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वादे पर खरा उतरे तालिबान: भारत

Last Updated- December 12, 2022 | 1:09 AM IST

अफगानिस्तान में बने अनिश्चितता के माहौल के बीच वहां की स्थिति को बेहद नाजुक बताते हुए भारत ने कहा कि यह महत्त्वपूर्ण है कि तालिबान पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद समेत अन्य आतंकवादी संगठनों को अफगान सरजमीं का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के लिए न करने देने के अपने वादे पर खरा उतरे। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी एस तिरुमूर्ति ने गुरुवार को अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक चर्चा में कहा कि अफगानिस्तान का पड़ोसी होने के नाते भारत को पिछले महीने 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद की अपनी अध्यक्षता के दौरान परिषद में ठोस और दूरदर्शी प्रस्ताव पारित करने का सौभाग्य मिला। 
तिरुमूर्ति ने कहा, ‘सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में कहा गया है कि अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकाने या उस पर हमला करने या आतंकवादियों को पनाह देने या उन्हें प्रशिक्षित करने या उनकी फंडिंग के लिए नहीं होना चाहिए। पिछले महीने काबुल हवाईअड्डे पर आतंकवादी हमले में देखा गया तो आतंकवाद अफगानिस्तान के लिए अब भी एक गंभीर खतरा बना हुआ है। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि इस संबंध में की गई प्रतिबद्धताओं का सम्मान किया जाए और उनका पालन किया जाए।’ 

सुरक्षा परिषद के 1267 प्रस्ताव के तहत लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के साथ ही हक्कानी नेटवर्क प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हैं। जैश संस्थापक मसूद अजहर और लश्कर नेता हाफिज सईद वैश्विक आतंकवादियों की सूची में भी शामिल हैं। सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 में तालिबान के उस बयान पर गौर किया गया है कि अफगान नागरिक बिना किसी बाधा के विदेश यात्रा कर सकेंगे। तिरुमूर्ति ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि अफगान और सभी विदेशी नागरिकों के अफगानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकलने समेत इन सभी प्रतिबद्धताओं का पालन किया जाएगा।’ तिरुमूर्ति ने कहा कि अफगान के लोगों के भविष्य के साथ ही पिछले दो दशकों में हासिल की गई बढ़त के बने रहने को लेकर अनिश्चितताएं बनी हुई हैं ऐसे में तत्काल मानवीय सहायता मुहैया कराने और इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य एजेंसियों को बिना किसी बाधा के लोगों तक पहुंचने की अपील की जा रही है। तिरुमूर्ति ने कहा, भारत, अफगानिस्तान में समावेशी सरकार का आह्वान करता है जिसमें अफगान समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो।
आतंकी षडयंत्रों की आशंका

ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई 5 के प्रमुख केन मैक्कलम ने शुक्रवार को कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद चरमपंथी मजबूत हुए हैं और इससे पश्चिमी देशों के खिलाफ अल-कायदा-शैली के बड़े हमलों के षड्यंत्रों की पुनरावृत्ति हो सकती है। उन्होंने कहा कि नाटो सैनिकों की वापसी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थित अफगान सरकार के अपदस्थ होने के कारण ब्रिटेन को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।
गरीबी का संकट

संयुक्त राष्ट्र की विकास एजेंसी ने कहा है कि अफगानिस्तान सार्वभौमिक गरीबी के कगार पर खड़ा है। ऐसे में, यदि स्थानीय समुदायों और उनकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो अगले साल के मध्य में यह अनुमान हकीकत में तब्दील हो सकता है। एजेंसी ने कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद 20 साल में हासिल की गई आर्थिक प्रगति जोखिम में पड़ गई है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान के काबिज होने के बाद चार परिदृश्यों को रेखांकित किया है। इनमें जून 2022 से शुरू होने वाले अगले वित्तीय वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 3.6 प्रतिशत से 13.2 प्रतिशत के बीच गिरावट होने का अनुमान शामिल है। हालांकि यह संकट की गंभीरता और इस बात पर निर्भर करेगा कि विश्व तालिबान से कितना संबंध रखता है।
अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार के पतन से पहले जीडीपी में 4 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया जा रहा था, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की यह भविष्यवाणी उस पहलू के विपरीत है। यूएनडीपी एशिया-प्रशांत की निदेशक कन्नी विंगराज ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में 28 पृष्ठों का आकलन जारी करते हुए कहा, ‘अगले साल के मध्य तक अफगानिस्तान के सार्वभौगिक गरीबी के दुष्च्रक में फंसने की बहुत अधिक आशंका है। हम उसी ओर बढ़ रहे हैं। अफगानिस्तान में गरीबी दर 97-98 प्रतिशत है।
बाइडन शी के बीच बातचीत

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से गुरुवार को 90 मिनट तक बातचीत की। चीन और अमेरिका के दोनों नेताओं के बीच सात महीने में यह पहली वार्ता है जब यह सुनिश्चित करने की जरूरत पर चर्चा की गई की दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच प्रतिस्पद्र्धा संघर्ष में न बदले। 
बाइडन प्रशासन ने अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद संकेत दिए हैं कि इस लंबे युद्ध को समाप्त करने से अमेरिका के राजनीतिक और सैन्य प्रमुखों को चीन की तरफ से बढ़ते दबाव के खतरों से निपटने की गुंजाइश मिलेगी। लेकिन चीन ने इसे अफगानिस्तान में अमेरिका की विफलता के तौर पर दर्शाने की कोशिश की। पिछले महीने भी चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि अमेरिका को किसी एक या अन्य मुद्दों पर तब तक चीन के सहयोग की उम्मीद नहीं करनी चाहिए जब तक वह चीन को दबाने और नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।

First Published - September 11, 2021 | 1:38 PM IST

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