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इन रोशन ऊंची इमारतों तले है अंधियारा…

Last Updated- December 05, 2022 | 7:03 PM IST

गगनचुंबी इमारतें, सड़कों पर लंबी-लंबी गाड़ियां और गर्म जेबें। यह तस्वीर पश्चिम एशियाई देश दुबई की कहानी बयान करने के लिए काफी है।


पर कम ही लोगों का ध्यान इस ओर गया होगा कि इस आलीशन और रिहायशी सोसाइटी को खड़ा करने के पीछे जिन मजदूरों का हाथ लगा हुआ है वे किस कदर गुमनामी और दबी कुचली जिंदगी जीने को मजबूर हैं। अक्सर इस देश में दूसरे देशों से लोग पैसे कमाने के लिए आते हैं क्योंकि यहां आय पर कोई कर चुकाना नहीं पड़ता है। ऐसे में आप जितने पैसे कमाते हैं वह अपने लिए ही कमाते हैं। यहां आने वाले अधिकांश लोग अच्छा खासा बैंक बैलेंस इकट्ठा कर वापस अपने देश चले जाते हैं।


सबसे मुश्किल स्थिति तो उन निम्न वर्ग के लोगों की होती है जो मजदूरी जैसे कामों से अपना पेट भरते हैं। एक तो इन लोगों को दुबई आने के लिए एजेंट्स को भारी भरकम रकम चुकानी पड़ती है और यहां आने के बाद उन्हें पता चलता है कि उन्हें जो ख्वाब दिखाकर यहां लाया गया था, हालात उनसे ठीक उल्टे हैं।


शहर के एमीरेट्स टॉवर की सातवीं मंजिल पर अपने वातानुकूलित ऑफिस में बैठे पाकिस्तानी करोबारी आरिफ नकवी मानते हैं कि अगर वह दुबई में नहीं होते तो आज उनके पास जितनी संपत्ति है उसका 10 फीसदी हिस्सा भी वह नहीं जुटा पाते। उनके पास आज की तारीख में पांच अरब डॉलर की संपत्ति है और उनके दफ्तर के बगल में ही दुबई के शासक शेख मुहम्मद बिन राशीद अल मखतूम का घर है।


 एमीरेट्स टॉवर के निचले फ्लोर के पास ही एक झोपड़ी में भारत का ओमकार सिंह रहता है जो यहां पिछले छह महीने से रह कर काम कर रहा है और आज भी कर्ज में डूबा हुआ है क्योंकि जिस एजेंट के सहयोग से वह यहां आया था उसे ओमकार को 60,000 रुपए चुकाने हैं। साथ ही इस एजेंट ने नौकरी का दिलासा देते वक्त कहा था कि उससे बस आठ घंटे काम कराया जाएगा। पर यहां आकर उसे हफ्ते के छह दिन कम से कम दस घंटे काम करना पड़ता है।


ओमकार कहता है, ‘मुझे झांसे में रखा गया।’ तेल निर्यात और पर्यटन के लिए मशहूर यह शहर कोई आयकर नहीं होने और मुक्त व्यापार क्षेत्र घोषित होने की वजह से कंपनियों को खंचता रहा है। साथ ही इस देश में विदेशी कंपनियां बिना किसी स्थानीय भागीदार के अपनी इकाई खोल सकती हैं। शायद यही वजह है कि यहां स्थानीय निवासियों की तुलना में विदेशी अधिक हैं। दुबई चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार यहां नौ विदेशियों पर एक स्थानीय निवासी है।


कार्लाइल ग्रुप, गोल्डमैन सैक्स, सिटीग्रुप इंक और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिगज कंपनियों ने दुबई में अपनी इकाई खोल रखी है। दूसरी ओर खाली पड़े प्राकृतिक संसाधनों को इस्तेमाल करने के लिए शेख मोहम्मद चाहते हैं कि 2015 तक 8,82,000 कामगारों को देश से जोड़ा जाए। ऐसे में निश्चित तौर पर ये कामगार दूसरे देशों से ही आएंगे। मोहम्मद की चाहत 2015 तक अर्थव्यवस्था को 108 अरब डॉलर तक पहुंचाने की है जो 2005 का लगभग तीन गुना है।


इन सब के बावजूद देश में कामगारों की स्थिति को सुधारने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। एक तो इन लोगों को देश में आने के पहले एजेंटों को अच्छी खासी रकम देनी पड़ती है और उसके बाद भी निचले तबके की नौकरियों के एवज में अच्छी तनख्वाह नहीं दी जाती है।

First Published - April 4, 2008 | 10:23 PM IST

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