देश में किशोरों को 3 जनवरी से कोविड-19 महामारी से सुरक्षा के टीके लगाने की घोषणा हो चुकी है। मगर इस समय देश में भारत बायोटेक द्वारा तैयार टीके कोवैक्सीन का ही विकल्प मौजूद है। कैडिला हेल्थकेयर ने डीएनए तकनीक पर आधारित टीका जायकोव-डी तैयार तो किया है मगर सूत्रों के अनुसार इसका इस्तेमाल 15 वर्ष और इससे अधिक उम्र के किशारों के लिए नहीं होगा। दवा नियामक ने 12 वर्ष और इससे अधिक उम्र के बच्चों को यह टीका लगाने की अनुमति दी है।
सरकारी सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) ने 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में इस टीके के इस्तेमाल का सुझाव नहीं दिया है। इस बारे में एक सूत्र ने कहा, ‘भारतीय दवा महानिरीक्षक (डीसीजीआई) ने भारत में 12 वर्ष एवं इससे अधिक उम्र के बच्चों को जायकोव-डी लगाने की अनुमति भले ही दे दी है मगर फिलहाल यह टीका 18 वर्ष एवं इससे अधिक उम्र वालों को ही लगाने का निर्णय लिया गया है। इस वजह से 15 वर्ष एवं इससे अधिक उम्र के किशारों के लिए हमारे पास कोवैक्सीन ही एक मात्र विकल्प रह गया है।’ सूत्र ने कहा कि सरकार वैज्ञानिक साक्ष्यों एवं सलाह के आधार पर आगे कदम बढ़ा रही है।
डीसीजीआई ने शनिवार को 12 वर्ष और इससे अधिक उम्र के बच्च्चों को कोवैक्सीन टीका लगाने की अनुमति दे दी। इससे पहले 12 अक्टूबर को डीसीजीआई को सलाह देने वाली विषय विशेषज्ञ समिति (एसईसी) ने 2 वर्ष और इससे अधिक उम्र के बच्चों को भी कोवैक्सीन लगाने की अनुमति दी थी। मगर डीसीजीआई ने कोवैक्सीन के इस्तेमाल को हरी झंडे देने से पहले इंतजार करना उचित समझा और अब 12 वर्ष और इससे अधिक उम्र के बच्चों को यह टीका लगाने की मंजूरी दी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के ऐसे लोगों को प्रीकॉशन डोज (अतिरिक्त खुराक) लगाई जाएगी जो पहले से किसी न किसी बीमारी से जूझ रहे हैं। ऐसे लोगों को अपने चिकित्सकों से प्रमाणपत्र लाना होगा। सूत्र ने कहा, ’10 जनवरी से पहले संबंधित दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे, जिनमें खुराकों के बीच अंतराल और प्रीकॉशन डोज के तौर पर दिए जाने वाले टीके आदि की जानकारी होगी। यह पूरी तरह से वैज्ञानिक सलाह पर आधारित होगा।’ टीकाकरण के बाद शरीर में तैयार एंटीबॉडी एक समय बाद कम होने लगते हैं मगर टी-सेल्स (मेमरी सेल्स) सक्रिय रहते हैं। अब तक ऐसे बड़े शोध सामने नहीं आए हैं, जिनमें लंबे समय तक टी-सेल की प्रतिक्रिया पर नजर रखी गई है। हालांकि इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्र ने कहा, ‘भारत में पांच से छह बड़े अध्ययनों में कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगाए जाने के बाद शरीर में उत्पन्न एंटीबॉडी की हरकत पर नजर रखी गई है। इन अध्ययनों में पाया गया है कि फाइजर और मॉडर्ना के एम-आरएनए आधारित टीकों से अलग कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगने के बाद बने एंटीबॉडी की संख्या में तेजी या कमी उतनी तेज गति से नहीं होती है।’
केंद्र सरकार का मानना है कि ‘बूस्टर डोज’ आबादी एवं कुछ खास बातों को ध्यान में रखकर दी जाएगी।