कोरोनावायरस और बढ़ते वायु प्रदूषण का खतरनाक मेल लोगों की मुसीबतें बढ़ा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि फेफड़ों से संंबंधित तकलीफ वाले मरीजों की तादाद करीब 30 से 40 फीसदी बढ़ गई है। इन मरीजों में से बहुत से अभी कोविड-19 से उबर ही रहे हैं।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक (पल्मोनोलॉजी) डॉ. मनोज गोयल ने कहा, ‘प्रदूषण से विशेष रूप से उन मरीजों की दिक्कत बढ़ी है, जो कोविड से पूरी तरह ठीक नहीं हुए हैं क्योंकि उनके फेफड़े कमजोर हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है। करीब एक महीने पहले हमारे पास केवल कोविड के मरीज आ रहे थे, पर अब सांस से संबंधित अन्य बीमारियों के मरीज भी आ रहे हैं।’
डॉक्टरों का कहना है कि किसी मरीज को कोविड के साथ ब्रोंकाइटिस या अस्थमा होने से मामला ज्यादा गंभीर हो सकता है। एक जर्नल कार्डियोवैस्क्यूलर रिसर्च में प्रकाशित हाल के अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया भर में कोविड-19 से होने होने वाली मौतों में करीब 15 फीसदी का संबंध लंबे समय तक वायु प्रदूषण में रहने से हो सकता है। मैक्स हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विवेक नांगिया ने कहा, ‘असल में कोविड वायरस पीएम2.5 कणों के चिपक जाता है और लंबे समय तक वायु में बना रहता है…वायु प्रदूषण का सीधा असर फेफड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है।’
वायु प्रदूषण और कोविड के मिश्रण का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, जिससे लोगों के वायरस से प्रभावित होने की आशंका ज्यादा बढ़ गई है। इससे अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद कोविड के मरीज की देखभाल ज्यादा जटिल बन रही है।
आकाश हेल्थकेयर में वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अक्षय बुधराजा ने कहा, ‘इन दिनों इमरजेंसी में आने वाले मामले ज्यादा गंभीर हैं। मरीजों के स्कैन में उनके फेफड़े ज्यादा प्रभावित दिख रहे हैं। यह बीमारी जटिल हो रही है।’
हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अन्य अध्ययन मेंं कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति दशकों से किसी ऐसे देश में रह रहा है, जिसमें सूक्ष्म कण प्रदूषण का उच्च स्तर आठ फीसदी है तो उसके कोविड से मरने की उस व्यक्ति से अधिक आशंका है, जो ऐसे प्रदूषण के महज एक यूनिट (एक माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) कम स्तर में रह रहा है। वाहन प्रदूषण बढ़ रहा है और दीवाली भी नजदीक आ रही है। ऐसे में डॉक्टर कोविड के गंभीर मामलों और श्वास की बीमारी से संबंधित कुल मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी के आसार जता रहे हैं। श्वास से संबंधित बीमारियां लॉकडाउन के कुछ शुरुआती चरणों में काफी कम हो गई थीं। बुधराजा ने कहा, ‘केवल लक्षणों के आधार पर कोविड का पता लगाना कठिन है, इसलिए इलाज करना ज्यादा मुश्किल हो जाता है…श्वास से संबंधित अन्य दिक्कतों के मुकाबले कोविड के लिए स्टेरोयड की खुराक ज्यादा देनी पड़ती है..हमें इसका ठीक से संतुलन रखना होता है।’
