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Supreme Court ने पलटा 1978 का नियम, सरकार नहीं कर सकती सभी प्राइवेट प्रॉपर्टी का अधिग्रहण

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हालांकि सरकार उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो मैटीरियल हैं और सार्वजनिक हित के लिए कम्युनिटी के पास है।

Last Updated- November 05, 2024 | 12:57 PM IST
Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला दिया कि सरकार के पास सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों के अधिग्रहण का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हालांकि सरकार उन संसाधनों पर दावा कर सकती है जो मैटीरियल हैं और सार्वजनिक हित के लिए कम्युनिटी के पास है। शीर्ष अदालत की 9 जजों की बेंच ने 7-2 के बहुमत से यह फैसला दिया है।

शीर्ष अदालत ने 1978 के बाद के फैसलों को पलट दिया, जिनमें सोशलिस्ट थीम को अपनाया गया था, जिसमें यह फैसला दिया गया था कि सरकार सार्वजनिक हित के लिए सभी प्राइवेट प्रॉपर्टीज को अपने अधीन ले सकती है।

शीर्ष अदालत के पीठ ने बहुमत से दिए फैसले में कहा कि पुराने नियम जिसमें सरकार को प्राइवेट प्रॉपर्टीज अपने अधिकार में ले सकती है, वो खास आर्थिक और सोशलिस्ट विचारधारा से प्रेरित था।

क्या है मामला

यह मामला मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन द्वारा महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट 1976 के चैप्टर VIIIA की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए लाया गया था। इसके अंतर्गत राज्य को मंथली किराये के 100 गुना मुआवजा देकर संबंधित प्राइवेट प्रॉपर्टी का अधिग्रहण करने का अधिकार है। सबसे पहले साल 1992 में इस नियम के खिलाफा याचिकाएं दायर की गई थीं। 2002 में इस मामले को 9 जजों की बेंच को भेजा गया था। आखिरकार दो दशक से ज्यादा समय के बाद 2024 में मामले की सुनवाई हुई।

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क्या है 1978 का नियम

1978 के एक मामले में – कर्नाटक बनाम रंगनाथ रेड्डी एवं अन्य – दो फैसले सुनाए गए। जस्टिस कृष्ण अय्यर द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया कि कम्युनिटी के मैटीरियल रिर्सोसेज में प्राकृतिक और मानव निर्मित, सरकारी और प्राइवेट सभी रिसोर्सेज शामिल हैं। एक अन्य फैसले में जस्टिस उंटवालिया द्वारा सुनाए गए दूसरे निर्णय में अनुच्छेद 39(बी) के संबंध में कोई राय व्यक्त करना आवश्यक नहीं समझा गया।

बाद में, संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (1982) के मामले में संविधान पीठ ने जस्टिस अय्यर के फैसले को बनाए रखा। मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ के मामले में दिए फैसले में भी यह स्थिति बरकरार रखी गई।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने प्रधान न्यायाधीश द्वारा लिखे गए बहुमत के फैसले से आंशिक रूप से असहमत जताई, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई। फैसला अभी सुनाया जा रहा है।

अनुच्छेद 31सी, अनुच्छेद 39(बी) और (सी) के तहत बनाए गए कानून की रक्षा करता है जो सरकार को आम भलाई के वास्ते वितरण के लिए निजी संपत्तियों सहित समुदाय के भौतिक संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देता है।

शीर्ष अदालत ने 16 याचिकाओं पर सुनवाई की जिनमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी। पीओए ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय 8-ए का विरोध किया है। 1986 में जोड़ा गया यह अध्याय सरकारी प्राधिकारियों को उपकरित भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है जिस पर वे बने हैं, यदि वहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोग पुनर्स्थापन उद्देश्यों के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।

(PTI के इनपुट के साथ)

First Published - November 5, 2024 | 12:16 PM IST

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