दिल्ली में पारा तेजी से चढ़ने लगा है और लू का कहर भी शुरू होने वाला है। ऐसे में चिलचिलाती धूप और चिपचिपाते पसीने के बीच अगर कुछ याद आता है, तो वह है ठंडक। इसके लिए खासकर गरीब और मध्य वर्ग के लिए कूलर का आसरा है। दिल्ली में इसकी तलाश पूरी होती है इंद्रलोक कूलर मार्केट में। इस मार्केट में न केवल विभिन्न डिजाइन और जरूरत के हिसाब से कूलर मिलते हैं, बल्कि यहां के कूलर निर्माताओं का दावा है कि यहां सबसे सस्ते कूलर मिलते हैं क्योंकि कूलर यहां बनने से इसकी कीमत अन्य मार्केट और दुकानों की तुलना में कम रहती है। इंद्रलोक कूलर का थोक मार्केट होने के साथ ही यहां खुदरा में भी कूलर की बड़े पैमाने पर खरीद होती है। इस मार्केट के कूलर उद्यमियों ने कूलर की मांग के हिसाब से अपने आपको ढाला है। इंद्रलोक का कूलर मार्केट तेजी से बढ़ रहा है। 10 साल पहले यहां लोहे के कूलर ज्यादा बनते थे और इस मार्केट की पहचान कूलर निर्माण केंद्र के रूप में थी। अब यहां असेंबलिंग भी बड़े पैमाने पर होने लगी है।
बीते कुछ सालों में इंद्रलोक के कूलर मार्केट में प्लास्टिक कूलरों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। यहां कूलर निर्माता ब्रांडेड कूलर कंपनियों की तर्ज पर यहां भी अच्छे प्लास्टिक कूलर बनाने लगे हैं। कूलर निर्माताओं के मुताबिक यहां कूलर निर्माण और इससे संबंधित छोटे-बड़े मिलाकर 700 से 800 कूलर उद्यमी हैं। बीते वर्षों में इंद्रलोक में इन उद्यमियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 15 साल पहले यहां कूलरों की 400 से 500 दुकानें होती थी। कूलर उद्यमियों की माने तो इंद्रलोक कूलर मार्केट में सालाना 6 से 7 लाख कूलर बिकते हैं। मूल्य के लिहाज से इसका सालाना कारोबार 250 से 300 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। कूलर उद्यमियों के मुताबिक इंद्रलोक कूलर मार्केट से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 8 से 10 हजार लोगों को रोजगार मिल रहा है।
इंद्रलोक के कूलर कारोबारी अब्दुल्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इंद्रलोक कूलर मार्केट की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यहां किफायती दाम पर कूलर मिलते हैं। इसकी वजह इसी मार्केट में कूलरों का बनना है। यहां निर्माता भी हम हैं, डीलर भी हम हैं और बेचने वाले भी हम हैं। निर्माता और खरीदार के बीच में सीधे बिक्री होने से कोई तीसरा मुनाफा नहीं कमा पाता है। इसलिए भी यहां कूलर के दाम अन्य बाजारों की तुलना में कम रहते हैं। इंद्रलोक के ही कूलर कारोबारी मो. कामिल कहते हैं कि इंद्रलोक कूलर मार्केट में कूलर की कीमत 1,500 रुपये से शुरू होती है और अधिकतम कीमत 15,000 रुपये तक रहती है। लेकिन ज्यादातर कूलर 4,000 से 6,000 रुपये के बीच बिकते हैं। कूलर कारोबारी मो. शरीफ ने कहा कि इंद्रलोक कूलर मार्केट में कारोबारियों की संख्या भी बढ़ रही है। ज्यादा कारोबारी होने से कूलर मार्केट में प्रतिस्पर्धा काफी है। इस वजह से भी यहां सस्ते कूलर मिल जाते हैं। फरहान कूलर के अफनान ने बताया कि इंद्रलोक कूलर मार्केट अपने कम दाम के कारण ही प्रसिद्ध है। इसलिए हमारी कोशिश यही रहती हैं कि यहां दूसरे बाजारों से कम दाम पर ग्राहकों को कूलर मिलें।
