कोविड-19 की दूसरी लहर का क्या मतलब है? दूसरी लहर का आशय एक महामारी के दौरान विकसित होने वाले संक्रमण की एक परिघटना से है। महामारी पहले एक समूह के लोगों को संक्रमित करती है और फिर संक्रमण में कमी की स्थिति बनने लगती है। लेकिन फिर जनसंख्या के दूसरे हिस्से में संक्रमण बढऩे लगते हैं जिसे आम बोलचाल में बीमारी की दूसरी लहर कहा जाता है।
मसलन, इस समय यूरोप कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर से गुजर रहा है। नए संक्रमण गर्मियों में महामारी संबंधी बंदिशें हटाए जाने के बाद सामने आए हैं। अब कई देश भले ही पूर्ण देशव्यापी लॉकडाउन नहीं लेकिन फिर से लक्षित एवं स्थानीय स्तर पर पाबंदियां लगाने के लिए बाध्य हुए हैं। मार्च 1918 में स्पेनिश फ्लू की पहली लहर दर्ज की गई थी। उस समय प्रथम विश्व युद्ध का आखिरी दौर चल रहा था। जुलाई 1918 आने तक पहली लहर शांत हो चुकी थी लेकिन सितंबर में दूसरी लहर ने दस्तक दे दी। स्पेनिश फ्लू की दूसरी लहर कहीं अधिक घातक थी और उसमें मरने वालों की संख्या भी पहली लहर से ज्यादा थी।
पश्चिमी देशों में संक्रमण
कोविड-19 की दूसरी लहर संभवत: पाबंदियों से लोगों के उकताने का नतीजा है। ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन एवं नीदरलैंड्स में अगस्त अंत और सितंबर की शुरुआत से संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े हैं जबकि जर्मनी एवं इटली में इस समय मामलों में तेजी देखी जा रही है। असल में, यूरोपीय बीमारी रोकथाम एवं नियंत्रण केंद्र की निदेशक एंड्रिया एमन ने गत मई में ही कह दिया था कि इस महामारी की नई लहर आने को लेकर कोई संदेह ही नहीं है, बस उसके वक्त एवं व्यापकता को देखना बाकी है। दुर्भाग्य से, दूसरी लहर जिस रफ्तार से बढ़ रही है वह पहली लहर से भी ऊंची है। पहली लहर में ब्रिटेन ने अप्रैल में प्रतिदिन करीब 7,860 मामले सामने आने की बात कही थी लेकिन अक्टूबर में यह आंकड़ा बढ़कर 20,000 मामले प्रतिदिन हो चुका है।
सरकार का बढ़ा डर
सरकार अब नए निरोधक उपायों की रणनीति बनाने में लग गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि मामलों में इस तेजी के लिए कई कारण एक साथ जिम्मेदार हैं। त्योहारों का मौसम होने से लोगों की सामाजिक गतिविधियों में हुई बढ़ोतरी, सार्वजनिक स्थलों का खोला जाना और उत्तरी भारत में ठंड की दस्तक को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। इन सबसे बढ़कर है पाबंदियों को लेकर लोगों में थकान का अहसास और मास्क पहनने को लेकर लोगों में ढिलाई ने मामले बढ़ाएै।
भारत 80 लाख से अधिक संक्रमण के साथ दुनिया का दूसरा सर्वाधिक प्रभावित देश है। आशंका है कि इस त्योहारी मौसम एवं ठंड के दिनों में संक्रमण और अधिक बढ़ेगा। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक दिलीप मावलंकर कहते हैं कि लोगों का जोखिम भरा आचरण आने वाले महीनों में भी जारी रहने की आशंका है। जानकारों के मुताबिक चिंता यह है कि इस समय सामने आ रहे करीब 85 फीसदी मामलों में लक्षण दिख ही नहीं रहे हैं।
ठंड का कैसा प्रभाव
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के मुताबिक कोरोनावायरस अपेक्षाकृत ठंडे तापमान में लंबे वक्त तक जीवित रह सकता है। हमें याद रखना होगा कि यह वायरस पहली बार भी गर्मियों में नहीं बल्कि ठंड के मौसम में ही सामने आया था। भारत जैसे देशों में तो संक्रमण में लगातार बढ़त ही देखी गई है।