करीब एक साल पहले यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद डर जताया जा रहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने कम से कम तीन खास क्षेत्रों में बड़ी चुनौतियां होंगी। ऊंची मुद्रास्फीति के खतरे उन लोगों के सामने नई चुनौतियां खड़ी करेंगे, जिन पर भारत की मौद्रिक नीति संभालने का जिम्मा है।
जिंस खास तौर पर कच्चे तेल और उर्वरकों के भाव ऊंचे रहने का खतरा राजकोषीय घाटा कम करने की सरकार की योजना को खटाई में डालेगा। डर यह भी जताया गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था का बाह्य क्षेत्र बढ़ते आयात बिल के कारण दबाव में आ जाएगा क्योंकि वैश्विक आर्थिक मंदी होने पर निर्यात भी मंद पड़ सकता है।
जनवरी 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति 6 फीसदी का आंकड़ा छू चुकी थी, जो भारतीय रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति लक्ष्य का ऊपरी दायरा है। रूस-यूक्रेन संघर्ष और उसकी वजह से जिंस के भाव चढ़ने के कारण खुदरा मुद्रास्फीति अगले नौ महीने भी 6 फीसदी के ऊपर ही रही। रीपो दर को तेजी से घटाने और अप्रैल 2022 तक लगातार दो साल उसे 4 फीसदी पर रोकने वाली रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति कुछ देर से हरकत में आई।
मई 2022 में मौद्रिक नीति की समीक्षा के बगैर ही केंद्रीय बैंक ने रीपो दर बढ़ाकर 4.4 फीसदी कर दी और वह नियमित अंतराल पर इसे बढ़ाता रहा। मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच रीपो दर में 2.5 फीसदी का इजाफा हुआ है, जिसके बाद अब यह 6.5 फीसदी हो गई है।
उर्वरक की अंतरराष्ट्रीय कीमतें बढ़ने के कारण मृदा पोषक तत्त्वों के लिए सब्सिडी पर भारत का खर्च बढ़ गया। 2022-23 के बजट में उर्वरक सब्सिडी 1.05 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जताया गया था, जो वास्तव में बढ़कर 2.25 लाख करोड़ रुपये रहा।
कच्चे तेल के ऊंचे अंतरराष्ट्रीय दामों के कारण भारतीय तेल रिफाइनिंग और मार्केटिंग कंपनियों पर खुदरा कीमतें बढ़ाने का दबाव था, जिससे राहत देने के लिए केंद्र ने मई में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 8 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 6 रुपये प्रति लीटर घटा दिया।
जमकर इस्तेमाल होने वाले इन पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा कीमतें नीचे लाने और महंगाई पर लगाम लगाने में इस कदम से मदद मिली, लेकिन इन्हीं दोनों पर सबसे ज्यादा निर्भर रहने वाला केंद्र का उत्पाद शुल्क संग्रह 2022-23 में 19 फीसदी घटकर 3.2 लाख करोड़ रुपये ही रह गया। बजट अनुमान के मुकाबले उत्पाद शुल्क संग्रह लक्ष्य से केवल 4.5 फीसदी कम था मगर सरकार के राजस्व संग्रह पर इसका प्रतिकूल असर पड़ा।
विदेशी मोर्चे की बात करें तो 2022-23 के पहले दस महीनों में भारत का निर्यात केवल 8.5 फीसदी बढ़ा, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में इसमें 44 फीसदी का शानदार इजाफा हुआ था। कच्चे तेल और उर्वरक की अधिक कीमतों के कारण भारत का आयात भी 2022-23 के अप्रैल से जनवरी के दौरान करीब 22 फीसदी बढ़ गया। हालांकि 2021-22 में हुई 56 फीसदी वृद्धि के मुकाबले यह आंकड़ा कम था मगर वैश्विक आर्थिक मंदी और रूस-यूक्रेन युद्ध का असर भारत के व्यापार संतुलन पर साफ दिखने लगा था।
ऐसी प्रतिकूल वृहद आर्थिक चुनौतियों के बीच भारत सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्ध के असर को इस तरह संभाला कि अर्थव्यवस्था पर इसका असर कम ही नहीं बल्कि कम से कम रहा। 6 फीसदी के आसपास रोकी गई मुद्रास्फीति बेशक अधिक थी मगर दूसरे देशों की तरह बुरी नहीं थी, जहां मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी दो अंकों में रही थी। बहरहाल मुद्रा की लागत तेजी से बढ़ी, जिससे निवेश और वृद्धि की संभावनाओं पर मार हुई। वास्तव में आने वाले महीनों में वृद्धि की बरकरार रखना कठिन काम था।
तेल कंपनियों पर अप्रत्याशित लाभ कर (विंडफॉल टैक्स) लगाने के कारण कर राजस्व बढ़ गया, जिससे कम उत्पाद शुल्क संग्रह और सब्सिडी के कारण बढ़े खर्च की कुछ हद तक भरपाई हो गई। इससे सरकार राजकोषीय घाटा कम करने के रास्ते पर चल पाई, हालांकि उसकी रफ्तार वांछित स्तर से कम रही। 2022-23 में अप्रैल-जनवरी के दौरान व्यापार घाटा 51 फीसदी बढ़ गया। उस दौरान निर्यात में 8.5 फीसदी तेजी आई, जबकि आयात पूरे 22 फीसदी बढ़ गया।
हालांकि व्यापार घाटा और भी अधिक हो सकता था मगर सरकार ने चतुराई दिखाई और रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया, जो ब्रेंट क्रूड के मुकाबले काफी कम कीमत पर मिला। इससे भी अहम बात यह रही कि रूस से तेल खरीदने पर भी भारत को पश्चिम से किसी तरह के प्रतिबंध या प्रतिकूल कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा।
जनवरी 2023 आते-आते रूस भारत को कच्चे तेल की सबसे अधिक आपूर्ति करने वाला देश बन गया और भारत की कुल आयात जरूरतों का एक चौथाई से अधिक हिस्सा इसी देश से पूरा होने लगा। इससे उन बाजारों की स्थिति भी बेहतर हुई, जहां से भारत हमेशा से अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी करता आया है।
2022 में अप्रैल से दिसंबर के बीच भारत का रूस का तेल आयात बढ़कर 22 अरब डॉलर हो गया, जो 2021 के इन्हीं महीनों के दौरान केवल 2.5 अरब डॉलर था। कुल मिलाकर फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वाकई एक झटका थी मगर इसका असर अभी तक काबू में रखा गया है।
आने वाले महीनों में भी यह काबू में रहेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि रूस-यूक्रेन युद्ध कितना तेज होगा और कितना फैलेगा तथा उस पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया कितनी कारगर होगी।