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Odisha: ढाई दशक में पूरी तरह बदल गई आपदा प्रबंधन प्रणाली

इन ढाई दशकों में आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर किस प्रकार बदलाव हुए, जिन्हें विश्व में आपदा बचाव के लिए मॉडल के तौर देखा जाता है, बता रहे हैं रमणी रंजन महापात्र

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रमणी रंजन महापात्र   
Last Updated- November 20, 2024 | 9:10 PM IST

एक और अक्टूबर गुजर गया, एक और तूफान बंगाल की खाड़ी के साथ लगते ओडिशा तट से टकराया। अच्छी बात यह कि ‘दाना’ नाम का यह तूफान मध्यम स्तर का था। यह 1999 में आए घातक सुपर साइक्लोन के बाद किए गए बचाव के उपायों और प्रशासनिक स्तर पर बरती गई सतर्कता की वजह से दाना से एक भी मौत नहीं हुई और आजीविका बहुत अधिक प्रभावित नहीं हुई।

वर्ष 1999 में मौसम विभाग ने 24 अक्टूबर को कम दबाव का क्षेत्र बनने की सूचना दी थी। पांच दिन बाद 250 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से बहुत ही भीषण चक्रवाती तूफान तट से टकराया। इसकी भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 20 फुट ऊंची समुद्री लहरें जमीन से टकराती हुई आगे बढ़ रही थीं। उस भीषण तूफान की चपेट में आने से ओडिशा में 9,885 लोगों की मौत हुई थी, हालांकि मरने वालों का अनधिकृत आंकड़ा कहीं ज्यादा बताया गया था। तूफान के कारण लाखों लोग बेघर हुए थे।

ऐसा मानवीय संकट खड़ा हुआ कि राज्य सरकार से संभाले नहीं संभल रहा था और लोग तत्कालीन राज्य सरकार से इस तरह नाराज हुए कि राजनीतिक लकीरें मोटी होती गईं। चुनाव में नवीन पटनायक नीत बीजू जनता दल ने भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटा दिया। वह दिन और आज, कांग्रेस वहां लोगों के दिलों में जगह नहीं बना सकी।

मौसम विभाग ने यूं तो कई बार तूफान की चेतावनी जारी की थी, लेकिन किसी को यह अंदाजा नहीं था कि यह इतना भयावह होगा। सभी लोग इसे एक और सामान्य तूफान मानकर चल रहे थे। जो सीजन में बंगाल की खाड़ी से उठना आम बात होती है।

तूफान की तैयारी तब और अब

वह एक ऐसा तूफान था जिसने मौसम विभाग और स्थानीय प्रशासन की तैयारी की पोल खोल दी थी। न तो मौसम विभाग सटीक पूर्वानुमान लगा पाया कि चक्रवात किस जगह पर टकराएगा और इसी तीव्रता क्या होगी और न ही प्रशासन लोगों को इसके बारे में सचेत कर पाया। अब 25 साल बाद चक्रवात प्रबंधन प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन आ चुका है। वर्ष 2013-14 में संयुक्त राष्ट्र ने भी चक्रवात प्रबंधन को बेहतर करने को ‘ओडिशा की सफलता की कहानी’ के रूप में एक वैश्विक उदाहरण करार देकर इसकी तारीफ की थी।

इस वर्ष भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने 19 अक्टूबर को चक्रवात उठने के संकेत जारी किए और बताया कि यह तूफान 24 अक्टूबर को ओडिशा के तट से टकरा सकता है। विभाग ने इसकी तीव्रता के बारे में भी पूर्वानुमान जारी किया था। इसे देखते हुए राज्य सरकार हरकत में आ गई और संभावित प्रभाव क्षेत्रों में आबादी को खाली कराने समेत बचाव के तमाम इंतजाम किए गए। ओडिशा आपदा त्वरित कार्यबल (ओडीआरएएफ), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) और अग्निशमन विभाग को सतर्क कर दिया गया।

जैसा कि मौसम विभाग ने पूर्वानुमान जारी किया था, दाना तूफान भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान और धामरा के बीच तट से 110 किलोमीटर प्रतिघंटा रफ्तार से टकराया। तूफान गुजर जाने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने कहा कि प्रशासन ने शून्य मानव क्षति के लक्ष्य को हासिल कर लिया है। राज्य में इस चक्रवात से एक भी मौत नहीं होने की बात कही गई है।

माझी ने कहा, ‘सरकार और स्थानीय प्रशासन की सतर्कता और व्यापक तैयारी के कारण तूफान से कम से कम नुकसान हुआ है।’ बीजू जनता दल की सरकार जाने के बाद सत्ता में आई भाजपा सरकार के लिए यह पहला बड़ा चक्रवाती तूफान था। हालांकि पश्चिम बंगाल इतना भाग्यशाली नहीं रहा और तूफान से वहां चार लोगों की जान गई है।

वर्ष 2021 में आई विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ओडिशा के पास 480 किलोमीटर समुद्री तट है जो पूर्वी क्षेत्र में कुल तटीय क्षेत्र का 17 प्रतिशत होता है।

मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने बताया, ‘तब और अब की चेतावनी प्रणाली व्यवस्था में जमीन-आसमान का अंतर है।’ वर्ष 1999 में मौसम विभाग के पास केवल एक ही सैटेलाइट था, जो हर तीन घंटे पर मौसमी गतिविधियों की तस्वीरें जारी करता था। आज भारत के पास दो सैटेलाइट और स्केटरोमीटर हैं, जिनसे प्रत्येक 15 मिनट में ताजा फोटो और मौसम संबंधी जानकारी मिलती है।

