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Gaganyaan Mission: अंतरिक्ष में तिरंगा फहराने को तैयार भारत का गगनयान

गगनयान महत्त्वाकांक्षा से भरपूर स्वदेशी अभियान है, मगर इसकी सफलता के लिए वैज्ञानिक कितने प्रयास कर रहे हैं, इस संबंध में विस्तार से बता रहे हैं शाइन जैकब

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शाइन जेकब   
Last Updated- March 08, 2024 | 11:57 PM IST

Gaganyaan Mission: भारत ने 10 जनवरी, 2007 को प्रयोग के तौर पर एक स्पेस कैप्सूल अंतरिक्ष में दागा, जो करीब 12 दिन तक कक्षा में रहा। इस दौरान उसने कई तरह के काम किए और जब वह नीचे बंगाल की खाड़ी में गिरा तो वहां से उसे निकाल भी लिया गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) का इस्तेमाल करते हुए जो स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरिमेंट (एसआरई-1) छोड़ा गया, वह गगनयान की होड़ में आगे था। गगनयान भारत द्वारा शुरू किया गया पहला अभियान है, जिसमें किसी भारतीय को अंतरिक्ष भेजा जाएगा। एसआरई-1 के जरिये दिखाया गया कि भारत के पास मानव को अंतरिक्ष में भेजने और वहां से सुरक्षित वापस लाने के लिए जरूरी तकनीक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से भाषण देते हुए राष्ट्र की इस हसरत का जिक्र किया और पांच महीने के भीतर दिसंबर, 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस मिशन के लिए 9,023 करोड़ रुपये मंजूर कर दिए। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश होगा, जो मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजेगा। अंतरिक्षयात्री बनने के चारों उम्मीदवारों के नाम भी पिछले दिनों बता दिए गए। भारतीय वायु सेना के पायलटों प्रशांत नायर, अंगद प्रताप, अजित कृष्णन और शुभांशु शुक्ल को यह मौका दिया जा रहा है।

यात्रियों की हिफाजत

2025 तक गगनयान के तहत तीन सदस्यों को तीन दिन के लिए 400 किलोमीटर की कक्षा में भेजा जाएगा और वहां से वापस भी लाया जाएगा।

इसरो में अंतरिक्ष अवसरों पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम कार्यालय के निदेशक एन सुधीर कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमारे मिशन की खासियत यह है कि स्पेस सूट के अलावा सारा हार्डवेयर यानी उपकरण पूरी तरह देश में बने हैं। मानव को भेजने के किसी भी मिशन में सबसे जरूरी होता है यात्रियों को संभालना और उन्हें वापस लाना।’

कुमार के मुताबिक गगनयान में तीन प्रमुख तकनीकी हिस्से हैं – भरोसेमंद प्रक्षेपण यान, रहने लायक क्रू मॉड्यूल और पर्यावरण नियंत्रण तथा जीवन रक्षक प्रणाली (ईसीएलएसएस)। बेंगलूरु में इसरो के मुख्यालय में मानव अंतरिक्ष यात्रा केंद्र इस मिशन को संभाल रहा है।

मिशन के लिए इसरो अपने पुराने और भरोसेमंद हेवी लिफ्ट प्रक्षेपण यान लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलनवीएम-3) का इस्तेमाल करेगा। एलवीएम को जब डिजाइन किया गया था तब उसका मकसद संचार उपग्रहों को भूस्थैतिक कक्षा में छोड़ना था।

मगर उसे गगनयान के तीन चरणों के प्रक्षेपण के लिए नए सिरे से तैयार किया गया है और उन्नत बनाया गया है। पहले चरण में दो ठोस ईंधन बूस्टर होंगे, दूसरे में तरल ईंधन वाले दो इंजन होंगे और अंतिम चरण में तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन से चलने वाला क्रायोजेनिक इंजन होगा।

फरवरी में इसरो ने क्रायोजेनिक इंजन के प्रदर्शन के परीक्षण किए थे और उसे मानव को भेजने के लिए तैयार होने का प्रमाणपत्र दे दिया था। 14 फरवरी को क्रायोजेनिक इंजन का अंतिम वैक्यूम परीक्षण किया गया था, जो तमिलनाडु के महेंद्रगिरि में इसरो के हाई आल्टीट्यूड टेस्ट फैसिलिटी में पूरा हुआ। इंजन उड़ान के लिए पूरी तरह तैयार है या नहीं. यह जांचने के लिए किए गए परीक्षण में भी वह खरा उतरा है।

एलवीएम 3 पहले अंतरिक्ष में पहुंचेगा और उसके बाद वह ऑर्बिट मॉड्यूल को कक्षा में स्थापित करेगा, जिसमें अंतरिक्षयात्री भी मौजूद होंगे। मॉड्यूल के भीतर पृथ्वी जैसा दबाव भरा वातावरण तैयार किया जाएगा, जिसमे अंतरिक्षयात्रियों को रखा जाएगा।

