दुनिया भर की कंपनियों की तरह भारतीय कंपनियां भी साइबर सुरक्षा की चुनौतियों से जूझ रही हैं। पीडब्ल्यूसी के शीर्ष अधिकारियों का मानना है कि भारत डिजिटल नवाचार क्षेत्र में अग्रणी देश के तौर पर उभर रहा है इसलिए ऐसी चुनौतियां बढ़ी हैं।
पीडब्ल्यूसी के अधिकारी (वैश्विक साइबर सुरक्षा एवं प्राइवेसी लीडर) सीन एम जॉयस ने कहा कि पिछले साल वैश्विक स्तर पर रैंसमवेयर हमले में 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और 67 फीसदी प्रभावित कंपनियों ने औसतन 48 लाख डॉलर का भुगतान किया। रैंसमवेयर हमले के तहत कंप्यूटर उपकरणों और डेटा की पहुंच बाधित कर दी जाती है और इस बाधा को हटाने के बदले फिरौती मांगी जाती है। जॉयस ने कहा कि यह एक वैश्विक घटना है।
यूएस फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के साथ काम कर चुके जॉयस ने कहा, ‘भारत इस संदर्भ में अलग नहीं है। यह हरेक देश के लिए एक समस्या है।’ जॉयस का कहना है कि भारतीय कंपनियों को साइबर सुरक्षा के बुनियादी सिद्धांतों पर जोर देना चाहिए। उन्होंने यह स्वीकार किया कि भारत डिजिटल नवाचार में अग्रणी है और उन्होंने देश को इस क्षेत्र का नेतृत्वकर्ता बताया लेकिन उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि डिजिटल तंत्र पर बढ़ती निर्भरता के चलते असुरक्षा भी बढ़ी है जिसके चलते आर्थिक स्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के लिए खतरा बढ़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘हरेक कंपनी का केंद्रीय तंत्र डिजिटल है। अगर आप इसकी सुरक्षा नहीं करते हैं तब आप अपनी अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम में डाल रहे हैं।’
लघु एवं मझोले उपक्रम (एसएमई) विशेषतौर पर साइबर हैकिंग और फर्जीवाड़े का शिकार होते हैं क्योंकि उनके संसाधन सीमित हैं। जॉयस ने सभी कारोबारों के लिए साइबर सुरक्षा की अपनी तैयारी सुनिश्चित करने पर जोर देने की बात कही। उन्होंने कहा, ‘आप चाहे कोई छोटा कारोबार कर रहे हों, आपका कोई मझोले स्तर का उद्यम हो या फिर बड़ा उपक्रम हो लेकिन साइबर सुरक्षा की बुनियादी तैयारी होनी चाहिए।’ उन्होंने बताया कि अमेरिका में एसएमई को बुनियादी सुरक्षा उपायों के लिए सब्सिडी देने पर विचार किया जा रहा है।
जॉयस ने सरकारों और निजी कंपनियों के बीच सहयोग की अहमितय पर भी जोर दिया। निजी क्षेत्र के पास साइबर सुरक्षा से जुड़ी अधिकांश जानकारी है जबकि 10-15 वर्ष पहले सरकारों के पास ऐसी जानकारी ज्यादा रहती थी। उन्होंने कहा कि आपराधिक और देश विरोधी खतरे पर पारदर्शिता बरतने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी अहम है।
जॉयस ने कहा, ‘रैंसमवेयर सबसे कमजोर कड़ी की तलाश में होते हैं इसलिए सभी का एक साथ आना जरूरी है। गैर-लाभकारी एजेंसियां और अन्य जो हमारे व्यापक तंत्र को समर्थन दे रहे हैं, वहां हमें एक-दूसरे की मदद करने की जरूरत है और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि साइबर सुरक्षा के लिए हमारी बुनियाद मजबूत रहे।’
पीडब्ल्यूसी इंडिया में पार्टनर और लीडर (साइबर सुरक्षा) शिवराम कृष्णन के मुताबिक भारत, वैश्विक स्तर पर साइबर धोखाधड़ी से निपटने में आगे रहा है और इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक ने पूंजी हस्तांतरण का पता लगाने जैसे उपायों पर अमल करना शुरू कर दिया है। इस तंत्र के चलते ही फिशिंग फर्जीवाड़ा मामले में रिकवरी की दर 35 फीसदी से अधिक है जो वैश्विक औसत से कहीं अधिक है। हालांकि इन सभी उपायों के बावजूद भारतीय कंपनियां कई प्रमुख साइबर सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रही हैं।