कोलकाता के मशहूर हावड़ा ब्रिज की सेहत का जायजा करीब दो दशक बाद लिया जाना है। इस पुल का संरक्षक श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट, कोलकाता (एसएमपीके, पूर्व में कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट), इसके लिए नैशनल टेक्नोलॉजी सेंटर फॉर पोर्ट्स, वाटरवेज ऐंड कोस्ट्स के साथ चर्चा कर रहा है जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT Madras) का एक इनक्यूबेशन सेंटर है।
यह परिवहन मंत्रालय और IIT Madras की प्रौद्योगिकी शाखा के रूप में काम करता है। एक बार काम का दायरा तय हो जाने के बाद विशेषज्ञों को इससे जोड़ने (यदि आवश्यक हो) पर निर्णय लिया जा सकता है।
ब्रिटिश काल के पुल के लिए राइट्स (पूर्व में रेल इंडिया टेक्निकल ऐंड इकनॉमिक सर्विस) द्वारा अंतिम प्रमुख सेहत ऑडिट 1980 के दशक के मध्य से 1990 के दशक की शुरुआत में हुआ। सिफारिशों के आधार पर, काम पर एक कार्यकारी एजेंसी ने अमल किया और यह 2005 में पूरा हुआ था। अब समय आ गया है कि फिर से इस पुल की व्यापक जांच की जाए।
एसएमपीके के अध्यक्ष रतेंद्र रमन ने कहा, ‘यह होना टल गया था।’ यह उस रखरखाव वाले काम से अलग है जो बंदरगाह नियमित रूप से करता है। एसएमपीके के वरिष्ठ उप मुख्य अभियंता शांतनु मित्रा ने कहा, ‘आप अब इसके विशेषज्ञों से संपर्क कर सकते हैं। एक समय ऐसा भी आ सकता है जब गहन जांच आवश्यक हो।’
हल्दिया डॉक कॉम्प्लेक्स के डिप्टी चेयरमैन के मेहरा ने कहा कि स्टील की संरचना में भी कमजोरी आती है और उन्हें यह पता लगाने की आवश्यकता है कि क्या किसी संरचनात्मक तत्त्व में कमजोरी है।
हावड़ा ब्रिज, छठा सबसे लंबा (लॉन्च के समय तीसरा सबसे लंबा) कैंटिलीवर पुल, 3 फरवरी, 1943 की रात को जनता के लिए खोला गया। इस पुल से गुजरने वाला पहला वाहन एक ट्रामकार था।
लगभग 90 प्रतिशत इस्पात का उत्पादन टाटा स्टील (तब टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी थी) द्वारा किया गया था और इसका निर्माण ब्रेथवेट, बर्न ऐंड जेसप कंस्ट्रक्शन द्वारा किया गया था। इसमें लगाए गए स्टील और कुछ विशेष सामान इंगलैंड में तैयार किया गया था।
100,000 वाहन और 150,000 पैदल यात्री रोजाना गुजरते से है पुल से
हुगली नदी पर निर्मित, पुल कोलकाता और हावड़ा को जोड़ता है और यह सबसे व्यस्त कैंटिलीवर पुलों में से एक है, जिसका इस्तेमाल 100,000 वाहन और 150,000 पैदल यात्री दैनिक आधार पर करते हैं।
मेहरा ने कहा कि भारी वाहनों को विद्यासागर सेतु (या दूसरे हुगली पुल) पर स्थानांतरित कर दिया गया है लेकिन यह एक प्रमुख संपर्क बिंदु है, खासतौर पर जब हावड़ा स्टेशन की बात आती है। उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि हम सलाहकारों के साथ जुड़ रहे हैं क्योंकि हम पुल के जीवनकाल को बढ़ाना चाहते हैं।’
इससे पहले पान-थूक और पक्षियों के द्वारा बूंदें गिराने से हैंगर खराब पाए गए थे। वर्ष 2011 में, एक निरीक्षण से पता चला कि थूकने से हैंगर की मोटाई 6 मिलीमीटर (मिमी) से कम होकर 3 मिमी हो गई थी। मेहरा ने कहा कि उस समय, हैंगरों के लिए एक फाइबरग्लास कवर प्रदान किया गया था।
पेंट का आखिरी काम 2015 में हुआ था
हर छह-सात साल में, एसएमपीके पुल पर एक व्यापक पेंट का काम किया जाता है जिससे इसे सुरक्षा की एक परत भी मिल जाती है। हर बार जब पेंट का काम किया जाता है, तब पक्षियों के द्वारा गिराई गई बूंदों को भी साफ किया जाता है।
पेंट का आखिरी काम 2015 में हुआ था और इसमें लगभग छह महीने लगे थे। इसे पूरा करने के लिए लगभग 120 मजदूरों और चित्रकारों को दैनिक आधार पर लगाया गया था। अगला चरण इस साल मॉनसून के बाद आने वाला है और इस पर 2.8 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है।
हावड़ा ब्रिज के अलावा, एसएमपीके खिदिरपुर और गार्डन रीच को जोड़ने वाले बास्कुले पुल के रखरखाव के लिए एक वैश्विक निविदा जारी करने की योजना बन रही है।
उन्होंने कहा, ‘हमने मंत्रालय को पत्र लिखा है। जैसे ही हमें अनुमति मिलेगी, हम निविदा जारी करेंगे। इससे पुल का जीवन काल बढ़ जाएगा।’