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SEBI कानूनों में दशकों बाद बड़ा बदलाव: लोकसभा में पेश हुआ सिक्योरिटीज मार्केट्स कोड बिल 2025

इस नए कोड से बाजार के नियमों को सिद्धांतों पर आधारित बनाया जाएगा, कंप्लायंस का बोझ कम होगा, पुरानी और दोहराई जाने वाली चीजें हटेंगी

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खुशबू तिवारी   
Last Updated- December 18, 2025 | 7:35 PM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को लोकसभा में सिक्योरिटीज मार्केट्स कोड (SMC) बिल, 2025 पेश किया। यह बिल शेयर बाजार से जुड़े नियमों में कई दशकों बाद सबसे बड़ा सुधार लाने वाला है। इसका मकसद तीन पुराने कानूनों को खत्म करके एक नया एकीकृत कानून बनाना है। ये तीन कानून हैं सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1956; SEBI एक्ट, 1992 और डिपॉजिटरीज एक्ट, 1996।

इस नए कोड से बाजार के नियमों को सिद्धांतों पर आधारित बनाया जाएगा, कंप्लायंस का बोझ कम होगा, पुरानी और दोहराई जाने वाली चीजें हटेंगी और आम प्रक्रियाओं के लिए एकसमान तरीके अपनाए जाएंगे।

SEBI की जांच और कार्रवाई में साफ अलगाव

बिल में एक बड़ा बदलाव यह है कि SEBI की जांच-पड़ताल जैसे कामों और कार्रवाई जैसे शो-कॉज नोटिस जारी करने या फैसला सुनाने के बीच दूर की दूरी रखने का नियम लिखित रूप से डाला गया है। इससे नियामक काम में ज्यादा निश्चितता आएगी। साथ ही, जांच और अंतरिम आदेशों के लिए समय सीमा भी तय की गई है।

SEBI बोर्ड का आकार भी बढ़ाया जा रहा है। अभी नौ सदस्य हैं, अब चेयरपर्सन समेत ज्यादा से ज्यादा 15 सदस्य हो सकते हैं। बोर्ड के सदस्यों को फैसला लेते समय अपना कोई सीधा या परोक्ष हित बताना जरूरी होगा।

इसके अलावा, बिल में बाजार की मुख्य संस्थाओं जैसे स्टॉक एक्सचेंज, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और डिपॉजिटरीज को आधिकारिक मान्यता दी गई है। इन संस्थाओं को अपने बाय-लॉज बनाने का अधिकार मिलेगा, ताकि सबको बराबर पहुंच मिले, पारदर्शिता बनी रहे, एक-दूसरे के साथ जुड़ाव आसान हो और बाजार में गड़बड़ी कम से कम हो।

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वित्त मंत्री ने बताया कि बिल को संसद की वित्त संबंधी स्थायी समिति के पास भेजा जाएगा। समिति अपनी रिपोर्ट संसद के अगले सत्र के पहले दिन देगी। इस एकीकरण की घोषणा तो 2021 के बजट में ही हो गई थी।

लोकसभा में कुछ विपक्षी नेताओं ने चिंता जताई कि एक ही संस्था को ज्यादा अधिकार मिलने से नियामक हस्तक्षेप बढ़ सकता है। इस पर सीतारमण ने जवाब दिया कि अभी सिर्फ बिल पेश किया जा रहा है और इसे समिति के पास भेजा जाएगा, जहां हर मुद्दे पर विस्तार से बहस हो सकती है। विधायी अधिकार से जुड़ी कोई बात इसमें नहीं है।

बिल में कुछ उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी से हटाकर सिर्फ सिविल जुर्माना लगाने का प्रावधान है, खासकर जो प्रक्रियात्मक या तकनीकी प्रकृति के हों। लेकिन बाजार में गड़बड़ी जैसे गंभीर मामलों को सख्ती से देखा जाएगा, इन पर सिविल जुर्माने के साथ-साथ आपराधिक कार्रवाई भी हो सकती है।

एक्सपर्ट का क्या है कहना?

पूर्व SEBI अधिकारी और रेगस्ट्रीट लॉ एडवाइजर्स के सीनियर पार्टनर सुमित अग्रवाल का कहना है कि नए कोड में समय सीमाएं तो डाली गई हैं, जो ढांचे को बेहतर बनाती हैं, लेकिन ये अंतिम नहीं हैं। जांच, निरीक्षण, अंतरिम आदेश और अपीलों में बढ़ोतरी की गुंजाइश है, इसलिए नियामक कंपनियों को लंबी अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है, जब तक कि SEBI खुद सख्त अनुशासन नहीं अपनाए।

उन्होंने यह भी कहा कि कोड से नियामक के विवेकाधीन और अंतरिम अधिकार काफी बढ़ गए हैं, जबकि प्रभावित पक्ष के लिए SEBI अपील ट्रिब्यूनल या अदालत जाने की गुंजाइश कम हो गई है। इस कोड की सफलता एकीकरण पर कम और इन अधिकारों के संतुलित, पारदर्शी व संयमित इस्तेमाल पर ज्यादा निर्भर करेगी।

स्वतंत्र वकील व्यापक देसाई ने कहा कि जुर्माने से जुड़े हिस्सों में बड़े बदलाव आए हैं। कुछ धाराएं बहुत व्यापक और विवेकाधीन हैं, जिससे अलग-अलग व्याख्या हो सकती है और मुकदमेबाजी बढ़ सकती है। उन्होंने बिल पर ज्यादा व्यापक चर्चा की जरूरत बताई, क्योंकि इस पर कोई सार्वजनिक परामर्श या लॉ कमीशन की रिपोर्ट नहीं हुई। इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में ऐसे बदलावों पर हितधारकों की राय लेना बहुत जरूरी है।

इकोनॉमिक लॉज प्रैक्टिस (ELP) के पार्टनर केसी जैकब ने Ombudsperson की व्यवस्था का स्वागत किया। उनका कहना है कि यह निवेशकों की सुरक्षा मजबूत करने का बड़ा कदम है। सरकार अब सिर्फ शिकायतें ट्रैक करने से आगे बढ़कर उन्हें सुलझाने की दिशा में जा रही है। इससे अस्वीकार शिकायत और SEBI अपील ट्रिब्यूनल के जटिल मामलों के बीच की खाई पाटी जाएगी।

First Published : December 18, 2025 | 7:35 PM IST