प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 80 लाख करोड़ रुपये के घरेलू म्युचुअल फंड (एमएफ) उद्योग के लिए लागत का ढांचा बदल दिया है। बाजार नियामक ने बुधवार को निवेशकों के लिए पारदर्शिता में सुधार लाने के साथ परिसंपत्ति प्रबंधकों पर अपने कदमों के प्रभाव को संतुलित करने का भी प्रयास किया है।
म्युचुअल फंड उद्योग के लिए यह संशोधित ढांचा 1 अप्रैल से प्रभावी होगा। इसमें एक आधार व्यय अनुपात (बीईआर) का प्रावधान है जिसमें केवल परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) द्वारा निवेशकों के पैसे के प्रबंधन के लिए ली जाने वाली फीस का जिक्र है। यह मौजूदा कुल व्यय अनुपात (टीईआर) की जगह लाया गया है।
टीईआर में ब्रोकरेज, प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी), स्टांप ड्यूटी और एक्सचेंज शुल्क जैसे घटक शामिल हैं। नई व्यवस्था के तहत इस तरह के शुल्क बीईआर से बाहर रखें जाएंगे और इनके बारे में अलग से बताया जाएगा जो योजनाओं की श्रेणी और संपत्ति के आकार के अनुसार अलग-अलग होगा।
ओपन-एंडेड इक्विटी केंद्रित योजनाओं के लिए संशोधित बीईआर 500 करोड़ रुपये तक की परिसंपत्ति वाली योजनाओं के लिए 2.10 फीसदी से लेकर 50,000 करोड़ रुपये से अधिक परिसंपत्ति वाली योजनाओं के लिए 0.95 फीसदी तक होगा।
गैर-इक्विटी योजनाओं के मामले में समान परिसंपत्ति श्रेणियों में सीमा 1.85 फीसदी और 0.70 फीसदी के बीच निर्धारित की गई हैं। क्लोज-एंडेड योजनाओं के लिए आधार व्यय अनुपात भी कम कर दिया गया है।
जब सेबी ने शुरू में एमएफ लागत संरचना को बदलने का प्रस्ताव रखा था तो सूचीबद्ध एएमसी के शेयर इस चिंता के बीच लुढ़क गए थे कि इससे उनका मुनाफा कमजोर हो सकता है। सेबी ने यह चिंता भी दूर करने की कोशिश की है। सेबी अध्यक्ष तुहिन कांत पांडेय ने कहा कि यह ढांचा एक तरह से बीच का रास्ता है क्योंकि इसमें परिसंपत्ति प्रबंधकों पर अनुचित प्रभाव दूर करने करने के साथ ही निवेशकों को अधिक स्पष्टता और कम लागत से लाभ देने का प्रयास किया गया है।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहल के तहत सेबी ने अनुसंधान और ब्रोकरेज शुल्क अलग करने का प्रस्ताव भी वापस ले लिया है।
सेबी का कहना है कि यूरोप में एक ऐसा ही प्रयोग विफल हो चुका है जिसे देखते हुए यह प्रस्ताव वापस लिया गया। नियामक ने ब्रोकरेज सीमा तर्कसंगत बना दी है। नकद बाजार लेनदेन में वैधानिक शुल्क को छोड़कर ब्रोकरेज सीमा पूर्व में प्रभावी 8.59 आधार अंक से घटाकर 6 आधार अंक कर दिया गई है। डेरिवेटिव के लिए शुद्ध ब्रोकरेज सीमा 3.89 आधार अंक से घटाकर 2 आधार अंक कर दी गई है।
सेबी ने लगभग तीन दशक पुराने म्युचुअल फंड और स्टॉक ब्रोकर से जुड़े नियम-कायदे भी बदलने पर मुहर लगा दी है। पुराने पड़ चुके और महत्त्व खो चुके प्रावधान समाप्त कर दिए जाएंगे या आपस में इनका विलय कर दिया जाएगा।
नियामक ने हितों के टकराव पर एक उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को लागू करने पर अपना निर्णय फिलहाल टाल दिया है। सेबी ने कर्मचारियों द्वारा उनकी संपत्ति के सार्वजनिक प्रकटीकरण और गोपनीयता के मुद्दों को लेकर उठाई गई चिंता का हवाला देकर यह कदम उठाया है।
आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) में द्वितीयक घटकों की बढ़ती हिस्सेदारी के इर्द-गिर्द चल रही बहस पर पांडेय ने कहा कि भारत के पूंजी बाजार विविध निवेशक जरूरत पूरा करने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि कंपनियां अब पहले चरण में पूंजी जुटाती हैं और प्रवर्तक और शुरुआती निवेशकों को आईपीओ प्रक्रिया के दौरान बाहर निकलने की अनुमति देना भी उचित है। उन्होंने कहा, ‘पूंजी निर्माण के विभिन्न प्रारूप हैं। भारतीय बाजार काफी परिपक्व है और हम विभिन्न प्रकार के निवेशकों को रखने में सक्षम हैं।’
अन्य प्रमुख निर्णयों में आईपीओ चरण में लॉक इन या गिरवी रखे शेयरों के प्रबंधन के लिए एक नया ढांचा और आईपीओ खुलासों को अधिक खुदरा-अनुकूल बनाने के उपाय भी किए गए हैं।