अमृतसर से करीब 35 किलोमीटर दूर अटारी-वाघा बॉर्डर से सटे नो-मैन्स लैंड से पहले बीएसएफ-बीओपी (बॉर्डर ऑब्जर्वेशन पोस्ट) की आखिरी चौकी पर स्मारक पुल मोरन मौजूद है। उसे स्थानीय लोग पुल कंजरी (नृत्य करने वाली लड़की) भी कहते हैं। वह एक पुल और स्मारक है जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने रावी नदी की नहर पर बनवाया था। यह गांव कभी व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था क्योंकि अमृतसर और लाहौर के बीच में होने के कारण उसकी काफी अहमियत थी। इस गांव को 19वीं सदी की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह और कश्मीर की एक नर्तकी मोरन (पंजाबी में मोर) के बीच प्रेम कहानी से भी जाना जाता है। एक दिन नृत्य करने के लिए बारादरी (मंडप) की ओर जाते समय मोरन नहर (तब तक वहां कोई पुल नहीं था) में अपनी चांदी की चप्पल खो बैठी।
इस घटना से दु:खी होकर मोरन ने नृत्य करने से इनकार कर दिया। जब रणजीत सिंह को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने नहर पर पुल बनाने का आदेश दिया। साल 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान यह पुल नष्ट हो गया था, लेकिन उसके अवशेष अभी भी मौजूद हैं।
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पुल बनवाए जाने के दो सदी से अधिक समय बाद भी इस गांव का पाकिस्तान से संपर्क खत्म नहीं हुआ है। अटारी-वाघा बॉर्डर के समीप होने के कारण यहां के ग्रामीण मुख्य रूप से पर्यटन से जुड़े हैं। मगर भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर झड़प शुरू होने के दो सप्ताह बाद और संघर्ष विराम पर बनी सहमति के कुछ दिनों बाद भी पुल मोरन एवं अन्य सीमावर्ती गांवों में स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है। हालांकि पिछले दो दिनों से कुछ पर्यटकों के आने की खबर है, लेकिन वहां के लोगों की कमाई को तगड़ा झटका लगा है।
स्थानीय निवासी 70 वर्षीय हरपाल चीमा ने कहा कि उन्होंने पुल मोरन में यह तीसरा संघर्ष देखा है। उन्होंने कहा, ‘हम 1965 के युद्ध के बाद यहां आ गए क्योंकि मेरे पिता को रियायती दरों पर जमीन मिली थी। नदी के पास होने के कारण यहां की जमीन उपजाऊ है। मैं 1971 के युद्ध और करगिल युद्ध के दौरान यहीं रहा। यहां कुछ हिस्सों में 1999 में खदानें मिली थीं। तब भी हम यहां से नहीं गए। अब यहां से जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।’
चीमा ने कहा, ‘हमने महिलाओं और बच्चों को भेज दिया है। वे अब तक वापस नहीं आए हैं क्योंकि उनके पास करने के लिए कुछ भी नहीं है। हमारे लिए आजीविका का कोई साधन नहीं है। युद्ध जैसी स्थिति में उसके दायरे में रहने वाले लोग ही युद्ध के नतीजों को समझ सकते हैं। हमें उम्मीद है कि समय के साथ हालात बेहतर हो जाएंगे।’
अटारी-वाघा बॉर्डर पर व्यापार बंद होने के कारण लोगों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर प्रभावितों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का आग्रह किया है। पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद करने के सरकार के फैसले का समर्थन करते हुए एक दुकानदार ने कहा, ‘यहां के लोग भारी कर्ज तले दबे हैं और वे बुनियादी सुविधाएं भी नहीं जुटा पा रहे हैं। मेरी दुकान का किराया 10,000 रुपये प्रति माह है। हालात सामान्य होने पर हम किराया देने के साथ-साथ अपना गुजारा भी कर लेते हैं, लेकिन पिछले 20 दिनों से हमें कोई आमदनी नहीं हुई है।’
