महामारी  से प्रभावित एक देश के जीवन रक्षक प्रणाली बनाने में आत्मनिर्भर बनने की  पहल, देश की मेक इन इंडिया परियोजना की सबसे बड़ी सफलता हो सकती है लेकिन  अब यह सफलता कई विवादों में घिर गई है। वेंटिलेटर की कम लागत विशेषकर छोटे  अस्पतालों के लिए एक वरदान के तौर पर आई, लेकिन गुणवत्ता एवं सुरक्षा के  सवाल ने स्थानीय स्तर पर निर्मित वेंटिलेटर के उपयोग पर गंभीर चिंताएं जताई  हैं। मुंबई के जेजे अस्पताल एवं सेंट जॉर्ज अस्पताल आदि अस्पतालों से करीब  100 वेंटिलेटर लौटाए गए और कहा गया कि ये वेंटिलेटर कोरोना के गंभीर  रोगियों के लिए ऑक्सीजन के स्तर को आवश्यक मानकों तक बढ़ाने में असफल रहे।  ये वेंटिलेटर मारुति सुजूकी के सहयोग से एक स्टार्टअप ऐगवा द्वारा बनाए गए  थे। हालांकि उद्योग के कई लोगों ने इस आलोचना को घरेलू उत्पाद की जल्दबादी  भरी आलोचना कहा है। कोरोना संकट के समय ब्रिटेन के बाजार के लिए 11,000 से  ज्यादा वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनी बीपीएल मेडिकल के मुख्य कार्याधिकारी  सुनील खुराना ने कहा, ‘वेंटिलेटर उच्च परिशुद्धता वाला एक उत्पाद है और एक  आदर्श वेंटिलेटर उत्पाद को विकसित करने में बहुत समय लगता है … इतने कम  समय में इन निर्माताओं ने अच्छा काम किया है।’
लगभग  आठ महीने पहले उजाला सिग्नस हेल्थकेयर ने ऐगवा के कुछ वेंटिलेटर को मान्य  किया था और कंपनी को सुधार के लिए जरूरी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने पाया  कि ये वेंटिलेटर घरेलू उपयोग, ऐंबुलेंस और कम गंभीर रोगियों के लिए बेहतर  हैं लेकिन गंभीर मरीजों के लिए इसमें कुछ सुधार करने की आवश्यकता है। उजाला  सिग्नस हेल्थकेयर के संस्थापक एवं निदेशक डॉ. शुचिन बजाज का मानना है कि  ऐगवा ने अच्छी शुरुआत की है। वह कहते हैं, ‘बेहतरीन प्रदर्शन की चाह में  कुछ अच्छा भी न करना हम सबने सुना है। अच्छा यह है कि ये सस्ता है और बहुत  ही आसान प्लेटफॉर्म पर काम कर सकता है। छोटे शहरों में कम कीमत वाले उपायों  पर काम करने वाली हमारी जैसी कंपनियों के लिए यह एक शानदार शुरुआत है।’
ऐगवा  वेंटिलेटर के बेसिक मॉडल की कीमत करीब 1.5 लाख रुपये है। इसकी तुलना में  एक आयातित वेंटिलेटर की कीमत लगभग 10-15 लाख रुपये होती है। विशेषज्ञों का  कहना है कि गंभीर रोगियों के लिए ऐगवा वेंटिलेटर पर्याप्त नहीं हो सकते  लेकिन उनका उपयोग कम गंभीर रोगियों के लिए किया जा सकता है और अगर इनका  घरेलू उपयोग संभव होता है तो इससे अस्पतालों में उनके लिए जगह खाली हो   सकती है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की सबसे अधिक आवश्यकता है। बजाज  कहते हैं, ‘इस तरह के किसी अन्य वेंटिलेटर के मुकाबले इसकी कीमत उसका 10वां  हिस्सा है। अत: निश्चत तौर पर इसमें वे सभी सुविधाएं नहीं होंगी। यह आई  फोन नहीं है लेकिन निश्चित ही ओप्पो की तरह है, जिससे आप काफी कुछ कर सकते  हैं।’ भारत में जब कोरोना के मरीजों की संख्या में तेजी आनी शुरू हुई तो  यहां वेंटिलेटर बनाने की कुल क्षमता मार्च में 300 वेंटिलेटर के मुकाबले एक  माह में बढ़कर 30,000 इकाई हो गई। मई के मध्य में सरकार ने ‘मेड इन  इंडिया’ वेंटिलेटर के लिए पीएम केयर्स फंड से 2,000 करोड़ रुपये आवंटित  किए।
हालांकि, कोरोना रोगियों  में से बहुत कम को वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है, इसलिए सरकार ने अब और  वेंटिलेटर खरीदने बंद कर दिए हैं। वेंटिलेटर निर्माण के लिए निजी क्षेत्र  में भी बहुत सी अतिरिक्त क्षमता उपलब्ध है। मिसाल के तौर पर, फोर्टिस  अस्पतालों में 662 कोविड मरीज हैं, जिनमें से केवल 26 वेंटिलेटर पर हैं।  डॉक्टर कोरोना मरीजों के इलाज के लिए ऑक्सीजन मास्क तथा उच्च सीमा तक  ऑक्सीजन प्रवाह वाले वेंटिलेटर का उपयोग कर रहे हैं। फोर्टिस हेल्थकेयर में  प्रमुख (मेडिकल ऑपरेशंस ग्रुप) डॉ. बी. केशव राव ने कहा, ‘हम एक तृतीयक  देखभाल अस्पताल हैं इसलिए जो हमारे पास अक्सर काफी बीमार मरीज आते हैं।  मार्च में जो वेंटिलेटर की कमी का मुद्दा उठाया जा रहा था, अब वह वास्तव  में कोई मुद्दा नहीं रह गया है।’
