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कोर्ट में 2 लाख रुपये या उससे अधिक के नकद लेनदेन पर आयकर विभाग को सूचित करना अनिवार्य

न्यायालयों में नकद लेनदेन के बढ़ते मामलों पर कड़ी निगरानी, न्यायपालिका का कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर समर्थन

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- April 16, 2025 | 10:59 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि यदि किसी न्यायालय में 2 लाख रुपये या उससे अधिक के नकद लेनदेन का दावा किया जाता है तो न्यायालय को संबंधित क्षेत्राधिकार वाले आयकर अधिकारियों को इसके बारे में सूचित करना होगा। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन के पीठ ने 2 लाख रुपये से अधिक के लेनदेन के संबंध में कई निर्देश दिए। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जब भी रजिस्ट्री के लिए प्रस्तुत दस्तावेज में अचल संपत्ति के हस्तांतरण के लिए दो लाख रुपये और उससे अधिक की राशि का नकद भुगतान का दावा किया जाता है, तो उप पंजीयक को उस क्षेत्राधिकार के आयकर विभाग को इसकी सूचना देनी चाहिए।

जिन मामलों में आयकर अधिकारियों को 2 लाख रुपये से अधिक के नकद लेनदेन की सूचना दी गई है, उसमें विभाग यह जांच करेगा कि लेनदेन कानूनी है या नहीं और क्या वे आयकर अधिनियम की धारा 269एसटी के अंतर्गत आते हैं। आयकर अधिनियम की धारा 269एसटी व्यक्तियों और संस्थाओं को एक ही स्रोत से 2 लाख रुपये या उससे अधिक के नकद भुगतान प्राप्त करने पर रोक लगाती है, भले ही लेनदेन कई किस्तों में किया गया हो।

विशेषज्ञों ने कहा कि इन निर्देशों का मतलब यह है कि जिस किसी ने भी इस तरह का नकद भुगतान प्राप्त किया है, वह अदालत में मामला दायर करने से पहले दो बार सोचेगा। लॉ फर्म वेद जैन ऐंड एसोसिएट्स में पार्टनर अंकित जैन ने कहा, ‘अगर अदालत उनके दावे को स्वीकार करता है तब भी उन्हें आयकर कानून की धारा 271डीए के तहत जुर्माने के तौर पर बराबर राशि चुकानी पड़ सकती है। यह कदम नकद लेनदेन के खिलाफ मजबूत निवारक के रूप में कार्य करेगा और डिजिटल और पारदर्शी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के बड़े लक्ष्य का समर्थन करेगा।’

लॉ फर्म शार्दूल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी में पार्टनर गौरी पुरी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश बताते हैं कि न्यायपालिका नकद रहित यानी कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने संबंधी विधान का समर्थन कर रही है। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने कई कर और गैर-कर उपाय अपनाए हैं ताकि कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके। इसमें डिजिटल भुगतान क्रांति, उच्च नकद भुगतान और व्यय की अस्वीकृति आदि शामिल हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश बताते हैं कि न्यायपालिका कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए लागू कानून के समर्थन में हैं।’

बुधवार के अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अचल संपत्ति मसलन घर या जमीन के पंजीयन के मामलों में दो लाख रुपये या अधिक के लेनदेन में अगर पंजीयन प्राधिकार संबंधित आयकर विभाग में इसका खुलासा करने में नाकाम रहता है तो इसे संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के मुख्य सचिव के संज्ञान में लाया जाना चाहिए ताकि जानकारी देने में विफल रहे अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सके।

निर्णय की एक प्रति उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरलों, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और आयकर विभाग के प्रधान आयुक्त को दी जाएगी ताकि वे न्यायालय के निर्देशों के अनुसार आगे संवाद कर सकें। शीर्ष न्यायालय के निर्देश एक चैरिटेबल ट्रस्ट और कुछ लोगों के बीच बेंगलूरु की एक संपत्ति पर स्वामित्व के दावे के मामले में दिए गए निर्णय में आए। अपील ट्रस्ट के पास विवादित संपत्ति पर 1929 से अधिकार था और वह इसका इस्तेमाल शैक्षणिक तथा खेल संबंधी उद्देश्यों के लिए कर रही थी। बहरहाल, प्रतिवादी तथा अन्य लोगों ने दावा किया कि उन्होंने 2018 में इस संपत्ति के कथित मालिकों के साथ विक्रय अनुबंध किया। उन्होंने इस संपत्ति पर अपने स्वामित्व की बात कही और कहा कि उन्होंने अनुबंध के तहत 75 लाख रुपये की राशि चुकाई है।

First Published : April 16, 2025 | 10:59 PM IST