इनके अलावा देशभर में 39 डॉप्लर रडार तैनात किए गए हैं, आधुनिक स्वचालित मौसम स्टेशन और सतत संचार कायम करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म भी है। इनसे वर्षा, तूफान, सदी और हवा आदि की गतिविधियों संबंधी ताजा आंकड़े घंटों के बजाय मिनटों में उपलब्ध होते हैं। ये ज्यादातर उपाय 1999 संकट के बाद ही किए गए।

आर्थिक और नीति मामलों पर पोर्टल आइडिया फॉर इंडिया के लिए एक अध्ययन में नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च, नई दिल्ली में फैकल्टी सदस्य सूर्यब्रत महापात्र ओडिशा की आपदा प्रबंधन की तैयारी के चार स्तंभ गिनाते हैं। इनमें बहुस्तरीय संस्थागत ढांचा, संभावित प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंच, क्षमता विकास और प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में निवेश शामिल हैं।

नवंबर 2000 में ओडिशा के मुख्य सचिव बनाए गए देवी प्रसाद बागची बताते हैं कि उस समय विश्व बैंक, यूनिसेफ, नाबार्ड जैसी संस्थाओं ने किस प्रकार वित्तीय मदद देकर तूफान प्रभावित राज्य को सहारा दिया था। बागची ने बताया, ‘उस समय सबसे पहला काम यह किया गया था कि तटीय क्षेत्रों में स्थित सभी स्कूलों को शरणार्थी शिविरों में बदल दिया गया था, जिनमें तूफान प्रभावित लोगों को रहने-खाने का इंतजाम किया गया।’

इस तूफान के दो महीने के अंदर ही राज्य सरकार ने देश का पहला राज्य स्तरीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण- ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ओएसडीएमए) का गठन किया। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि अफसरशाही की अड़ंगेबाजी से हटकर आपदा से निपटने के सभी काम त्वरित गति से अंजाम दिए गए। इसके बाद और खासकर 2001 में आए कच्छ भूकंप के बाद केंद्र सरकार ने अन्य राज्यों में भी इसी तरह के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाने को कहा। इसके बाद ही आपदा प्रबंधन अधिनियम अस्तित्व में आया और 2005 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बना।

ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का सबसे अधिक जोर चेतावनी प्रणाली को दुरुस्त करने, बचाव अभियान चलाने और शरण स्थल विकसित करने पर रहा। ओडिशा के पूर्व मुख्य सचिव प्रदीप जेना और विश्व बैंक के निदेशक (भारत) ऑगस्त तानो कुआमे ने नवंबर 2023 में एक कॉलम में लिखा था कि आज तटीय इलाकों के 1,200 गांवों में सायरन और मास मेसेजिंग सिस्टम के जरिये वास्तविक समय पर चेतावनी संदेश पहुंचाए जा रहे हैं। यही नहीं, 800 से अधिक बहुद्देश्यीय शिविर भी बनाए गए।

चक्रवात प्रभावित इलाकों में प्रशासन अब निचले तबके को कम से हानि का लक्ष्य लेकर काम करता है। भीषण चक्रवाती तूफानों से बचाव के लिए राज्य ने ग्राम पंचायत स्तर पर स्थानीय समुदायों से लेकर महिलाओं से संबंधित स्वयं सहायता समूहों और 100,000 स्वयंसेवकों का नेटवर्क तैयार किया है और उन्हें बचाव अभियान चलाने का प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि जरूरत पड़ने पर कम से कम समय में उनका उपयोग कर लोगों की जान बचायी जा सके।

पूर्व सूचना आयुक्त और सामाजिक कार्यकर्ता जगदानंद ने कहा कि उनके सिविल सोसायटी ग्रुप ने सरकार को समर्पित आपदा प्रबंधन प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव रखा था। आपदा के दौरान सिविल सोसाइटी और सरकार मिलकर काम करते हैं, जिससे नुकसान कम से कम होता है।

वर्ष 2013 में ओडिशा में फेलिन चक्रवात आया था। समय से पता चल जाने और मजबूत आधारभूत ढांचा होने के कारण समय पर अभियान चलाकर लाखों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया गया था। इससे जनहानि कम से कम हुई थी। इसी तरह 2019 में आए फानी तूफान के दौरान भी 12 लाख लोगों को उनके मूल रिहायशी क्षेत्रों से हटाकर सुरक्षित ठिकानों या शिविरों में भेजा गया था। राज्य की पूर्व चेतावनी प्रणाली 2018 में स्थापित की गई थी। इससे सुनामी हो या चक्रवात, पहले ही सटीक सूचनाएं लोगों तक पहुंचाई जा रही हैं। लगभग 120 स्थानों पर वॉचटावर भी खड़े किए गए हैं, ताकि समुद्री हलचल पर नजर रखी जा सके।

आपदा प्रबंधन पर निवेश

ओडिशा ने आपदाओं से निपटने के लिए अपना बुनियादी ढांचा लगातार मजबूत किया है। मौजूदा माझी सरकार भी इस दिशा में आगे बढ़ रही है, जिसने वित्त वर्ष 25 के बजट में तूफानों जैसी आपदा से बचाव के लिए 3,900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इससे पहले वर्ष 24 के बजट में इस मद में 3,700 करोड़ रुपये रखे गए थे। राज्य के आपदा प्रबंधन और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए मार्च 2023 में विश्व बैंक ने 10 करोड़ डॉलर का ऋण मंजूर किया था। इस मद में पूर्व की पटनायक सरकार ने 2,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए थे।

जगदानंद कहते हैं कि चाहे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने का मामला हो या अन्य बचाव इंतजाम, चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। वह कहते हैं, ‘हमें ऐसे घर बनाने होंगे, जो चक्रवादी तूफानों से प्रभावित न हों। यही नहीं, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए किफायती आपदा बीमा पॉलिसी लानी चाहिए।’

First Published : November 20, 2024 | 9:10 PM IST