान हैं?
कई समझौतों में विभिन्न मामलों के विश्लेषण में देखा गया है कि कुछ भी लाभांश कर का भुगतान नहीं करना पड़ा है। उदाहरण के तौर पर ग्रीस, लीबिया, यूनाइटेड अरब रिपब्लिक की किसी भी कंपनी से लाभांश प्राप्त करने में बिल्कुल भी कर नहीं देना होता है। इसी तरह फिनलैंड, मॉरिशस, कतर, स्लोवेनिया, जांबिया की कंपनियों से लाभांश प्राप्त करने में कर में रियायत दी जाती है।
कानूनी हलकों में हमेशा से इसी तरह की बातें होती रही हैं कि कर समझौतों में कर दाता के हितों का ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए। टॉरक्विज इन्वेस्टमेंट एंड फाइनैंस लिमिटेड के ताजा मामले के साथ इस तरह की चर्चाओं ने फिर से जोर पकड़ना शुरू कर दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 20 फरवरी 2008 को दिए अपने आदेश में कहा है कि यदि किसी समझौते के तहत डिविडेंट आय को कर में छूट मिली है तो उस पर आयकर की किसी भी धारा के तहत कर नहीं लगाया जा सकता है।
सर्वोच्च अदालत ने इस मामले का संज्ञान लेकर अपने आदेश में दोहरे कराधान के मुद्दे पर कहा कि भारत और मलेशिया सरकार के बीच जो समझौता हुआ है उसी के तहत छूट दी जानी चाहिए।
इसमें कहा गया है कि डीटीएए के 11 वें अनुच्छेद से स्पष्ट होता है कि जिन देशों से लाभांश आय प्राप्त होती है उन्हीं देशों से मिलने वाली आय पर ही लाभांश कर लगाना चाहिए।भारत में तेजी से निवेश संबंधी गतिविधियों के तेजी से बढ़ने की वजह से यह मुद्दा महत्त्वपूर्ण हो गया है।