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शीर्ष अदालत से राष्ट्रपति का राय मांगना पहला मामला नहीं: विशेषज्ञ

राष्ट्रपति मुर्मू ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय से कानून के कई पहलुओं पर 14 सवाल पूछे थे, जिनमें संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का दायरा भी शामिल है।

Last Updated- May 15, 2025 | 11:34 PM IST
Supreme Court
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्य विधान सभाओं से पारित विधेयकों पर फैसला लेने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित करने से संबंधित मामले में उच्चतम न्यायालय से सलाह मांगी है। इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों ने कहा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा राष्ट्रपति संदर्भ के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करना एक दुर्लभ अवसर है। लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है जब राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत देश के प्रथम नागरिक को दी गई शक्तियों का उपयोग करते हुए कानून या सार्वजनिक महत्त्व के तथ्य के प्रश्नों पर शीर्ष अदालत से परामर्श किया है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय से कानून के कई पहलुओं पर 14 सवाल पूछे थे, जिनमें संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्तियों का दायरा भी शामिल है। इस साल 8 अप्रैल को न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन के दो न्यायाधीशों वाले पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय को दी गई विशेष शक्तियों का हवाला देते हुए एक फैसला सुनाया था, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधान मंडल द्वारा पारित राज्य विधेयकों पर निश्चित समयसीमा के भीतर निर्णय लेने के लिए कहा गया था।

कानूनी फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर अनुराधा मुखर्जी ने कहा, ‘इस तरह राय मांगने का इरादा यह सुनिश्चित करना था कि राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों पर राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली कार्यपालिका के पास सर्वोच्च न्यायालय की एक राय होनी चाहिए, क्योंकि वही तो संविधान का अंतिम व्याख्याकार होता है। यह केवल एक सलाह है, जिसका बहुत अधिक महत्त्व होता है और यह कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच संस्थागत संवाद को मजबूत करती है।’

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इस तरह के सलाह-मशविरे पहले भी होते रहे हैं। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के पार्टनर शोएब कुरैशी ने कहा, ‘यह दुर्लभ जरूर है, लेकिन कोई मिसाल नहीं है। ऐतिहासिक उदाहरणों में दिल्ली लॉज एक्ट, 1951 का जिक्र किया जा सकता है, जिसमें विधायी प्रत्यायोजन की सीमा पर सवाल उठाया गया था। इसी प्रकार 1960 में बेरुबारी यूनियन मामला भी है, जिसमें क्षेत्र के हस्तांतरण का मुद्दा था। एक और महत्त्वपूर्ण उदाहरण 1998 का है जब री प्रेसिडेंशियल अपॉइंटमेंट्स (1998) मामले में न्यायालय से दूसरे न्यायाधीशों की नियुक्ति पर राय देने के लिए कहा गया था।’

उन्होंने कहा कि वर्तमान संदर्भ को जो चीज विशेष है, वह है न्यायालय के हालिया बाध्यकारी फैसले को सीधी चुनौती। इसके अलावा संवैधानिक व्याख्या की सीमाओं, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच अंतर-संस्थागत संबंधों तथा अंततः संघवाद एवं लोकतांत्रिक शासन के प्रति निष्ठा की जांच करना। कुरैशी ने यह भी कहा, ‘खास यह है कि अनुच्छेद 143(1) के तहत दी गई राय बाध्यकारी नहीं है। हालांकि, संवैधानिक परंपरा और न्यायिक सम्मान के मामले के रूप में ऐसी राय को बहुत महत्त्व दिया जाता है। कार्यपालिका द्वारा अक्सर इसका पालन भी किया जाता है।’

संविधान राष्ट्रपति के लिए विधेयकों को स्वीकृति देने के संबंध में कोई निश्चित समय सीमा निर्धारित नहीं करता है। संघीय विधेयकों (संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक) के लिए अनुच्छेद 111 कहता है कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति या तो स्वीकृति दे देंगे या उसे रोक देंगे। यदि यह धन विधेयक नहीं है तो राष्ट्रपति इसे ‘शीघ्र’ पुनर्विचार के लिए वापस कर सकते हैं। वाक्यांश ‘शीघ्र’ भी कोई विशिष्ट समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है।

राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित राज्य विधेयकों के मामले में अनुच्छेद 201 राष्ट्रपति की शक्तियों की रूपरेखा बताता है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति या तो ऐसे विधेयकों को स्वीकृति देंगे या उन्हें रोक देंगे। अनुच्छेद 111 के समान ही अनुच्छेद 201 राष्ट्रपति के निर्णय के लिए कोई विशिष्ट समय-सीमा तय नहीं करता है। यह अनुच्छेद राज्यपाल के लिए भी इस तरह की कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं करता है।

कानून फर्म अलाग ऐंड कपूर लॉ ऑफिसेज में पार्टनर अविरल कपूर ने कहा, ‘इन संवैधानिक प्रावधानों में स्पष्ट समय-सीमा नहीं होना हमेशा बहस का मुद्दा रही है और यह सर्वोच्च न्यायालय के बीते अप्रैल में दिए गए फैसले का महत्त्वपूर्ण पहलू था, जिसमें अनुच्छेद 201 के तहत आरक्षित राज्य विधेयकों पर कार्रवाई करते समय राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा का सुझाव दिया गया था। अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रपति के वर्तमान संदर्भ में विशेष रूप से यह सवाल पूछा गया है कि क्या इस तरह की समय-सीमा न्यायिक आदेशों द्वारा लगाई जा सकती है जब संविधान स्वयं उन्हें निर्धारित नहीं करता है।’

First Published - May 15, 2025 | 11:03 PM IST

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