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डॉक्टरों की लंबी दौड़ में नीट यूजी पहली बाधा

मेडिकल की पढ़ाई की ऊंची लागत, नीट पीजी का समय, छात्र-शिक्षकों का असंतुलित अनुपात आदि चुनौतियां भी हैं

Last Updated- July 03, 2023 | 11:19 PM IST
NEET UG Paper Leak

इस वर्ष 20.8 लाख छात्रों ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की परीक्षा दी थी जिसके परिणाम पिछले महीने घोषित कर दिए गए। इस बार परीक्षा​र्थियों की संख्या पिछले साल की तुलना में 250,000 अधिक थी। सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल, डेंटल और आयुष पाठ्यक्रमों को पढ़ने की इच्छा रखने वाले स्नातक छात्रों के लिए इस प्रवेश परीक्षा, नीट में सफल होना इतना आसान नहीं है। कई ऐसी खामियां हैं जिन्हें रोका जा सकता है, वे इस प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।

उदाहरण के लिए, पिछले साल, परीक्षा मई के निर्धारित समय से देरी से हुई थी। अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि राजस्थान में एक केंद्र ने छात्रों को बायोमेट्रिक्स लिए बिना परीक्षा देने की अनुमति दी गई। राजस्थान में अन्य जगहों पर, छात्रों ने आरोप लगाए कि हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के परीक्षार्थी को प्रश्न पत्र के घालमेल के कारण उन्हें दो बार पेपर लिखना पड़ा।

नीट आसान नहीं है और इसमें सफलता पाने वाले लोग आपको यह भी बता सकते हैं कि इसके बाद के वर्ष भी आसान नहीं हैं।

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गुरुग्राम के एक संस्थान में प्रैक्टिस कर रहीं 28 वर्षीय डॉक्टर नित्या सिंह (बदला हुआ नाम) का कहना है कि उन्होंने कोटा में कोचिंग और अपनी कॉलेज फीस पर 1 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। लेकिन एमबीबीएस की डिग्री के बाद उनका वेतन इसका एक हिस्सा भी नहीं है।

वह कहती हैं, ‘हम कोचिंग और कॉलेज की फीस पर बहुत पैसा खर्च करते हैं। हमने जो राशि खर्च की है, उसे वसूलने में वर्षों लग जाते हैं।’

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष प्रशांत एस कहते हैं कि मेडिकल स्कूलों में खर्च का एक बड़ा हिस्सा किताबों पर होने वाले खर्च के कारण होता है। उन्होंने कहा, ‘विभिन्न राज्यों में मेडिकल कॉलेजों के लिए अलग-अलग फीस है जबकि कुछ कॉलेज छात्रवृत्ति भी देते हैं। कुछ निजी संस्थानों में, शुल्क 1.5 करोड़ रुपये तक भी जा सकता है।’

मध्यम वर्ग के लोगों के लिए अधिक फीस बड़ा झटका है। पंजाब के फिरोजपुर के एक दिहाड़ी कामगार का कहना है कि उन्होंने अमृतसर के एक मेडिकल कॉलेज में अपने बेटे के दाखिले के लिए 82,000 रुपये उधार लिए थे। वह कहते हैं, ‘सेमेस्टर की फीस मेरे परिवार की वार्षिक आय से अधिक है। अब भगवान ही जानता है कि मैं बाकी पाठ्यक्रम के लिए फीस का भुगतान कैसे कर पाऊंगा।’

कई छात्रों की समस्या परीक्षा पास करने के साथ ही खत्म नहीं होती है। इसका पाठ्यक्रम भी, अपने साथ कई चुनौतियां लेकर आता है। छात्रों का कहना है कि एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान नीट पीजी की तैयारी करना सबसे कठिन चरणों में से एक है। पुणे के भारती विद्यापीठ मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्रा प्रियंका चड्ढा कहती हैं, ‘नीट पीजी की तैयारी तब शुरू होती है जब आप अपने तीसरे वर्ष में होते हैं। इंटर्नशिप का उपयोग पाठ्यक्रम को दोहराने के लिए किया जाना चाहिए। यह वक्त के बाद यह सब काफी मुश्किल हो जाता है क्योंकि क्लिनिकल पोस्टिंग की वजह से हमारी व्यस्तता बढ़ जाती है लेकिन हम इसके बारे में बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं।’

