प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के मुद्दे को केवल सर्दियों के महीनों में ‘रस्मी’ सुनवाई के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। इस समस्या के अल्पकालिक और दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए महीने में दो बार सुनवाई की जाएगी। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के पीठ ने सामान्य विमर्श में अहम बदलाव करते हुए कहा, ‘पराली जलाने का मुद्दा अनावश्यक रूप से राजनीतिक मुद्दा या अहम का मुद्दा नहीं बनना चाहिए।’
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाने को मुख्य कारण बताए जाने पर सवाल उठाते हुए पूछा, ‘कोविड के दौरान पराली जलाई जा रही थी, फिर भी लोगों को साफ नीला आसमान क्यों दिखाई दे रहा था? इससे ज्ञात होता है कि इसके पीछे अन्य कारक भी हैं।’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम पराली जलाने पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, क्योंकि इसका बोझ उन लोगों (किसानों) पर डालना गलत है, जिनका इस न्यायालय में बहुत कम प्रतिनिधित्व है।’ उन्होंने कहा, ‘पराली जलाने का मुद्दा अनावश्यक रूप से राजनीतिक या अहम का मुद्दा नहीं बनना चाहिए।’ शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तारीख तय कर दी।
राष्ट्रीय राजधानी में सोमवार को वायु गुणवत्ता एक बार फिर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में पहुंच गई। इस दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 301 दर्ज किया गया। लगातार 24 दिनों तक ‘बेहद खराब’ और अक्सर ‘गंभीर’ श्रेणी के करीब रहने के बाद रविवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ था जब एक्यूआई 279 रहा। यह ‘खराब’ की श्रेणी में आता है। हालांकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ‘समीर’ ऐप के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के 38 निगरानी केंद्रों में से 24 में वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ श्रेणी में रही, जबकि शेष 14 में यह ‘खराब’ श्रेणी में है। (साथ में एजेंसियां)