कुमार ने बताया, ‘मॉड्यूल इस बात का ध्यान रखेगा कि अंतरिक्षयात्री को आराम से कैसे रखा जाए, वह कैसे आसपास चल-फिर सकता है, जैव-शौचालय, खाना-पानी, कचरा संभालने जैसा सारा काम यही देखेगा। स्पेस सूट की भी बहुत अहमियत है। जमीन से अंतरिक्ष के लिए कूच करते समय और वहां से वापस आते समय अंतरिक्षयात्री इसी को पहने रहेगा। बाकी समय और बाकी सभी काम करते समय वह स्पेस सूट उतारकर ही रहेगा।’

अंतरिक्षयात्रियों के लिए बनाया क्रू मॉड्यूल दोहरी दीवार से बनाया गया है। इसमें भीतर धातु से बना दबाव वाला ढांचा है और बाहर गर्मी से बचाने वाली प्रणाली से लेस ढांचा है, जिस पर कोई दबाव नहीं होगा। इसमें मनुष्य के काम आने वाले उत्पाद होंगे, जीवन रक्षक प्रणाली होगी और नीचे उतरने की पूरी प्रणाली भी होगी। मॉड्यूल इस तरह बनाया गया है नीचे उतरते और पृथ्वी पर लौटते समय अंतरिक्षयात्री पूरी तरह सुरक्षित रहें।

इसरो इस अभियान के लिए स्पेस सूट शायद रूस से खरीदेगा। भारत के अंतरिक्ष यात्रा के उम्मीदवारों को रूस के ही गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर पर प्रशिक्षण दिया गया है। यह सेंटर रूस की राजधानी मॉस्को से 30 किलोमीटर उत्तर में है। भारतीयों ने रूस में अपना प्रशिक्षण पूरा किया और 2021 में भारत लौट आए।

उसके बाद से इसरो के ह्यूमन स्पेसलिफ्ट सेंटर और भारतीय वायु सेने के इंस्टीट्यूट ऑफ एरोस्पेस मेडिसिन में वे कई सैद्धांतिक और व्यावहारिक (प्रैक्टिकल) सत्रों में हिस्सा लेते रहे हैं। अमेरिका भी गगनयान की तैयारियों में मदद कर रहा है और एक भारतीय अंतरिक्षयात्री को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में भेजने के लिए राजी हो गया है।

अंतरिक्ष में जिंदगी

अंतरिक्ष यान के भीतर जिंदगी ठीकठाक चलाने वाले हालात बनाए रखने में ईसीएलएसएस अहम किरदार अदा करेगा क्योंकि हवा की गुणवत्ता और पानी की आपूर्ति इसी के जिम्मे होगी। तापमान, पानी की निकासी और आग से सुरक्षा का नियंत्रण भी इसी के पास रहेगा।

हवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ऐक्टिवेटेड चारकोल बेड, कैटालिटिक ऑक्सीडाइजर और मॉलिक्यूल वाली छन्नियों का इस्तेमाल किया जाता है। अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र और केबिन के भीतर मौजूद नमी से पानी बनाया जाता है। भारत ने ईसीएलएसएस को खुद ही बनाया है क्योंकि कोई भी दूसरा देश इसकी तकनीक देने के लिए तैयार नहीं था।

एसआरई-1 की सफलता के बाद 18 दिसंबर, 2014 को 20 मिनट की सब-ऑर्बिटल उड़ान के जरिये इसरो ने अंतरिक्षयात्रियों को वातावरण में दोबारा प्रवेश कराने की कला में महारत हासिल कर ली। इस उड़ान को क्रू मॉड्यूल एटमास्फियरिक री-एंट्री एक्सपेरिमेंट का नाम दिया गया।

पिछले साल अक्टूबर में ऐसा और भी उन्नत परीक्षण किया गया, जिसमें तरल से चलने वाले एक ही चरण के परीक्षण यान ने अंतरिक्ष यात्रियों को निकालने में कामयाबी हासिल की। इस परीक्षण में पृथ्वी पर लौटते समय यात्रियों को जल्दी बाहर निकाला जाता है ताकि उन्हें किसी तरह का खतरा न हो।

राकेश शर्मा 1984 में सोवियत संघ के अंतरिक्ष अभियान में शामिल होकर अंतरिक्ष पहुंचने वाले पहले भारतीय बने थे। उसके 40 साल बाद गगनयान मिशन जा रहा है। इसरो के मुताबिक शर्मा गगनयान के लिए चुने गए चारों अंतरिक्ष यात्रियों को अपना अनुभव साझा कर सब कुछ समझा रहे हैं। सब कुछ योजना के हिसाब से चला तो भारत इस साल के अंत में या अगले साल के शुरू में इतिहास रच देगा।

First Published : March 8, 2024 | 11:57 PM IST