लाल सागर में स्थिति गंभीर होने के कारण दुनिया भर में कंटेनर के किराये और प्रमुख शिपिंग मार्गों से ढुलाई की दर में तेजी जारी है। पिछले एक सप्ताह में कंटेनर की वैश्विक दर में 15 प्रतिशत की और वृद्धि हो गई है। ड्रेवरीज वर्ल्ड कंटेनर इंडेक्स के मुताबिक वैश्विक कंटेनर दरें इस सप्ताह बढ़कर प्रति 40 फुट कंटेनर 3,072 डॉलर हो गई हैं।
अगर पिछले साल के समान सप्ताह से तुलना करें तो दर में 44 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। कीमत का मानकीकरण अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर कंटेनरों के आकार के मुताबिक किया गया है।
अक्टूबर 2022 के बाद यह सर्वाधिक कंटेनर दर है और यह कोविड के पहले के स्तर की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। मार्केट इंटेलिजेंस फर्म ने कहा, ‘साल की शुरुआत से अब तक 40 फुट के कंटेनर का औसत कंपोजिट इंडेक्स 2,871 डॉलर रहा है। यह 10 साल की औसत दर 2,675 डॉलर की तुलना में 196 डॉलर ज्यादा है जो 2020-22 के दौरान अनपेक्षित रूप से बढ़ा हुआ था।’
चीन से यूरोप भेजी जाने वाली खेप 25 प्रतिशत महंगी हुई है और यह प्रति 40 फुट कंटेनर 5,213 डॉलर है। हालांकि चीन और अमेरिका के बीच माल ढुलाई की दर 8 प्रतिशत बढ़कर 4,170 डॉलर प्रति कंटेनर हुई है।
ड्रेवरी सहित उद्योग के ज्यादातर हिस्सेदारों तो उम्मीद है कि शिपिंग की लागत में आने वाले सप्ताहों में भी तेजी जारी रहेगी। यूरोप जाने वाले जहाजों को केप ऑफ गुड होप के रास्ते भेजा जा रहा है, जिससे लागत बढ़ रही है।
अक्टूबर में हमास के आतंकी हमले के बाद इजरायल में हिंसा बढ़ी है। उसके बाद अदन की खाड़ी से गुजरने वाली जहाजों पर हवाई और प्रोजेक्टाइल हमले शुरू हो गए और इजरायल के मालवाहक जहाजों को निशाना बनाया जाने लगा। इससे ढुलाई की लागत अब दोगुने से ज्यादा हो चुकी है।
किसी नियत वक्त में लाल सागर से होकर 400 से ज्यादा मालवाहक पोत गुजरते हैं। इस संकट से कम से कम 11 प्रतिशत वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ है। भारत से यूरोप जाने वाले और वहां से आने वाले मालवाहक जहाज भी प्रभावित हुए हैं, जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात केंद्र है। इस मार्ग का भाड़ा दोगुना हो गया है।
नई दिल्ली के थिंकटैंक रिसर्च ऐंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज के मुताबिक इस संकट से भारत के निर्यात पर करीब 30 अरब डॉलर तक का असर हो सकता है।
बाजार के अनुमानों के मुताबिक 40 प्रतिशत लंबे मार्ग के कारण परिचालन लागत पर भारी दबाव है। इसके जारी रहने की उम्मीद है क्योंकि लंबे रास्ते के कारण ढुलाई का वक्त एक से चार सप्ताह बढ़ सकता है। अतिरिक्त नियामकीय जरूरतों के कारण भी परिचालन में जटिलता है।