इंसानों और हाथी की दोस्ती और हाथी की रक्षा करने की सच्ची कहानी दिखाने वाले.. दिल छू लेने वाले भारतीय वृत्तचित्र ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ ने ऑस्कर जीता। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। भारत में अब भी खुद को बड़ा साबित करने के लिए और हाथी दांत के लिए हाथियों का शिकार किया जा रहा है।
देश में साल 1986 से ही हाथी दांत की तस्करी पर प्रतिबंध लगा हुआ है। इसके बावजूद इसका अवैध व्यापार फल-फूल रहा है। वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो साल 2018 से 2022 तक यानी पिछले पांच वर्षों में देश भर के शिकारियों और व्यापारियों से 475 किलो हाथी दांत और इसकी कलाकृतियां जब्त की गई हैं।
1976 में भारत वन्य जीव एवं वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर संधि (साइट्स) में शामिल होने वाला 25वां देश बना। तब से वह हाथियों के संरक्षण के प्रयास में शामिल रहा है। इसका हिस्सा बनने के बाद से भारत ने देश में हाथी दांत की बिक्री, अफ्रीकी हाथी के दांतों के आयात पर रोक लगाने और हाथियों के लिए परियोजना शुरू करने सहित कई पहल कीं। फिर भी देश के चोर बाजारों में हाथियों का शिकार और हाथी दांत का व्यापार बदस्तूर जारी है।
दुनिया भर में हाथी दांत का इस्तेमाल अपनी दौलत का रुआब झाड़ने और धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। हाथी दांत की बढ़ती मांग पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदेह हो सकती है, खासकर हाथियों की आबादी के लिए।
लोकसभा में दिए गए उत्तर के अनुसार शिकारियों ने साल 2018 से 2022 तक 41 हाथी मार डाले। इनमें से आधे हाथी मेघालय (12) और ओडिशा (10) में मारे गए। शिकार के अलावा पिछले पांच साल 25 हाथियों को जहर दे दिया गया।
मामलों की नहीं मिलती जानकारी
अवैध शिकार की संख्या दो अंकों में भी नहीं है। इस पर जानकारों का कहना है कि आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं क्योंकि शिकार के कई मामले दर्ज भी नहीं किए जाते हैं। दक्षिण एशियाई गवर्निंग बोर्ड ऑफ वेटलैंड्स इंटरनैशनल के सदस्य असद आर रहमानी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अवैध शिकार के दर्ज आंकड़े हकीकत से काफी कम हैं।’ एक जले हुए हाथी का शव ढूंढने (पिछले साल दिसंबर में सिमिलिपाल टाइगर रिजर्व के कर्मियों ने शिकार छिपाने के लिए आग लगा दी थी) करने वाली जनहित याचिका पर ओडिशा उच्च न्यायालय ने कहा कि 2022 प्रदेश के हाथियों के लिए सबसे खराब सालों में रहा। इस साल फरवरी में शिकार की घटना के चश्मदीद की हत्या करने के आरोप में वन विभाग के तीन कर्मियों को गिरफ्तार किया गया था।
सेव द एलिफेंट्स के आंकड़ों के अनुसार इधर कुछ वर्षों में हाथी दांत के अवैध बाजार में कीमतें बढ़ रही हैं। हाथी दांत के प्रमुख बाजारों में से एक चीन में इसकी थोक कीमतें चढ़ गई हैं। 2017 में जहां यह 750 डॉलर प्रति किलोग्राम था वहीं 2020 में इसकी कीमत दोगुनी हो गई।
पोचिंगफैक्ट्स के अनुसार अवैध हाथी दांतों के प्रमुख देश चीन, जापान, थाईलैंड, हॉन्गकॉन्ग, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर और वियतनाम हैं।
भारत में सैकड़ों साल से हाथी दांत का इस्तेमाल ट्रॉफी की तरह या अमीरी दिखाने के लिए किया जाता रहा है। मगर यहां का हाथी दांत नक्काशी उद्योग 4,000 साल पहले का बताया जाता है। रहमानी कहते हैं, ‘भारत हाथी दांत की कारीगरी के जाना जाता है। यहां इसके अवैध व्यापार पर रोक लगाना मुश्किल है। सरकार हाथी दांत के व्यापार को नियंत्रित करने में सक्षम रही है, लेकिन अब भी लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।’
वैश्विक समस्या
विश्व वन्यजीव कोष के अनुसार 1930 में करीब 1 करोड़ जंगली हाथी अफ्रीकी महाद्वीप में पाए जाते थे। मगर दशकों से चले आ रहे शिकार ने अफ्रीकी हाथियों की आबादी को खत्म कर दिया। जानकारों ने 2016 में अनुमान लगाया था कि एक दशक में अफ्रीकी हाथियों की आबादी 1,11,000 घट गई।
अफ्रीका में अब केवल 4.15 लाख हाथी ही है और भारत में केवल 29,964 हाथी हैं। हाथियों को बचाने के प्रयास में भारत सरकार को बड़ी उपलब्धि हासिल हुई। मगर पिछले साल दुनिया भर के
पर्यावरणविदों ने भारत को आड़े हाथों लिया, जब इसने हाथी दांत के व्यापार को फिर शुरू करने की मांग पर होने वाले मतदान में हिस्सा नहीं लिया। साइट्स में शामिल होने के बाद ऐसा पहली बार हुआ।
नामीबिया, बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे से नियमित रूप से नियंत्रित हाथीदांत के व्यापार को अनुमति देने वाला प्रस्ताव 83-15 से असफल रहा।
विशेषज्ञ चिंतित हैं कि देश के दशकों पुराने हाथी दांत विरोधी अभियान में अगर कोई बदलाव होता है तो हाथी दांत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के खिलाफ भी नरम रुख हो सकता है। एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘यदि भारत प्रतिबंध का समर्थन नहीं करता है और हाथी दांत के व्यापार को अनुमति देता है तो दशकों की कड़ी मेहनत विफल हो जाएगी।’
इंसान और हाथियों में तकरार
भारत सरकार ने साल 1991-92 में हाथियों, उनके ठिकाने और गलियारों की रक्षा करने, इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष रोकने के लिए केंद्र प्रायोजित योजना प्रोजेक्ट एलिफेंट की शुरुआत की। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार साल 2018 से 2022 तक हाथी और इंसानों के संघर्ष के कारण 2,544 लोगों की जान चली गई। सरकार ने प्रोजेक्ट एलिफेंट के 30 साल पूरे होने पर 7 और 8 अप्रैल को काजीरंगा नैशनल पार्क में गज उत्सव मनाने का निर्णय लिया है।
इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष रोकने और हाथियों को मानव निर्मित आपदाओं से बचाने के सरकार के प्रयासों पर प्रोजेक्ट एलिफेंट के निदेशक रमेश कुमार पांडे ने कहा कि विभाग सभी हितधारकों को प्रशिक्षित कर रहा है और दुर्घटनाओं से बचने के लिए बुनियादी ढांचा भी तैयार कर रहा है।