प्रशांत कहते हैं, ‘नए स्नातकों के लिए नीट पीजी इंटर्नशिप के आखिर में होता है और इंटर्न को अपनी ड्यूटी के समय के भीतर ही अध्ययन करना पड़ता है। काम के ये घंटे 12 से 48 घंटे तक हो सकते हैं। ऐसे कई मामले हैं जिनमें छात्र स्नातक के बाद एक साल छोड़ने का विकल्प चुनते हैं क्योंकि इंटर्नशिप की बहुत मांग है।’

छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य एक मुद्दा बना हुआ है। पिछले साल, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने देश के 600 से अधिक मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्यों को पत्र लिखकर उनसे उन स्नातकोत्तर मेडिकल छात्रों का विवरण देने के लिए कहा था जिन्होंने पिछले पांच वर्षों के दौरान आत्महत्या की है। रेजिडेंट डॉक्टरों के सामने आने वाली तनावपूर्ण कामकाजी स्थितियों और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को उठाने के लिए नियामक का यह संभवतः पहला गंभीर प्रयास है।

हालांकि, इस बात पर स्पष्टता नहीं है कि एनएमसी अपने द्वारा एकत्र किए गए डेटा का इस्तेमाल कैसे करेगी।

एनएमसी से हाल ही में सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिले जवाब के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में 119 छात्रों ने आत्महत्या की है। आरटीआई के जवाब से यह भी पता चला है कि 1,166 छात्रों ने मेडिकल कॉलेजों की पढ़ाई छोड़ दी, जिनमें से 116 एमबीबीएस और 956 स्नातकोत्तर छात्र थे।

प्रशांत कहते हैं, ‘मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और मेडिकल छात्रों के बीच आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या के मामले को पर्याप्त तरीके से नहीं उठाया गया है। कई अनिश्चितताएं भी दबाव बढ़ाती हैं। वर्तमान एमबीबीएस छात्रों को जल्द ही एनईएक्सटी (एनएमसी द्वारा प्रस्तावित नैशनल एग्जिट टेस्ट) के लिए उपस्थित होने का दबाव भी बढ़ रहा है। लेकिन इसके नियम आज तक तैयार नहीं किए गए हैं।’

छात्रों के लिए एक और समस्या डॉक्यूमेंटेशन की प्रक्रिया है, जिसकी पेशकश 2019 में की गई लेकिन महामारी के कारण इसमें देरी हुई। इसके लिए छात्रों को इन सभी बातों का ब्योरा देना होता है कि उन्होंने किसी विशेष दिन पर आयोजित सत्रों में क्या सीखा है।

मद्रास मेडिकल कॉलेज के एक संकाय सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘इस प्रक्रिया पर तेजी से काम करने की जरूरत है क्योंकि इससे छात्रों का बोझ बढ़ता है। इसके अलावा, शिक्षक-छात्र अनुपात विषम (1: 200) है। इसलिए, शिक्षकों पर भी बोझ अधिक है।’

चिंतित डॉक्टर नहीं

वर्ष 2020 में, सरकार ने एनईएक्सटी की शुरुआत की। यह एक सामान्य अंतिम वर्ष की परीक्षा होगी, जो डॉक्टरी अभ्यास करने के लाइसेंस के लिए अनिवार्य है। जुलाई 2021 में, एनएमसी ने कहा कि यह परीक्षा 2023 की पहली छमाही में आयोजित की जाएगी। आधिकारिक राजपत्र के एक अपडेट के अनुसार, सरकार ने परीक्षा की अवधि सितंबर 2024 तक बढ़ा दी है। प्रशांत कहते हैं, ‘मौजूदा एमबीबीएस छात्रों को एनईएक्सटी के लिए उपस्थित होना होगा। लगभग चार साल हो गए हैं और परीक्षा, इसके नियम और प्रारूप अज्ञात हैं।’

मद्रास मेडिकल कॉलेज के संकाय सदस्य कहते हैं, ‘परीक्षा इस साल के लिए निर्धारित की गई थी। इसके लिए प्रतिक्रिया मिली-जुली रही है। कुछ ने अंतिम परीक्षा को व्यवस्थित करने की सराहना की है और अन्य लोग स्पष्टता की कमी का हवाला दे रहे हैं।’

पुणे के मेडिकल छात्र चड्ढा कहते हैं कि यह परीक्षा नीट पीजी की जगह लेगी और दो चरणों में आयोजित की जाएगी। उनका कहना है, ‘लेकिन हम अभी भी नहीं जानते कि यह कब शुरू होने जा रहा है। एक नई परीक्षा का मतलब बदलाव और एक नए प्रारूप में इसका समायोजन करना भी है। ऐसे में शुरुआती कुछ वर्षों में भ्रम पैदा हो सकता है।’

First Published - July 3, 2023 | 11:09 PM IST

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