G-20 के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों (एफएमसीबीजी) की हाल में संपन्न बैठक में वैश्विक कर्ज के बोझ को कम करने की दिशा में वास्तविक प्रगति हुई है। इसके साथ ही कई देशों ने अपना खुद का डिजिटल भुगतान तंत्र विकसित करने के लिए भारत की मदद लेने में दिलचस्पी दिखाई है। क्रिप्टोकरेंसी को लेकर नरम रुझान के बावजूद कई देशों ने भारत के रुख का समर्थन किया है।
शनिवार को संवाददाताओं से बातचीत में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास प्रसन्न नजर आए और कहा कि जी-20 के ज्यादातर साझेदार सहमत हैं कि क्रिप्टोकरेंसी को नियंत्रण के जोखिम और प्रसार की स्थिति पर नजर रखते हुए नियमन के दायरे में लाया जाना चाहिए।
दास ने कहा, ‘अब व्यापक रूप से स्वीकार्यता है कि क्रिप्टोकरेंसियां या क्रिप्टो संपत्ति को लेकर मौद्रिक व्यवस्था और साइबर सुरक्षा के मसलों और कुल मिलाकर वित्तीय स्थिरता के हिसाब से जोखिम है। इन पर विचार किया जाना चाहिए। आगे चलकर एक अंतरराष्ट्रीय ढांचा विकसित करना होगा जिससे इस तरह की समस्या से बचा जा सके।‘
दरअसल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीवा ने इसके पहले कहा था कि अगर नियमन विफल रहता है तो क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाना ही विकल्प होगा। कुछ ऐसा ही आरबीआई का रुख है।
दास, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ एफएमसीबीजी की बैठक को कुछ संतोष के साथ देख सकते हैं। बहरहाल जी-20 देशों के अपने अपने हित हैं, ऐसे में एजेंडा के प्रमुख विषयों पर सहमति आसान नहीं होगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक के आधे दर्जन से ज्यादा अधिकारियों से बात की, जिससे इस चर्चा के परिणाम के बारे में जाना जा सके। इसके लिए संक्षिप्त बयान का मसौदा बनाने के पहले, जिस पर 25 फरवरी की शाम 5 बजे सभी देश सहमत हुए हैं, कई दिन तक विभिन्न देशों से बात हुई। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन सहित ज्यादातर भारतीय प्रतिनिधि 24 और 25 फरवरी को देर रात तक बयान के सारांश की भाषा को लेकर काम करते रहे, जो सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य हो।