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में सामान्य स्थिति बहाल होने तक प्रभावितों के बैंक खाते में मासिक वित्तीय सहायता हस्तांतरित किए जाने की मांग की गई है। उनका मानना है कि इस क्षेत्र के लोगों को 12,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
अमृतसर के हेरिटेज स्ट्रीट में पिछले दो सप्ताह में पहली बार शनिवार को सामान्य स्थिति बहाल हो पाई। शहर के पुराने इलाके में करीब 20 फीसदी होटलों में बुकिंग शुरू हो गई। इन होटलों के किराये में भी 50 फीसदी तक की गिरावट आई है। स्वर्ण मंदिर के पास फुलकारी दुकान के मालिकों ने पिछले कुछ दिनों से कोई स्टॉक नहीं लिया है क्योंकि बिक्री न होने के कारण वे पुराने स्टॉक को ही नहीं खपा पा रहे हैं।
खबरों से पता चलता है कि पर्यटन में जबरदस्त गिरावट आई है। स्वर्ण मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद करीब 70 फीसदी घट चुकी है। आम तौर पर स्वर्ण मंदिर में रोजाना 1 लाख से 1.25 लाख श्रद्धालु आते हैं और विशेष अवसरों पर यह संख्या दोगुनी तक बढ़ जाती है। मगर मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए एसजीपीसी द्वारा संचालित सरायों में 80 फीसदी से अधिक बुकिंग रद्द कर दी गई हैं।
एक दुकानदार ने कहा, ‘व्यापार को सामान्य होने में 3 से 4 महीने लग जाएंगे। हमारी आय का मुख्य स्रोत अंतरराष्ट्रीय पर्यटक थे। मगर हवाई अड्डा बंद होने के कारण कुछ समय तक कोई विदेशी पर्यटक यहां नहीं आया। अब जो भीड़ दिख रही है वह स्थानीय लोगों की है। हालांकि यह एक शुरुआत है, लेकिन अगले कुछ महीने हमारे लिए काफी चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं। स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां होने से भी पर्यटन को बढ़ावा मिलता है लेकिन इस बार हमें सितंबर तक कोई खास उम्मीद नहीं है।’
पुराने शहर के एक होटल कारोबारी ने कहा, ‘पाकिस्तान सीमा से सटे होने के कारण अमृतसर का होटल उद्योग काफी संवेदनशील है। वहां कुछ भी होने पर सबसे पहले हमें ही नुकसान उठाना पड़ता है। पहलगाम हमले के बाद सीमा पर तनाव बढ़ने से पहले ही लोगों ने बुकिंग कैंसिल करना शुरू कर दिया था।’
फिरोजपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर खाई फेम की गांव में लोगों ने बताया कि युद्ध विराम की घोषणा होने के कुछ दिनों बाद ही हथियार और ड्रग्स ले जाने वाले ड्रोन फिर से दिखने लगे हैं। ऐसा पहले भी होता रहा है लेकिन अब ड्रोन को देखकर ग्रामीणों में दहशत फैल जाती है।
गांव के ही रहने वाले हरचरण सिंह ने कहा, ‘युद्ध विराम के दिन एक ड्रोन गिरा था। हमने सरकार के आदेश के अनुसार अपनी लाइटें बंद कर दी थीं। तीन लोगों का एक परिवार मद्धिम रोशनी में खाना बना रहा था। तीनों लोग, उनकी ऑल्टो कार एवं अन्य सामान जल गए। महिला की मौत हो गई। शायद ड्रोन पर लगे इन्फ्रारेड ने रोशनी को पहचान लिया था।’
उन्होंने कहा, ‘हम कहां जा सकते हैं? हमारे घर पाकिस्तान सीमा से महज 6-7 किलोमीटर दूर हैं। अगर वे काफी दूर की जगहों को निशाना बना सकते हैं तो हमारे घरों तक पहुंचना उनके लिए मुश्किल नहीं होगा। हमने महिलाओं और बच्चों को भेज दिया लेकिन हम सेना का साथा देने के लिए यहीं इंतजार कर रहे हैं।’