…रुखसत हुए मशहूर शायर राहत इंदौरी

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 3:32 AM IST

स्मृति शेष
मशहूर शायर राहत इंदौरी का मंगलवार को हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। सांस लेने में तकलीफ के बाद उन्हें इंदौर के अरविंदो अस्पताल में दाखिल कराया गया था, वह 70 वर्ष के थे। उर्दू अदब के चाहने वालों के बीच ‘राहत साहब’ के नाम से पहचाने जाने वाले राहत इंदौरी ने मंगलवार सुबह ही सोशल मीडिया पर लिखा था कि सेहत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया गया जहां उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इंदौरी दिल की बीमारी के अलावा किडनी की तकलीफ और मधुमेह से भी पीडि़त थे।
राहत इंदौरी की शायरी का फलक इश्क से इंकलाब तक फैला हुआ था और वे कदाचित आधुनिक भारत के चंद सबसे लोकप्रिय शायरों में शुमार थे। उनकी शायरी में मुल्क से मुहब्बत, सियासत से शिकायत और खुद्दार नौजवानों से उम्मीद साफ नजर आती है। यही कारण है कि उम्रदराज पीढ़ी से लेकर युवाओं तक में उन्हें विरल लोकप्रियता हासिल थी।
‘सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में / किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़ी है’ और ‘जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे/ किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है’, जैसे राजनीतिक रूप से मानीखेज शेर हों या ‘मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना / लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना’ जैसे मुल्क की मोहब्बत में डूबे शेर, राहत साहब के पास संघर्षपूर्ण जीवन से निकले अनुभवों का एक पूरा खजाना था जिसने उन्हें कई मकबूल शेर लिखने में मदद की।

राहत इंदौरी की शायरी को कहीं से भी देखें वह हमेशा सदाकत यानी सचाई और इंसानियत के पक्ष में खड़ी मिलेगी। सन 1950 में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मे राहत इंदौरी का बचपन का नाम कामिल और अकादमिक नाम राहत उल्लाह था लेकिन उर्दू अदब की दुनिया में वह राहत इंदौरी के नाम से मशहूर हुए। राहत इंदौर का बचपन बेहद मुफलिसी में कटा। उनके पिता ने ऑटो चलाने से लेकर मिल मजदूरी तक का काम किया। राहत इंदौरी स्वयं इंदौर की एक फैक्टरी में बोर्ड रंगने का काम किया करते थे।

यह संघर्ष राहत इंदौरी को इंसानियत के वे पाठ दे गया जो वे उम्र भर दूसरों को सिखाते रहे। राहत इंदौरी ने भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से उर्दू में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और भोज विश्वविद्यालय ने उन्हें उर्दू अदब में डॉक्टरेट की डिग्री से नवाजा। बाद में उन्होंने लंबे अरसे तक इंदौर के इस्लामिया करीमिया डिग्री कॉलेज में अध्यापन भी किया।
राहत इंदौरी ने हिंदी सिनेमा को कई यादगार गीतों से भी नवाजा। उन्होंने मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन द्वारा निर्देशित फिल्म, मीनाक्षी: अ टेल ऑफ थ्री सिटीज, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, करीब, इश्क, घातक और मर्डर जैसी फिल्मों में कई कर्णप्रिय गीत लिखे। मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2019 में उन्हें वर्ष 2017 के लिए उर्दू साहित्य के शिखर सम्मान से नवाजा था। इंदौरी उस कार्यक्रम में शिरकत करने नवंबर 2019 में आखिरी बार भोपाल आए थे।
उन्होंने सियासत पर तंज करते हुए कहा था- ‘सरकारें मुझे कभी पसंद नहीं करती हैं। इस सरकारी सम्मान को भी मुझ तक आते-आते 70 बरस लग गए। मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं क्योंकि मेरा नाम उन लोगों में शुमार किया गया जो महान हैं।’
अपनी शायरी से मध्य प्रदेश और इंदौर शहर को दुनिया भर में पहचान दिलाने वाले राहत इंदौरी के निधन के बाद श्रद्धांजलियों का तांता लग गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तमाम बड़े नेताओं तथा समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने राहत इंदौरी को श्रद्धांजलि दी है। राजनाथ सिंह ने जहां उन्हें उर्दू अदब की कद्दावर शख्सियत करार दिया तो वहीं राहुल गांधी ने एक शेर के माध्यम से उन्हें याद करते हुए लिखा, ‘अब न मैं हूं, न बाकी हैं जमाने मेरे/फिर भी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे।’
बीते वर्ष अपनी शायरी के पांच दशक पूरे होने पर एक स्थानीय समाचार पत्र से बात करते हुए राहत इंदौरी ने कहा था, ‘मैं अक्सर सोचता हूं कि ऐसी दो लाइनें अब तक नही लिखीं जो 100 साल बाद भी मुझे जि़ंदा रख सकें। जिस दिन यह खबर मिले कि राहत इंदौरी दुनिया से रुखसत हो गए, समझ जाना कि वो मुकम्मल दो लाइनें मैंने लिख ली हैं। मेरी जेबें देखिएगा, वादा करता हूं वो दो लाइनें आपको मिल जाएंगी।’ यह एक बड़े शायर का बड़प्पन था। वरना तो राहत इंदौरी के अनेक शेर ऐसे हैं जो आने वाली नस्लों को राह दिखाएंगे।

First Published : August 11, 2020 | 11:18 PM IST