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कूटनीति का नया क्षेत्र कोविड टीका

Last Updated- December 15, 2022 | 1:17 AM IST

इजरायल से लेकर फ्रांस और अमेरिका से लेकर स्वीडन तक, अगर दुनिया का कोई भी देश या गठबंधन कोविड-19 का टीका विकसित करने में जुटा है तो भारत उस मुहिम का हिस्सा है। यह कूटनीति का नया क्षेत्र बन रहा है। इसका अपवाद केवल चीन है, जो सिनोवैक विकसित कर रहा है और उसने इस क्षेत्र में अपने साझेदार के रूप में बांग्लादेश को चुना है। विदेश मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘हमें भागीदारी के लिए आमंत्रित नहीं किया गया।’
हालांकि बाजार में सबसे पहले आने वाला टीका स्पूतनिक 5 हो सकता है, जो 2020 के आखिर तक आने की संभावना है। यह टीका रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत आने वाली गमालेया नैशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी ऐंड माइक्रोबायोलॉजी और भारत की दवा कंपनी डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज (डीआरएल) मिलकर विकसित कर रही हैं। इस टीके के विकास में रशियन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड सहायता दे रहा है, जो वहां का सॉवरिन वेल्थ फंड है।
इसलिए अगर ताकत का नया वैश्विक पैमाना कोविड का टीका है तो इस दौड़ को जीतने वाला भारत का साझेदार रूस है। इस यह गठबंधन को लेकर कोई अचंभा नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके जन्मदिन (17 सितंबर) पर बधाई देने वाले विश्व के पहले नेता प्रधानमंत्री व्लादीमिर पुतिन थे। भारत विश्व के उन कुछेक देशों में से एक था, जिसने अपने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को जून में दूसरे विश्व युद्ध में जीत की 75वीं वर्षगांठ पर मॉस्को में आयोजित समारोह में हिस्सा लेने के लिए भेजा था, जबकि उस समय कोविड-19 का संक्रमण अपने चरम पर था। पुतिन को जनमत संग्रह में जीत मिलने पर बधाई देने वाले मोदी विश्व के पहले नेता थे। इस जनमत संग्रह से पुतिन को यह अधिकार मिल गया है कि अगर वह चाहें तो वर्ष 2036 तक रूस के राष्ट्रपति रह सकते हैं। रूस ने ही भारत को रूस-भारत-चीन (आरआईसी) समूह के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि उस समय भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आमने-सामने थीं। रूस ने शांघाई सहयोग संगठन की बैठक की मेजबानी की, जहां भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने सीमा पर तनाव के बाद पहली आमने-सामने बैठक की।
 अब रूस और भारत कोविड-19 का टीका विकसित करने के लिए मिलकर काम करेंगे, जो विश्व का पहला टीका साबित हो सकता है। अत्यधिक प्रशंसित पुस्तक ‘री-इमर्जिंग रशिया’ की लेखिका और जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर अनुराधा मित्रा चिनॉय ने कहा, ‘टीके के विकास में रूस का रिकॉर्ड पुराने समय से ही अच्छा रहा है। उन्होंने सार्स और इबोला के टीके विकसित किए और उन प्रकोपों से लडऩे में अफ्रीकी देशों को मदद दी। कोविड-19 का टीका भी उसी टीके के स्टे्रन से बना है।’ उन्होंने कहा, ‘रूस बड़े पैमाने पर तीसरे चरण के परीक्षण कर रहा है। वह ज्यादातर परीक्षण अपनी सेना पर कर रहा है और अब भी परीक्षण जारी हैं। हालांकि पश्चिमी देश इन परीक्षणों को वैधता को मान्यता नहीं देते हैं।’
मित्रा चिनॉय ने कहा कि भारत और रूस दवा विकास में 1960 के दशक से ही साझेदार रहे हैं। उस समय सार्वजनिक क्षेत्र की दवा कंपनी इंडियन ड्रग्स ऐंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड  के पूर्ववर्ती सोवियत संघ में अपनी समकक्ष कंपनी के साथ व्यावसायिक संबंध थे। मॉस्को में भारत के राजदूत रह चुके पीएस राघवन कहते हैं, ‘रूस भारतीय दवाओं का बहुत बड़ा आयातक है। रूस के बाजार में डीआरएल का बहुत अच्छा नाम है। रूसी टीका विकसित करते हैं, लेकिन उनके पास विनिर्माण क्षमता कम है। यह खाई भारतीय कंपनियां पाट देती हैं।’ राघवन कहते हैं कि इससे कूटनीति का बहुत कम संबंध है। उन्होंने कहा, ‘उनके पास टीका है, हम उसका विनिर्माण करना चाहते हैं। यह हमारे हित में है, यह उनके भी हित में है। मैं यह कहूंगा कि इसे न लेना हमारी मूर्खता होती।’
हालांकि इसकी भी पृष्ठभूमि है। दरअसल इसकी शुरुआत हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) से हुई। एससीक्यू मलेरिया रोधी दवा है, जिसका उत्पादन भारत बड़े पैमाने पर करता है। मार्च में जब यह महामारी अपने शुरुआती चरण में थी, उस समय मॉस्को में भारत के राजदूत बाल वेंकटेश वर्मा से रूस की सरकार ने पूछा कि भारत एचसीक्यू की कितनी मात्रा की आपूर्ति कर सकता है? यह दवा कुछ निश्चित परिस्थितियों में संक्रमण के खिलाफ प्रभावी रही थी। भारत में जनता के बीच चर्चा राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आलोचना और उनकी दवा की मांग पर केंद्रित थी। लेकिन भारत ने रूस को 10.5 करोड़ टैलबेट भेजी। अब तक भारत से रूस को 82 टन चिकित्सा सामग्री भेजी जा चुुकी है। हालांकि कुल कारोबार में इसका मामूली हिस्सा है, लेकिन इससे भारत-रूस के संबंधों की नई दिशा का पता चलता है। इस पर दुनिया के बहुत से देश भी गौर करेंगे।
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है, ‘भारतीय कंपनियां भी टीके पर काम कर रही हैं। लेकिन हमारे यहां बड़ी आबादी है, इसलिए टीके का सस्ता होना जरूरी है। इसलिए हम राजनीतिक रंग की परवाह किए बिना टीका बनाने के किसी भी प्रयास का हिस्सा बनने के लिए हर कदम उठाएंगे।’ पहले कूटनीति की परीक्षा तेल से हुई। फिर डेटा से। अब कोविड-19 के टीके से कूटनीति की परीक्षा होगी।

First Published - September 26, 2020 | 12:35 AM IST

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