कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘मोदी उपनाम’ के बारे में की गई टिप्पणी के संबंध में 2019 में उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि मामले में उच्चतम न्यायालय ने उन्हें दोषी ठहराए जाने पर शुक्रवार को रोक लगा दी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि कांग्रेस नेता को निचली अदालत ने दो साल की अधिकतम सजा सुनाई लेकिन दोषी ठहराते समय कोई कारण नहीं बताया। अदालत ने कहा कि यदि सजा एक दिन भी कम होती तो उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले एक व्यक्ति के लिए इस तरह की टिप्पणी करना ठीक नहीं है।
कांग्रेस ने लोकसभा अध्यक्ष से यह मांग की थी कि राहुल की वायनाड से लोकसभा सदस्यता बहाल कर दी जाए ताकि वह संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली चर्चा में हिस्सा ले सकें। संसद में मंगलवार से अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू होगी।
पार्टी ने कहा कि सूरत की एक निचली अदालत की ओर से राहुल को दोषी करार दिए जाने के 24 घंटे के भीतर ही अप्रत्याशित तेजी दिखाते हुए लोकसभा सचिवालय ने राहुल को निलंबित करने के आदेश दे दिए। सूरत की अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के एक दिन बाद ही लोकसभा सचिवालय ने राहुल की सदस्यता को अयोग्य करार दिया था और उन्हें एक महीने के भीतर ही आधिकारिक बंगला खाली करने के आदेश दिए गए।
उच्चतम न्यायालय में राहुल का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि लोकसभा सचिवालय को राहुल गांधी की सदस्यता जल्द से जल्द बहाल करनी चाहिए क्योंकि ऐसा न होने पर फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ सकता है।
विपक्षी दलों के गठबंधन, इंडियन नैशनल इन्क्लूसिव डेवलपमेंटल अलायंस (इंडिया) के नेताओं ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया, वहीं राहुल ने ट्वीट किया ‘चाहे जो कुछ भी हो, मेरा कर्तव्य समान ही रहेगा। भारत के विचार को सुरक्षित करना।’
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बाद में कांग्रेस मुख्यालय पर राहुल ने लोगों के प्यार और समर्थन के धन्यवाद देते हुए कहा कि सच की हमेशा जीत होती है। उन्होंने कहा, ‘मेरा रास्ता हमेशा साफ है। मुझे यह स्पष्ट रूप से पता है कि मुझे क्या करना चाहिए।’
शुक्रवार को न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार के पीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते समय कोई कारण नहीं बताया सिवाय इसके कि उन्हें अवमानना मामले में शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी थी।
शीर्ष अदालत ने राफेल मामले के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनकी ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी को गलत तरीके से बताने के लिए राहुल गांधी द्वारा बिना शर्त माफी के बाद उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही बंद करते हुए भविष्य में उन्हें और अधिक सावधान रहने की चेतावनी दी थी। अदालत गुजरात उच्च न्यायालय को चुनौती देने वाली राहुल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा, ‘यदि सजा एक दिन कम होती, तो प्रावधान लागू नहीं होते, खासकर जब कोई अपराध गैर संज्ञेय, जमानती और समझौता योग्य हो। निचली अदालत के न्यायाधीश से कम से कम यह अपेक्षा थी कि वह अधिकतम सजा देने के लिए कुछ कारण बताते।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि राहुल की दोषसिद्धि और उसके बाद संसद की सदस्यता से अयोग्य करार दिया जाने से न केवल सार्वजनिक जीवन में बने रहने का उनका अधिकार प्रभावित हुआ है बल्कि इससे मतदाताओं के अधिकार भी प्रभावित हुए हैं जिन्होंने उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना था।
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जैसे ही सुनवाई शुरू हुई राहुल का पक्ष लेकर अदालत में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने पीठ से कहा कि राहुल कोई अपराधी नहीं हैं और न ही किसी अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया है। उनका कहना था कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ कई मामले जरूर दर्ज कराए हैं।
सिंघवी ने बाद में कहा कि राहुल के खिलाफ करीब 13 मामले दर्ज कराए गए हैं। उन्होंने कहा कि 21 महीने तक राहुल के कोलार भाषण के कोई दस्तावेजी साक्ष्य पेश नहीं किए जा सके। उन्होंने कहा कि आखिरकार भाजपा के एक सदस्य गवाह बनकर अदालत में पेश हुए और उन्होंने दावा किया कि वह उस जनसभा में मौजूद थे जहां राहुल ने वह भाषण दिया था।
भाजपा के एक विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल की उस टिप्पणी के खिलाफ 2019 में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था जिसमें उन्होंने कहा था, ‘सभी चोरों के उपनाम मोदी कैसे है?’यह टिप्पणी 13 अप्रैल 2019 को कर्नाटक के कोलार की एक चुनावी रैली के दौरान की गई थी।