कृषि कानूनों के खिलाफ बीते आठ महीनों से दिल्ली की सीमा पर डेरा डाले किसान अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज करेंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने सोमवार को राजधानी लखनऊ में अपने मिशन उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड का एलान किया है।
मोर्चे के मुताबिक आगामी 5 सितंबर को मुज फरनगर में महारैली से आंदोलन की धमाकेदार शुरुआत होगी। इसके बाद सभी मंडल मु यालयों पर महापंचायत का आयोजन होगा। इस आंदोलन में तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने और एमएसपी की गारंटी के साथ प्रदेश के मुद्दे भी उठेंगे।
सोमवार को राजधानी में भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत, जय किसान आंदोलन के योगेंद्र यादव, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के शिवकुमार कक्का, जगजीत सिंह दल्लेवाल और ऑल इंडिया किसान मजदूर सभा के डॉ. आशीष मित्तल ने बताया कि ऐतिहासिक किसान आंदोलन आज आठ माह पूरे कर चुका है। आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शुरू करने का फैसला किया है।
इस मिशन के तहत संयुक्त किसान मोर्चा ने आह्वान किया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सभी टोल प्लाजा को मुफ्त किया जाए, अदाणी और अंबानी के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएं और भाजपा व उसके सहयोगी दलों के कार्यक्रमों का विरोध और उनके नेताओं का बहिष्कार किया जाए। इस मिशन को कार्य रूप देने के लिए पूरे प्रदेश में बैठकों, यात्राओं और रैलियों का सिलसिला शुरू हो रहा है।
किसान नेताओं के मुताबिक आंदोलन के पहले चरण में प्रदेशों के आंदोलन में सक्रिय संगठनों के साथ संपर्क व समन्वय स्थापित किया जाएगा, जबकि दूसरे चरण में मंडलवार किसान सम्मेलन और जिला स्तर पर तैयारी की बैठक की जाएगी। इसके बाद 5 सितंबर को मुज फरनगर में देश भर से किसानों की ऐतिहासिक महापंचायत बुलाई जाएगी। फिर सभी मंडल मु यालयों पर महापंचायत का आयोजन किया जाएगा।
संयुक्त किसान मोर्चा ने यह फैसला किया है कि इस मिशन के तहत राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ इन दोनों प्रदेशों के किसानों के स्थानीय मुद्दे भी उठाए जाएंगे। किसान नेताओं ने कहा कि गेंहूं की सरकारी खरीद का रिकॉर्ड बनाने का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में गेहूं के कुल अनुमानित 308 लाख टन उत्पादन में से सिर्फ 56 लाख टन यानी 18 फीसदी ही खरीदा है। इसके अलावा अन्य फसलों जैसे अरहर, मसूर, उड़द, चना, मक्का, मूंगफली, सरसों में सरकारी खरीद नगण्य रही है। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार की मूल्य स्थिरीकरण योजना के तहत तिलहन और दलहन की खरीद के प्रावधान का इस्तेमाल भी नहीं के बराबर हुआ है। इसके चलते किसान को इस सीजन में अपनी फसल निर्धारित एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ी है।
