पिछले सप्ताह संसद द्वारा पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम मंगलवार से लागू हो गया। सरकार ने एक अधिसूचना में यह जानकारी दी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया, ‘‘वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की धारा 1 की उप-धारा (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने आठ अप्रैल, 2025 से उक्त अधिनियम के प्रावधान लागू किए हैं।’’
लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमशः तीन अप्रैल और चार अप्रैल की मध्य रात्रि के बाद वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पांच अप्रैल को प्रस्तावित कानून को अपनी मंजूरी दे दी थी। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने विधेयक का समर्थन किया, वहीं विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन ने इसका विरोध किया।
कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी सांसदों ने कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। सत्तारूढ़ गठबंधन ने इसे पारदर्शिता बढ़ाने और पिछड़े मुसलमानों एवं समुदाय की महिलाओं के लिए सशक्तीकरण का कदम बताया है। वहीं, विपक्ष ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए कहा है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम मुसलमानों के अधिकारों का हनन करता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली जेपीसी को बताया है कि 280 संरक्षित स्मारकों को वक्फ संपत्तियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। हालांकि इस साल फरवरी में संसद में पेश की गई जेपीसी की रिपोर्ट में ऐसे 254 संरक्षित स्मारकों का जिक्र है। आवास और शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार यह रिपोर्ट वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 का आधार तैयार करती है। मंत्रालय ने जेपीसी को बताया कि भूमि और विकास कार्यालय के तहत 108 संपत्तियां, दिल्ली विकास प्राधिकरण के नियंत्रण वाली 130 संपत्तियां और 123 सार्वजनिक संपत्तियां वक्फ के रूप में घोषित की गई हैं जिन पर पिछले साल सितंबर तक मुकदमा शुरू किया गया।
वक्फ संपत्ति प्रबंधन प्रणाली पोर्टल के अनुसार, उस महीने यानी सितंबर 2024 तक 58,898 संपत्तियों पर अतिक्रमण चिह्नित किया गया था। इस तिथि तक न्यायाधिकरण और अन्य अदालतों में चल रहे 19,207 मामलों में से 5,220 अतिक्रमण और 1,340 अलगाव से संबंधित थे। वक्फ संपत्ति प्रबंधन पोर्टल के ताजा आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष 28 फरवरी तक इन मामलों में कोई तब्दीली नहीं हुई और यह संख्या समान बनी हुई है। यहां अलगाव का अर्थ वक्फ बोर्ड से उचित आधिकारिक प्रक्रिया के बिना ‘वक्फ’ संपत्ति के रूप में नामित भूमि को स्थानांतरित करने, बेचने, उपहार देने, गिरवी रखने अथवा किसी को दे देने से है।
जेपीसी का कहना है कि इन मुकदमों का एक कारण वक्फ संपत्तियों का अस्पष्ट स्वामित्व या उन्हें किसी के नाम कर देना हो सकता है। ऐसा कदम अक्सर उचित दस्तावेजों के बिना दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर उठाया जाता है। पंजीकरण के समय इन अतिक्रमित संपत्तियों में सबसे अधिक 42,684 पंजाब वक्फ बोर्ड से संबंधित थीं। अतिक्रमण के सबसे ज्यादा 2461 मामले तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड से जुड़े हैं।
समिति ने सिफारिश की है कि पहले से ही ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ के रूप में पंजीकृत मौजूदा वक्फ संपत्तियों को दोबारा नहीं खोला जाना चाहिए और उन्हें वक्फ संपत्ति के रूप में ही रखा जाना चाहिए। चाहे उनके पास वक्फ डीड हो या न हो, उनकी स्थिति में बदलाव नहीं होना चाहिए। लेकिन इसमें यह शर्त अवश्य जुड़ी होनी चाहिए कि उस संपत्ति पर न तो किसी तरह का विवाद हो और न ही वह सरकार की हो।
‘उपयोग के आधार पर वक्फ’ की अवधारणा खत्म:
