पिछली दो कड़ियों में आपने पढ़ा कि गुड़गांव में किस कदर व्यावसायिक गतिविधियां तेज हो रही हैं और वहां तमाम बड़ी-बड़ी कंपनियां अपना मुख्यालय-कार्यालय खोलने को आतुर हैं।
इस कड़ी में पढ़ें, व्यावसायिक हब बनने से गुड़गांव में रिहाइश कैसे प्रभावित हो रही है?बड़े-बड़े मॉल, रिटेल शॉप और मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर…गुड़गांव की यही पहचान बनती जा रही है।
हालांकि इससे दिल्ली की भीड़-भाड़ से गुड़गांव में अपना रिहाइश बनाने वालों को थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यूं कहें कि उन्हें गुड़गांव में रहने के लिए पहले से कहीं ज्यादा रकम चुकानी पड़ रही है। दरअसल, तेजी से बन रहे व्यावसायिक केंद्रों की वजह से शहर में रिहाइश के लिए जगह कम पड़ती जा रही है।
डीएलएफ फेज-2 के निवासी लक्ष्मी गुप्ता कहती हैं कि गुड़गांव में जिस तेजी से कंपनियों के कार्यालय खुल रहे हैं, उससे यहां रहने वाले लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। दिनभर यातायात जाम की समस्या और घरों के कॉल सेंटर की गाड़ियां खड़ी रहने से चलना तक दूभर हो गया है। इसके साथ ही बिजली और जलसंकट की समस्या भी झेलनी पड़ती है सो अलग।
साइबर सिटी के आस-पास बने अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों की शिकायत है कि अनियोजित तरीके से बिल्डिंग-कॉम्प्लेक्सों के निर्माण से लोगों को जीना मुहाल हो गया है। इसके साथ ही सड़क के किनारे गाड़ियां खड़ी रहने से पांच मिनट की दूरी तय करने में 45 मिनट लग जाता है।
जेडब्ल्यूटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और एग्जिक्यूटिव प्लानिंग डायरेक्टर अंकित मलिक कहते हैं कि हाइवे बनने से पहले साइबर सिटी से उद्योग विहार तक पहुंचने में 50 मिनट से एक घंटे का समय लग जाता था। लोगों का कहना है कि राज्य सरकार शहर के समुचित विकास और आधारभूत ढांचे के विकास पर ध्यान नहीं दे रही है। हालांकि डीएलएफ जैसे बडे ड़ेवलपर्स पर यह दबाव है कि वे स्थिति को समझें और अपने स्तर से समस्याओं का निदान करने की पहल करें।