हालांकि  इस बात की संभावना बहुत कम है कि वेंटिलेटर की मांग जल्द ही बढ़ेगी लेकिन  चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि युद्धस्तर पर स्वास्थ्य के  बुनियादी ढांचे में वृद्धि होना महामारी का एक सकारात्मक पक्ष रहा। भारत की  मांग पूरी होने के साथ ही निर्माता उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें निर्यात  की अनुमति दी जाएगी। देश की सबसे बड़ी यात्री कार निर्माता मारुति सुजूकी  इंडिया के अध्यक्ष आरसी भार्गव को लगाता है कि अगर अब निर्यात करने की  अनुमति दी जाती है, तो यह ‘मेक इन इंडिया’ के लिए भारत की सबसे बड़ी सफल  कहानियों में से एक हो सकती है।
उन्होंने  कहा कि पीपीई एवं मास्क के विपरीत, इन उन्नत मशीनों के लिए निरंतर मांग  नहीं रहती है। इसलिए, पिछले दो महीनों में क्षमता निर्माण करने वाले  स्थानीय निर्माताओं को अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जाने की अनुमति दी  जानी चाहिए।
भार्गव ने कहा,  ‘यह उनके लिए सीखने का बेहतर अवसर भी होगा क्योंकि वे अपने मशीनों को अपने  अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों से मिले निर्देशों के अनुसार उन्नत कर सकते हैं।  एशिया, अफ्रीका, पश्चिम एशिया आदि में एक बड़ी बाजार संभावना हो सकती है।’
 गुणवत्ता
हालांकि,  ऐगवा ने भेजे गए सवालों का उत्तर नहीं दिया लेकिन उद्योग के एक सूत्र ने  कहा, ‘यहां मुनाफाखोरी या कम मानक वाले वेंटिलेटर की आपूर्ति करने जैसा कोई  सवाल ही नहीं है।’ उन्होंने कहा कि कंपनी पिछले 2-3 वर्षों से इन  वेंटिलेटर को बना रही थी। उन्होंने कहा, ‘वे एक महीने में कुछ सौ मशीनें  बनाते थे, और पिछले कुछ महीनों में उन्होंने इसे बढ़ाकर लगभग 10,000 मशीन  प्रति माह तक किया है।’
चिकित्सा  क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों का कहना है कि मरीजों का विवरण दर्ज करने वाले  एक लैपटॉप से लेकर ग्लूकोमीटर, थर्मामीटर, अल्ट्रासाउंड मशीनें सहित  अस्पतालों में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उपकरण भारत में नहीं बनाए जाते  हैं जिससे ये उत्पाद काफी महंगे होते हैं।  स्कैनरे टेक्नोलॉजीज के  संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक विश्वप्रसाद अल्वा ने कहा कि कोरोना से पहले  देश में केवल 10,000 वेंटिलेटर की मांग होती थी और घरेलू बाजार होते हुए भी  इनमें से 9,000 वेंटिलेटर बाहर से आयात किए जाते थे। उन्होंने बताया कि  उनके वेंटिलेटर यूरोप में बेचे जाते हैं और इन सभी वर्षों में एक भी शिकायत  सामने नहीं आई है। अल्वा ने दावा किया कि खराब प्रदर्शन का आरोप लगाने  वाले कुछ अस्पतालों ने मुद्दों को मिला दिया है। उन्होंने कहा, ‘एक अस्पताल  में ट्रक ने तीन दिनों तक इंतजार किया क्योंकि इन मशीनों की डिलिवरी लेने  के लिए कोई चिकित्सक उपलब्ध नहीं था। तब उन्होंने बाई-पैप मोड जैसे मुद्दों  को उठाया। उनमें यह मोड उपलब्ध है जिसका नाम बदला गया है।’
उद्योग  ने यह भी आरोप लगाया कि ऑर्डर देने के बाद भी सरकार ने विशिष्टताओं तथा  मानकों में बदलाव किया। 50,000 वेंटिलेटरों के ऑर्डर में से लगभग 30,000 को  स्कैनरे द्वारा, 10,000 ऐगवा द्वारा और शेष को आंध्रा मेड टेक जोन की तीन  कंपनियों द्वारा पूरा कर लिया गया था। एक स्थानीय निर्माता ने कहा,  ‘देशभक्ति के माहौल को देखते हुए कई स्थानीय विनिर्माता सामने आए लेकिन अब  वे परेशानी महसूस कर रहे हैं।’ उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि  अब मशीनों के बजाय लोगों को प्रशिक्षित करने पर निवेश करना चाहिए, जिससे  उच्च गुणवत्ता वाली मशीनों का निर्माण किया जा सके।