हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) के कोविड-19 के इलाज में कारगर होने को लेकर दुनिया भर में विवाद बना हुआ है मगर भारत में इस दवा की विनिर्माता कंपनियां लगातार उत्पादन कर रही हैं। वे यह उत्पादन निर्यात ऑर्डर पूरे करने के अलावा संधिवात गठिया और मधुमेह के मरीजों के लिए कर रही हैं। भारत दुनिया में एचसीक्यू का सबसे बड़ा विनिर्माता है। यह मलेरिया की भी दवा है। इसे एक समय कोविड-19 के इलाज की ‘चमत्कारी दवा’ बताया जा रहा था मगर अब इसके सुरक्षित और प्रभावी होने को लेकर दुनिया भर में विवाद चल रहा है। भारत इस दवा का इस्तेमाल स्वास्थ्यकर्मियों एवं पुलिसकर्मियों जैसे अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों के अलावा कोविड-19 के मरीजों के नजदीकी अधिक जोखिम वाले लोगों में रोकथाम के लिए कर रहा है।
देश में एचसीक्यू की विनिर्माता बड़ी कंपनियों में से एक के सूत्र ने कहा, ‘हम महामारी फैलने से पहले भी एचसीक्यू बना रहे थे और अब भी ऐसा कर रहे हैं। यह हमारे लिए 100 करोड़ रुपये का ब्रांड है। सरकार ने एक बड़ा ऑर्डर दिया है, जिसकी आपूर्ति हम पहले ही कर चुके हैं। भारत में लगातार इस दवा का इस्तेमाल हो रहा है और जब सरकार के पास एचसीक्यू का स्टॉक खत्म हो जाएगा तो हम फिर से आपूर्ति कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि इस दवा का इस्तेमाल दशकों से हो रहा है और संधिवात गठिया के मरीज इस दवा का उपयोग करते हैं।
इस वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इस बात को लेकर हो-हल्ला हो रहा है कि क्या एचसीक्यू की अधिक खुराक नुकसान पहुंचाती है। भारत में एचसीक्यू 400एमजी की डोज में दी जा रही है। मरीज के संपर्क वाले लोगों को पहले दिन दो डोज और उसके बाद तीन सप्ताह तक हर सप्ताह एक डोज दी जा रही है। वहीं स्वास्थ्यकर्मियों को सात सप्ताह तक डोज दी जा रही है। संधिवात गठिया के मरीज रोजाना दवा की 400 एमजी डोज लेते हैं और इन वर्षों में एचसीक्यू के नुकसानदेह असर का कोई मामला नहीं आया है।’
भारत सरकार ने 10 करोड़ टैबलेट का ऑर्डर दिया है, जिसकी आपूर्ति दो प्रमुख दवा कंपनियों आईपीसीए और कैडिला हेल्थकेयर ने की है। प्रत्येक मरीज को पांच से नौ टैबलेट की जरूरत होती है। इस हिसाब से स्टॉक कई महीनों चलेगा क्योंकि इससे एक करोड़ लोगों को दवा दी जा सकती है।
अप्रैल में इस मलेरिया की दवा की बिक्री घरेलू बाजार में 11 फीसदी बढ़ी है। एक समय आईपीसीए हर साल 600 टन क्लोरोक्विन फॉस्फेट बनाती थी और उसकी वैश्विक बाजार में 80 फीसदी हिस्सेदारी थी। हालांकि इस दवा की मांग पिछले कुछ वर्षों के दौरान घटी है, जिसकी मुख्य वजह मलेरिया के मामले घटना है। सूत्र ने कहा, ‘हमसे लैटिन अमेरिका और यूरोप के बहुत से छोटे देश पूछताछ कर रहे हैं। हम ये ऑर्डर पूरे कर रहे हैं। भारत में भी लगातार एचसीक्यू का इस्तेमाल हो रहा है। इस समय सरकार की तरफ से कोई ताजा ऑर्डर नहीं आया है क्योंकि उनके पास पहले से स्टॉक है।’ भारत में मई तक एचसीक्यू की उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 30 करोड़ टैबलेट प्रति माह की गई थी।
विवाद
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के इस दवा को कोविड-19 के इलाज में अत्यंत उपयोगी बताने के बाद यह सुर्खियों में आई। उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि इससे दवा के बाजार को नुकसान पहुंच सकता है। यह जलन को खत्म करती है, इसलिए इसका गठिया में इस्तेमाल होता है।
एक दवा कंपनी के मालिक ने नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा, ‘यह दवा राजनीतिक मुद्दा बन गई है। चिकित्सा समुदाय में भी मतभेद पैदा हो गए हैं। वहीं दुनिया का एक देश पूरे विश्व को इस दवा की आपूर्ति कर लोकप्रिय हो गया।’
प्रतिष्ठित पीर रिव्यूड मेडिकल जर्नल लैंसेट में मर्ई में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है। इसमें कहा गया है कि एचसीक्यू से मृत्यु दर बढ़ सकती है। साथ ही, हृदय की धड़कन कम होने जैसे प्रतिकूल असर का भी जोखिम है। पिछले सप्ताह लैंसेट ने इस अध्ययन को लेकर सवाल उठा दिया क्योंकि बहुत से शोधार्थियों और डॉक्टरों ने इस पत्रिका से संपर्क कर डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। कथित रूप से दुनिया के 96,000 मरीजों का डेटा मुहैया कराने वाली कंपनी सर्जीस्फिर भी सवालों के घेरे में आ गई है।