स्थानीय मार्केट और यहां बिकने वाले कूलर के दाम में 1,000 से 2,000 रुपये तक अंतर रहता है। प्लास्टिक के ब्रांडेड महंगे कूलरों की तुलना में यहां के प्लास्टिक कूलर की कीमत में यह अंतर 3,000 रुपये तक भी हो जाता है। इसलिए खुदरा खरीदार भी यहां कूलर खरीदने आते हैं। हम लोग भी बड़ी कंपनियों की तरह एक साल की वारंटी देते हैं। इस मार्केट से न केवल दिल्ली में कूलरों की आपूर्ति होती है, बल्कि दूसरे राज्यों को भी कूलर जाते हैं। कूलर उद्यमी फहाद ने कहा कि इंद्रलोक मार्केट से राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब के साथ ही असम तक के कारोबारी कूलर खरीदते हैं। अफनान ने कहा कि दिल्ली से सटे राज्यों खासकर एनसीआर के खरीदार यहां कूलर खरीदने खूब आते हैं।
इंद्रलोक का कूलर कारोबार भले बढ़ रहा हो। लेकिन कूलर निर्माताओं को मार्जिन का दबाव झेलना पड़ रहा है। मो. अब्दुल्ला ने बताया कि बीते कुछ सालों में कूलर बनाने की लागत 20 फीसदी बढ़ गई है। कॉपर, अल्यूमीनियम महंगा होने से कूलर में लगने वाली मोटर अब महंगी पड़ रही है। प्लास्टिक महंगा होने से बॉडी की लागत बढ़ी है। बढ़ी हुई पूरी लागत ग्राहकों पर डालना मुश्किल है। इसलिए लागत के अनुरूप कूलर के दाम नहीं बढ़ाए हैं। ऐसे में बढ़ी लागत का कुछ बोझ कूलर निर्माता खुद वहन कर रहे हैं। इसलिए पहले के मुकाबले मार्जिन कम मिल रहा है। चार-पांच साल पहले मिडिल रेंज वाले कूलर पर 1,000 रुपये तक मार्जिन मिल जाता था, अब यह घटकर 400 से 500 रुपये रह गया है।
कूलर निर्माता मो. शरीफ ने कहा कि पहले जो मोटर पहले 1,200 से 1,500 रुपये की आती थी, वो अब 150 रुपये महंगी आ रही है। हालांकि लोहे के कूलर की बॉडी के दाम पिछले साल के लगभग बराबर ही हैं। प्लास्टिक के कूलर के दाम बढ़े हुए हैं। फरहान कूलर के अफनान ने कहा कि मार्केट में प्रतिस्पर्धा ज्यादा है। इसका असर भी कूलर के मार्जिन पर पड़ रहा है। थोक के बड़े ऑर्डर में कई बार प्रतिस्पर्धा के कारण एक कूलर पर 200 रुपये भी नहीं बच पाते हैं। कूलर उद्यमी फहाद ने कहा कि इस साल पिछले साल की तुलना में कूलर की कीमत 5 फीसदी अधिक है।
इंद्रलोक कूलर मार्केट में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। इस मार्केट में कभी लोहे की बॉडी वाले ही कूलर बनते थे। इन्हीं कूलरों की वजह से इस मार्केट की कूलर निर्माण केंद्र के रूप में पहचान बनी थी। लेकिन अब यहां सबसे अधिक प्लास्टिक के कूलर बन रहे हैं। मो. कामिल ने कहा कि बीते 10 साल में कूलर मार्केट में बड़ा बदलाव यह आया है कि अब यहां प्लास्टिक बॉडी के कूलरों का चलन बढ़ा है। इस मार्केट में बिकने वाले कूलरों में 70 फीसदी से अधिक प्लास्टिक कूलर होते हैं। अब्दुल्ला प्लास्टिक कूलरों की हिस्सेदारी बढ़ने की वजह बताते हुए कहते हैं कि दिल्ली में लोगों के पास घर छोटे हैं और इनमें खिडकी नहीं है। लोहे की बॉडी वाले कूलर के लिए खिड़की जरूरी होती है, तभी यह सही से ठंडक देता है।
प्लास्टिक कूलर कमरे के अंदर भी ठंडक देता है और इसे आसानी से इधर-उधर किया जा सकता है। इसलिए प्लास्टिक कूलरों की मांग ज्यादा है। फहाद ने कहा कि बीते कुछ सालों में सिम्फनी, हैवल्स, क्रॉम्पटन जैसी बड़ी कंपनियां भी कूलर मार्केट में उतर आई हैं और ये प्लास्टिक कूलरों पर जोर दे रही हैं। ऐसे में इंद्रलोक के कूलर निर्माताओं ने भी इन कंपनियों को टक्कर देने के लिए प्लास्टिक कूलरों पर जोर दिया है। हम भी अब आइस चैंबर, रिमोट कंट्रोल और इनवर्टर से चलने वाले कूलर बना रहे हैं। आइस चैंबर कूलरों से ठंडक भी बढ़ती है। ये कूलर सामान्य प्लास्टिक कूलरों से 1,500 से 2,000 रुपये महंगे होते हैं। मार्केट में टॉवर कूलर (लंबे व पतले) की मांग अच्छी है क्योंकि ये कम जगह घेरते हैं।