उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय यह प्रस्ताव लाने का प्रयास कर रहा है कि कोई ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि मरीज उतनी ही दवाएं खरीदे, जितने की उन्हें आवश्यकता हो। मंत्रालय चाहता है कि लोगों को ऐसी सुविधा दी जाए कि उन्हें दवा का पूरा पैक खरीदने के लिए मजबूर न होना पड़े। ऐसे में हाल ही में एक सर्वे आया है जिसमें यह बताया गया है कि लोग 10 से 70 फीसदी खरीदी गई दवाएं फेंक देते हैं और उसका कोई उपयोग नहीं हो पाता है।
यह सर्वे लोकलसर्कल (LocalCircles) की तरफ से कराया गया था, जिसमें 33,000 लोगों ने हिस्सा लिया। सर्वे में शामिल लोगों में 36 फीसदी लोगों ने बताया कि वे जितनी दवा खरीदते हैं उसकी 10 फीसदी बाहर फेंक देते हैं। 27 फीसदी लोगों का कहना था कि वे 10 से 30 फीसदी तक दवाएं फेक देते हैं। वहीं, 6 फीसदी लोगों का कहना है कि वे 30 से 50 फीसदी दवाएं फेकते ही हैं और 6 फीसदी लोगों ने कहा कि वे जितनी दवाएं खरीदते हैं उसमें से काफी मात्रा में दवाएं बच जाती हैं, जिसका कोई यूज नहीं हो पाता और 50 से 70 फीसदी दवाएं फेंकनी पड़ती हैं।
इस सर्वे में तीन तरह की बातें ध्यान में रखी गई थी। सर्वे में यह पता लगाया गया कि पिछले तीन साल में खरीदी गई दवाओं में से कितनी फीसदी दवाओं का कोई उपयोग नहीं हुआ, कितनी फीसदी दवाएं फेंक दी गई या कितनी दवाएं एक्सपायर हो गईं।
सर्वे में यह सामने आया कि पिछले 3 साल में खरीदी गई दवाओं में से 70 फीसदी दवाएं बिना किसी उपयोग के फेंक दी गई और ऐसा हर 4 में से 3 घरों में पाया गया।
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सर्वे में शामिल 50 फीसदी लोगों ने बताया कि केमिस्ट जरूरत से ज्यादा दवा किसी मरीज को देते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई दवा का एक पैकेट है तो वे पूरी दवा दे देते हैं, जबकि कस्टमर को कम ही दवा की जरूरत होती है। सर्वे में शामिल 29 फीसदी लोगों ने कहा कि जब उन्हें ये लगने लगा कि वे स्वस्थ हो गए हैं तो डॉक्टर द्वारा बताए गए समय से पहले ही उन्होंने दवा लेना बंद कर दी। करीब 18 फीसदी लोगों का कहना था कि ई-फार्मेसी से दवाएं जरूरत से ज्यादा यानी higher minimum quantity बेची जाती हैं, जिसके कारण उनका उपयोग नहीं हो पाता।
दूसरी ओर, केमिस्ट का कहना है कि वे उतनी ही दवाएं बेचते हैं जितनी कि मरीज को जरूरत होती है। ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट ऐंड ड्रगिस्ट (AIOCD)के जनरल सेक्रेटरी राजीव सिंघल ने कहा, हम कभी भी जरूरत से ज्यादा दवा खरीदने के लिए किसी को मजबूर नहीं करते हैं। जबकि, मरीज ही जब थोड़ा स्वस्थ महसूस करते हैं तो दवा लेना बंद कर देते हैं, जिसके कारण उनके पास दवाएं बच जाती हैं और उनका उपयोग नहीं हो पाता है। कभी-कभी लोग कुछ कॉमन दवाएं, जैसे पैरासिटामॉल, ऐंटीएसिड खरीद लेते हैं और कुछ समय तक यूज न हो पाने के कारण ये दवाएं एक्सपायर हो जाती हैं।
बता दें कि AIOCD से देशभर के करीब 12 लाख केमिस्ट जुड़े हुए हैं।
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सिंघल ने कहा कि देश में बेची जाने वाली कुल दवाओं में से औसतन लगभग 1.5 फीसदी दवाएं एक्सपायर होने के बाद बरबाद हो जाती हैं और इन्हें कंपनियों को वापस भेज दिया जाता है। भारतीय दवा बाजार लगभग 1.8 लाख करोड़ रुपये का है, ऐसे में लगभग 270 करोड़ रुपये मूल्य की दवाएं शेल्फ लाइफ यानी बिना किसी तरह के उपयोग के नुकसान के कारण बरबाद हो जाती हैं। सिंघल ने कहा, ‘इसमें से लगभग 20-30 फीसदी केमिस्ट के पास ही बरबाद हो जाती हैं क्योंकि ये दवाओं के ब्लिस्टर पैक होती हैं जिन्हें वह कंपनियों को वापस नहीं कर सकते हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर ऐसी बरबादी थोक विक्रेताओं के पास होती है।