दिव्यांगों के हक के लिए काम करने वाले सक्रिय कार्यकर्ताओं ने इस महीने की शुरुआत में एक दिव्यांग बालक के साथ हुए बरताव के लिए इंडिगो एयरलाइंस की काफी निंदा की। दिव्यांगों का यह संघर्ष रोजगार के मुद्दे से भी जुड़ा हुआ है। प्रीति मोंगा को आजकल महामारी के बाद नौकरी ढूंढ रहे दिव्यांगों के खूब फोन आ रहे हैं।
हालांकि दिव्यांगों के साथ काम करने वाले संगठन सिल्वर लाइनिंग्स ट्रस्ट की संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) मोंगा ने कई साल पहले से ही अपना पूरा ध्यान शिक्षा के बजाय प्लेसमेंट पर दे दिया है। वह इसे दिव्यांग लोगों में बढ़ती बेरोजगारी के संकेत के तौर पर देखती हैं।
कोविड-19 महामारी के बाद कई लोग बेरोजगार हुए हैं जिससे रोजगार के कम मौकों के बीच प्रतिस्पद्र्धा और बढ़ी है। उनके मुताबिक आजीविका का साधन ढूंढ रहे दिव्यांग लोगों के लिए स्थिति और खराब हुई है। उन्होंने कहा, ‘महामारी के बाद यह स्थिति और मुश्किल हो गई है।’
नौकरियों में छंटनी और आर्थिक उथल-पुथल से दिव्यांगों की आजीविका पर भी असर पड़ रहा है। एक गैर-लाभकारी संस्थान, दिव्यांगजन के लिए राष्ट्रीय रोजगार संवर्धन केंद्र (एनसीपीईडीपी) के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने कहा, ‘लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं।’ उनका कहना है कि कर्मचारी की तरह काम करने वाले लोगों के अलावा उन्होंने वैसे मामले भी देखे जहां अपना काम करने वाले लोगों की आजीविका पर भी असर पड़ा है।
दिव्यांग समुदाय के लिए रोजगार की स्थिति पहले से ही औसत से भी ज्यादा खराब है। दिव्यांग जनों में प्रत्येक 100 लोगों में से केवल 24 लोग ही काम कर रहे थे या काम की तलाश में थे। 76वें चरण के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) का ही हिस्सा रहे दिव्यांगजन के सर्वेक्षण (जुलाई-दिसंबर 2018) में इस कार्यबल भागीदारी दर का अंदाजा मिला। सामयिक कार्यबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) की 2018-19 की सालाना रिपोर्ट से भारत के लिए आंकड़े मिले। यह दिव्यांगजन के आंकड़ों से दोगुना है।
रोजगार की कम दर की पुष्टि अन्य डेटा भी करते हैं। सार्वजनिक उद्यम सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2019-20 में सरकारी कंपनियों में उन्हें करीब 1.2 फीसदी नौकरियां मिलीं। देश की बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों के खुलासे का बिज़नेस स्टैंडर्ड ने विश्लेषण किया जिससे अंदाजा मिलता है कि वित्त वर्ष 2019 में नौकरियों में दिव्यांगजनों की हिस्सेदारी 0.5 फीसदी थी।
इसके अलावा शिक्षा की कमी और प्रशिक्षण की वजह से भी दिव्यांग आबादी पर असर पड़ता है। एनएसएस की रिपोर्ट के मुताबिक देश की 74.04 साक्षर आबादी के मुकाबले दिव्यांग आबादी का केवल 52.2 फीसदी हिस्सा ही साक्षर था। हालांकि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र भी है कि 19.3 फीसदी ने माध्यमिक स्तर या उससे ऊंचे स्तर की शिक्षा हासिल की है। इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के मुताबिक, कई लोग इसके बाद भी नौकरी पाने में सक्षम नहीं हैं।
इसका अर्थ यह हुआ कि इस समुदाय की अधिकांश आबादी स्वरोजगार के भरोसे हैं। इसमें दिव्यांग समुदाय द्वारा किए जाने वाले 59.7 फीसदी काम का योगदान है जबकि 25.3 फीसदी अस्थायी कामगार हैं। केवल 15 फीसदी लोगों को नियमित वेतन मिलता है।
एनसीपीईडीपी के अरमान अली का कहना है कि कंपनियां दिव्यांग जनों को नौकरी के बराबर मौके देकर मदद कर सकती हैं। वे कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के बलबूते दिव्यांग आबादी को नौकरी देने के साथ ही प्रशिक्षण दे सकते हैं। इसके बाद वे बिना किसी पक्षपात के उपलब्ध नौकरियों के लिए कोशिश करने के मौके दे सकते हैं। भर्ती किए जाने वाले दिव्यांगजनों को काम के समय को लचीला बनाने के साथ ही उन्हें कार्यक्षेत्र में उभरने का मौका देकर मदद की जा सकती है। सरकार और नीति निर्माता उद्यमशीलता को प्रोत्साहित कर मदद दे सकते हैं।