facebookmetapixel
शेयर बाजार में तीसरे दिन तेजी; सेंसेक्स 595 अंक चढ़ा, निफ्टी 25,850 अंक के पारGroww IPO की धमाकेदार लिस्टिंग! अब करें Profit Booking या Hold?Gold में फिर आने वाली है जोरदार तेजी! जानिए ब्रोकरेज ने क्यों कहा?सेबी चीफ और टॉप अफसरों को अपनी संपत्ति और कर्ज का सार्वजनिक खुलासा करना चाहिए, समिति ने दिया सुझावKotak Neo का बड़ा धमाका! सभी डिजिटल प्लान पर ₹0 ब्रोकरेज, रिटेल ट्रेडर्स की बल्ले-बल्लेभारी बारिश और चक्रवात मोंथा से कपास उत्पादन 2% घटने का अनुमान, आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की उम्मीदSpicejet Q2FY26 results: घाटा बढ़कर ₹635 करोड़ हुआ, एयरलाइन को FY26 की दूसरी छमाही में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीदRetail Inflation: खुदरा महंगाई अक्टूबर में घटकर कई साल के निचले स्तर 0.25% पर आई, GST कटौती का मिला फायदाGold ETFs में इनफ्लो 7% घटकर ₹7,743 करोड़ पर आया, क्या कम हो रही हैं निवेशकों की दिलचस्पी?चार्ट्स दे रहे ब्रेकआउट सिग्नल! ये 5 Midcap Stocks बना सकते हैं 22% तक का प्रॉफिट

खतरे में है जूट की बोरियों का बाजार

Last Updated- December 05, 2022 | 4:49 PM IST

जूट उद्योग आजकल एक नई मुश्किल से जूझ रहा है। दरअसल जूट का एक परंपरागत बाजार खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है।


 इस साल आलू की पैकेजिंग के लिए बड़ी तादाद में जूट के बजाय लेनो बैग (प्लास्टिक बैग जैसा) का इस्तेमाल किया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल कोल्ड स्टोरेज असोसिएशन के अनुमानों के मुताबिक, इस बार आलू की पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 10 करोड़ बोरियों में 6 करोड़ बोरियां प्लास्टिक की होंगी।


 पश्चिम बंगाल कोल्ड स्टोरेज असोसिएशन के उपाध्यक्ष पतित पावन डे ने बताया कि इस साल बाजार लेनो बोरियों से भरा पड़ा है। उनके मुताबिक, स्थानीय निर्माताओं के अलावा अहमदाबाद, दिल्ली और मुंबई से भी ऐसी बोरियों की भारी तादाद में सप्लाई हो रही है।


 लेनो बोरियों के लोकप्रिय होने के बारे में उनका कहना है कि एक खास समय के बाद जूट की बोरियों में आलू खराब होने लगता है। दरअसल जूट में नमी सोखने की क्षमता होती है। लेनो बैग में इस तरह का कोई खतरा नहीं होता है। इसके अलावा इन बोरियों की कीमत भी 2 रुपये से कम पड़ती है, जबकि जूट की बोरियां लगभग 10 रुपये में आती हैं।


पिछले साल आलू की फसल तैयार होने के मौसम में जूट मिलों में हड़ताल थी और इसके मद्देनजर बड़े पैमाने पर लेनो वाली बोरियों का इस्तेमाल शुरू हुआ था। पिछले साल राज्य के कोल्ड स्टोरेजों में इस्तेमाल की गई 8 करोड़ आलू की बोरियों में 3 करोड़ बोरियां लेनो वाली थीं।इंडियन जूट मिल असोसिएशन (आईजीएमए) के चेयरमैन संजीव कजारिया भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि जूट अपना परंपरागत बाजार खोता जा रहा है।


कजारिया कहते हैं कि प्लास्टिक इंडस्ट्री हमेशा से आलू पैकेजिंग बाजार पर कब्जा जमाने की फिराक में थी और पिछले साल जूट मिलों में हुई हड़ताल ने उन्हें सुनहरा मौका प्रदान कर दिया।


 उन्होंने कहा कि हालांकि किसानों को यह समझना चाहिए कि जूट जांची-परखी पैकेजिंग सामग्री है और उन्हें इस पर भरोसा करना चाहिए। कजारिया ने बताया कि जूट असोसिएशन ने इस सिलसिले में हाल में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुध्ददेव भट्टाचार्य को पत्र भी लिखा है। इसमें किसानों को जूट बोरियों का इस्तेमाल करने के लिए राजी करने का अनुरोध किया गया है।


भारत सरकार के जूट कमिश्नर बिनोद किप्सोट्टा भी मानते हैं कि जूट उद्योग धीरे-धीरे अपना बाजार खोता जा रहा है। उनके मुताबिक, अगर यह उद्योग सस्ते विकल्प मुहैया नहीं कराता है तो इसके लिए अस्तित्व बचाना मुश्किल हो जाएगा।

First Published - March 20, 2008 | 11:10 PM IST

संबंधित पोस्ट