मिस्र के शर्म-अल-शेख में क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप27) यानी जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को ‘कॉप ऑफ ऐक्शन’ के रूप में प्रचारित किया गया था। लेकिन वह विकासशील देशों के लिए उम्मीद की एक किरण जगाने के बाद निराशाजनक तरीके से समाप्त हुआ।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता लगभग 3 दिन ज्यादा चली। यह कॉप के इतिहास में सबसे लंबी वार्ता थी और इसमें ‘लॉस ऐंड डैमेज फंड (एलडीएफ)’ के गठन का ऐतिहासिक फैसला लिया गया। हालांकि सभी तरह के जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बंद करने के भारत के आह्वान सहित कई अन्य प्रमुख मुद्दों पर काफी कम प्रगति दिखी।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी अंतिम क्रियान्वयन योजना में कहा गया है, ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से जुड़े नुकसान एवं क्षति के लिए धन की व्यवस्था से संबंधित मामलों पर पहली बार विचार का स्वागत है। इसमें नुकसान एवं क्षति से निपटने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।’ नुकसान एवं क्षति का तात्पर्य जलवायु परिवर्तन के कारण हुई आपदाओं से होने वाला विनाश है।
बयान में कहा गया है, ‘कॉप पेरिस समझौते के पक्षकारों की बैठक के तौर पर काम कर रहा है और वह जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से जुड़े नुकसान एवं क्षति से निपटने के लिए धन व्यवस्था से संबंधित मामलों पर लिए गए निर्णय का स्वागत करता है।’
हालांकि एलडीएफ के बारे में विस्तृत विवरण नहीं दिया गया है। खासकर यह नहीं बताया गया है कि रकम कहां से आएगी। बयान में कहा गया है, ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से जुड़े नुकसान एवं क्षति को टालने, उसे कम करने और उससे निपटने के लिए सैंटियागो नेटवर्क की संस्थागत व्यवस्थाएं इसे पूरी तरह संचालित करने में सक्षम हैं।’
कई दक्षिण एशियाई देशों द्वारा जोर दिए जाने के बावजूद किसी बड़ी अर्थव्यवस्था ने फंड स्थापित करने का समर्थन नहीं किया। केवल यूरोपीय संघ ने वार्ता के आखिरी दिन एक ऐतिहासिक हस्तक्षेप किया और जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे देशों को सहायता देने पर सहमति व्यक्त की।
कॉप27 में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने एलडीएफ स्थापित करने के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘आप एक ऐतिहासिक कॉप की अध्यक्षता कर रहे हैं, जहां नुकसान एवं क्षतिपूर्ति के लिए व्यवस्था के तौर पर एलऐंडडी फंड की स्थापना सहित की गई है।
दुनिया इसके लिए लंबे समय से इंतजार कर रही थी। आम सहमति बनाने के आपके अथक प्रयासों के लिए हम आपको बधाई देते हैं।’ कॉप27 में उम्मीद की जा रही थी कि तेल एवं गैस सहित सभी जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किए जाने के प्रस्ताव को भी शामिल किया जाएगा, लेकिन अंतिम समझौते में उसे आगे नहीं बढ़ाया गया।
यादव ने यह भी कहा कि विश्व को किसानों पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी का जिम्मा नहीं लादना चाहिए। शिखर सम्मेलन शुक्रवार को समाप्त होना था, लेकिन ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी, एलऐंडडी फंड सहित कई मुद्दों पर समझौते के लिए वार्ताकारों के जोर दिए जाने पर इसे निर्धारित समय से आगे बढ़ाया गया। वार्ता एक समय में असफल होने के कगार पर पहुंच गई थी, लेकिन हानि और क्षति से निपटने की एक नई वित्तीय सुविधा पर प्रगति के बाद अंतिम घंटों में इसने गति पकड़ ली।
आईआईएसडी की वरिष्ठ नीति सलाहकार श्रुति शर्मा ने कहा, ‘यह निराशाजनक है कि कॉप27 जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर चरणबद्ध तरीके से रोक लगाए जाने के मुद्दे पर मजबूत संदेश नहीं दे सका। कॉप26 के तहत सदस्यों से कहा गया था कि कोयले का उपयोग घटाने व कम उत्सर्जन वाली ऊर्जा प्रणालियों का उपयोग बढ़ाया जाए।’
डब्ल्यूआरआई की निदेशक (जलवायु कार्यक्रम) उल्का केलकर ने कहा कि भारत जैसे देशों के लिए कॉप27 द्वारा ऊर्जा में बदलाव का कार्यक्रम काफी महत्त्वपूर्ण होगा क्योंकि इनके पास जीवाश्म ईंधन पर निर्भर क्षेत्रों में बड़ी तादाद में लोग कार्यरत हैं।