प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के साथ ऊर्जा क्षेत्र में व्यापक सहयोग का आह्वान किया है, जबकि यूक्रेन से चल रहे युद्ध को देखते हुए पश्चिमी देश लगातार भारत पर दबाव बना रहे हैं कि वह रूस से तेल का आयात बंद करे।
रूस में दूरस्थ पूर्वी इलाके साइबेरिया में स्थित व्लादीवोस्तक में आयोजित सातवें ईस्टर्न इकनॉमिक फोरम (ईईएफ) को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘भारत आर्कटिक मामलों में रूस के साथ भागीदारी मजबूत बनाने को लेकर गंभीर है। ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की व्यापक संभावनाएं हैं।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि रूस कोकिंग कोल की आपूर्ति के माध्यम से भारत के स्टील उद्योग का एक अहम साझेदार बन सकता है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने 13.75 अरब डॉलर के कोकिंग कोल का आयात किया था, जिसमें रूस की आपूर्ति महज 2.4 प्रतिशत थी। भारत के लिए वह कोकिंग कोल का छठा सबसे बड़ा स्रोत है, जिसने 33.4 करोड़ डॉलर के कोयले की आपूर्ति की है। इसकी तुलना में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के कुल आयात में 69.9 प्रतिशत आपूर्ति की है, जिसका मूल्य 9.6 अरब डॉलर है।
रूस के पास विश्व के सबसे बड़े कोयला भंडारों में से एक है। यह विश्व के कोयले का पांचवां सबसे बड़ा उपभोक्ता है और छठा सबसे बड़ा उत्पादक है। इस सप्ताह की शुरुआत में बिज़नेस स्टैंडर्ड ने खबर दी थी कि भारत तेल संपन्न साइबेरिया क्षेत्र में दीर्घावधि आधार पर अपने पांव पसारने को इच्छुक है। इस बात की संभावना है कि संयुक्त तेल अन्वेषण किया जाए और चल रहे अपतटीय तेल और गैस क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएं तलाशी जाएं, जिन्हें पश्चिमी देशों की कंपनियां छोड़ रही हैं।
अगस्त में रूस भारत का तीसरा बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया और उसने भारत की तेल जरूरतों के 18.2 प्रतिशत की आपूर्ति की है। भारत के कुल आयात में इस क्षेत्र से कच्चे तेल की हिस्सेदारी यूराल ग्रेड की तुलना में लगातार बढ़ रही है। यूराल ग्रेड भारत की परंपरागत पसंद रहा है। रूस के नेतृत्व में ईस्टर्न साइबेरिया पैसिफिक ओशन (ईएसपीओ) पाइपलाइन से एशिया प्रशांत के बाजारों में आपूर्ति की जाती है और यूक्रेन युद्ध के बाद भारत और चीन की ओर से इसकी मांग बढ़ी है। मोदी ने कहा कि भारत ने रूस के सुदूर पूर्वी इलाके में दवा और हीरों के क्षेत्रों में उल्लेखनीय निवेश किया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि रूस के साथ द्विपक्षीय सहयोग विकसित करने में कनेक्टिविटी की अहम भूमिका होगी। आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना इसमें अहम होगा, जो यूक्रेन के साथ विवाद और कोविड महामारी के बाद महत्त्वपूर्ण हो गया है। इसकी वजह से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर व्यापक असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप खाद्यान, उर्वरक और ईंधन की कमी विकासशील देशों के लिए प्रमुख रूप से चिंता का विषय बन गए।