अब कोई ज़मीन केवल इस आधार पर वक्फ नहीं मानी जाएगी कि उसका उपयोग लंबे समय से वक्फ के तौर पर हो रहा है। सिर्फ वही ज़मीन वक्फ मानी जाएगी जो विधिवत रूप से वक्फ घोषित या समर्पित हो।
ज़मीन दान के लिए शर्तें कड़ी:
जो व्यक्ति वक्फ के लिए ज़मीन दान करेगा, उसे कम से कम पिछले पांच वर्षों से मुस्लिम होना ज़रूरी होगा। इसके अलावा, नए प्रावधानों में मुस्लिम महिलाओं के विरासत अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की गई है।
सरकारी ज़मीन पर स्पष्टता:
1995 के कानून में यह स्पष्ट नहीं था कि क्या सरकारी ज़मीन वक्फ घोषित हो सकती है। नए विधेयक में साफ किया गया है कि यदि किसी सरकारी संपत्ति को गलती से वक्फ के रूप में दर्ज कर लिया गया है, तो वह अब वक्फ नहीं मानी जाएगी। विवाद की स्थिति में वक्फ बोर्ड की जगह अब ज़िला कलेक्टर अंतिम निर्णय देगा और मामला राज्य के भू-राजस्व कानूनों के तहत निपटाया जाएगा।
वक्फ घोषित करने का अधिकार अब बोर्ड के पास नहीं:
अब वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार वक्फ बोर्ड की बजाय राज्य सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारियों के पास होगा।
सर्वे की ज़िम्मेदारी बदली:
पहले वक्फ संपत्तियों का सर्वे सर्वे आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्त द्वारा किया जाता था। अब यह ज़िम्मेदारी ज़िला कलेक्टर को दी गई है, जिससे इसे राज्य के भूमि रिकॉर्ड के साथ समन्वित किया जा सके।
केंद्रीय वक्फ परिषद का पुनर्गठन:
1995 के कानून के अनुसार इसके सभी सदस्य मुस्लिम होते थे, जिनमें दो महिलाएं अनिवार्य थीं। नए विधेयक में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है। अब सांसदों, पूर्व न्यायाधीशों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुस्लिम होना अनिवार्य नहीं होगा। हालांकि, मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, इस्लामी क़ानून के जानकार और वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मुस्लिम ही रहेंगे। दो मुस्लिम महिलाओं की मौजूदगी भी अनिवार्य होगी।
राज्य वक्फ बोर्ड में भी बदलाव:
पहले इसमें दो निर्वाचित मुस्लिम सांसद, विधायक या बार काउंसिल सदस्य शामिल हो सकते थे। अब राज्य सरकार ही सभी सदस्यों की नियुक्ति करेगी। इसमें दो गैर-मुस्लिम सदस्य, शिया, सुन्नी, पिछड़े वर्ग के मुस्लिम, बोहरा और आगा-खानी समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। कम से कम दो मुस्लिम महिलाएं भी सदस्य होंगी।
वक्फ ट्रिब्यूनल की संरचना बदली:
पहले ट्रिब्यूनल में एक न्यायाधीश, एक अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट और एक मुस्लिम क़ानून विशेषज्ञ शामिल होता था। नए विधेयक में मुस्लिम क़ानून विशेषज्ञ की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। अब ट्रिब्यूनल में ज़िला न्यायालय का न्यायाधीश अध्यक्ष होगा और एक राज्य सरकार का संयुक्त सचिव सदस्य होगा।
उच्च न्यायालय तक पहुंच और केंद्र की भूमिका बढ़ी
1995 के कानून के तहत वक्फ विवादों में हाईकोर्ट की भूमिका सीमित थी। अब ट्रिब्यूनल के निर्णयों को 90 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
केंद्र सरकार की भूमिका भी बढ़ गई है। पहले वक्फ खातों की ऑडिट की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों के पास थी। अब केंद्र सरकार वक्फ पंजीकरण, लेखा और ऑडिट से जुड़े नियम बना सकेगी। ऑडिट की ज़िम्मेदारी CAG या केंद्र द्वारा नामित अधिकारी को दी जाएगी।
बोहरा और आगा-खानी वक्फ बोर्ड का प्रावधान
1995 के कानून में यह प्रावधान था कि अगर शिया वक्फ संपत्ति कुल वक्फ संपत्तियों के 15% से ज़्यादा हो, तो शिया वक्फ बोर्ड बनाया जा सकता है। अब यह प्रावधान बोहरा और आगा-खानी समुदायों के लिए भी लागू होगा।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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