जयराम रमेश का बिजली राज्य मंत्री बनना घर लौटने जैसा ही है।हालांकि उन्होंने कहा कि उन्होंने अस्थायी कार्यभार संभाला है लेकिन ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े सवाल, सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर उनके जवाब में कहीं भी अस्थायी जैसा भाव नहीं था।
ऊर्जा क्षेत्र के अतिरिक्त लक्ष्य को प्राप्त करने में मंत्रालय के सुस्त प्रदर्शन के बारे में जानने के लिए सिद्धार्थ ज़राबी ने उनसे विस्तृत बातचीत की । प्रस्तुत है बातचीत के अंश-
हमें कब से आपको ऊर्जा मंत्री के तौर पर पुकारना चाहिए?
मैंने 7 अप्रैल को कार्यभार संभाला और अस्थायी कार्यभार संभाला है। 25 साल बाद उसी श्रम शक्ति भवन के उसी कॉरिडोर में लौटने में खुशी हो रही है। इसी भवन में मैं ईएएस शर्मा के साथ काम करता था। हम दोनों के सी पंत की अध्यक्षता में ऊर्जा पर बनी समिति केपहले कर्मचारी थे।
वह वक्त मेरी जिन्दगी का सबसे बेहतर और कुछ कर गुजरने वाला समय था। हम लोगों ने 400 पृष्ठों का एक दस्तावेज तैयार किया था जो 1985 में प्रकाशित हुआ। उसमें पहली बार बिजली की मांग का पूर्वानुमान लगाया गया था।
जो भी कहिए भारत में क्षमता वृद्धि कमजोर रही है और हमारा देश बिजली के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) में क्षमता वृद्धि के मामले में बुरा हाल था। यही हाल नवीं पंचवर्षीय योजना में भी था। उस समय 41,000 मेगावाट बिजली का लक्ष्य था लेकिन मात्र 23,000 मेगावाट का ही लक्ष्य हासिल किया जा सका था। इस संदर्भ में पिछले साल मैंने बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे को भी लिखा था कि मंत्रालय जो आभास दे रहा है वह बिल्कुल ही अलग है।
जबकि 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के पहले वर्ष में 9,200 मेगावाट की क्षमता वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त किया गया है और अगले साल के लिए 12,000 मेगावाट का लक्ष्य रखा गया है। वैसे इस तरह जो लक्ष्य रखा गया है वह दसवीं पंचवर्षीय योजना क ी ही तरह है। लेकिन 11वीं योजना के आगामी वर्षों में जो 80,000 मेगावाट का लक्ष्य रखा गया है उसे हासिल करना निश्चित तौर पर एक चुनौती है।
तो अतिरिक्त बिजली उत्पादन आपके एजेंडे में शामिल है?
हां। मैं चाहता हूं कि इस संदर्भ में सारे प्रयासों को अमली जामा पहनाया जाए। लेकिन हमारे पास एक भी कंप्यूटरीकृत प्रबंधन सूचना तंत्र (एमआईएस) नहीं है और यह हमारी चिंता का विषय है। इस संदर्भ में हमने नंदन नीलेकणि से बात की है जिन्होंने 4 साल पहले एक ऐसी रिपोर्ट बनाई थी जिसमें यह कहा गया था कि सूचना तकनीक का उपयोग ऊर्जा प्रबंधन में कैसे किया जा सकता है।
वैसे इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। जैसा कि मै देखता हूं कि इस समस्या से निजात पाने के लिए इन्फोसिस मॉडल को अपनाने की जरूरत है जिसमें अधिक बड़ा लक्ष्य और अधिक पाने की लालसा होती है। हालांकि सरकारी मॉडलों में लक्ष्य तो बड़ा होता है लेकिन इसे पाने की कोई बड़ी लालसा नहीं होती है।
इन चुनौतियों से पहले हमारे सामने 51,000 मेगावाट के लक्ष्य को प्राप्त करना एक प्रमुख काम है। यदि यह हो जाता है तो जो भी 2011-12 में बिजली मंत्री होगा, उसे भारत रत्न मिलना चाहिए।
कुछ प्रमुख पदों पर नियुक्तियां अभी तक लंबित हैं, जैसे केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग के प्रमुख का पद
मुझे खुद यह समझ नही आता है कि इस तरह के पद एक साल की अवधि तक कैसे खाली है। मैंने इस संबंध में प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव से बात की है और उम्मीद है कि इस तरह के पदों को कुछ दिनों में भर दिया जाएगा।
कुछ अल्ट्रा-मेगा ऊर्जा परियोजनाएं अभी तक क्रियान्वित नहीं हो पाई हैं जिनमें प्रत्येक से 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
बिजलीके अतिरिक्त उत्पादन के लिए 12 परियोजनाएं बनी हैं। तीन परियोजनाओं (सासन, मुंद्रा और कृष्णापट्टनम) के लिए जगह तय हो चुकी है। किसी भी अल्ट्रा मेगा पॉवर परियोजना यहां तक कि सासन में भी 11वीं योजना में बिजली का उत्पादन नहीं होगा जो 80,000 मेगावाट के लक्ष्य के अंतर्गत नही आता है।
इस सरकार के कार्यकाल में ऐसी और कितनी परियोजनाओं के लिए मंजूरी मिलने की आपको उम्मीद है?
हमारे पास एक साल का वक्त है। हम चाहेंगे कि इस दौरान तीन से चार परियोजनाओं को मंजूरी मिल जाए।
ऊर्जा मंत्री का ऊर्जावान संकल्प
मैं चाहता हूं कि इस संदर्भ में सारे प्रयासों को अमली जामा पहनाया जाए। लेकिन हमारे पास एक भी कंप्यूटरीकृत प्रबंधन सूचना तंत्र (एमआईएस) नही है और यह हमारी चिंता का विषय है। इस संबंध में हमने नंदन नीलेकणि से बात की है जिसने 4 साल पहले एक ऐसी रिपोर्ट बनाई थी। वैसे इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।