रेलवे से जुड़ी जानकारी की अपेक्षा रखने वालों के लिए अपने बलबूते प्रत्येक साल ‘ईयरबुक’ उपलब्ध कराने वाली सुमन चोपड़ा इस काम में 39 वर्षों से जुटी हैं, जो किसी व्यक्ति या निजी संस्था द्वारा तैयार सबसे व्यापक वार्षिक संग्रह है।
हर साल चोपड़ा (73) ‘ईयरबुक’ की लगभग 4,000 से 4,500 प्रतियां प्रकाशित करती हैं। इसके चमकदार पन्नों में विशेष विश्लेषण के साथ-साथ रेलवे से संबंधित हर चीज का सारांश होता है जो पिछले वर्ष हुआ था।
किताब के अब तक के 39 संस्करणों के जरिए पाठक रेलवे के इतिहास को जान सकते हैं। किताब के संस्करणों में 1855 में निर्मित ‘फेयरी क्वीन’ से लेकर वंदे भारत एक्सप्रेस तक के चित्रों का समृद्ध संग्रह है।
चोपड़ा ने कहा, ‘‘रेलवे के बारे में जानकारी को लेकर कुछ अंतराल है जिसे मैं अपने प्रकाशन के माध्यम से भरने की कोशिश करती हूं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे जीवन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर रेलवे अधिकारी की मेज पर मेरी वार्षिक किताब हो और मैं पिछले चार दशकों से इस दिशा में काम कर रही हूं।’’ हालांकि, वह मानती हैं कि बिना किसी सहयोग के परंपरा को जारी रखना कठिन होता जा रहा है। चोपड़ा ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि ताकत कहां से आती है। आगे इस सिलसिले को कायम रखना कठिन है।’’
चोपड़ा ने कहा, ‘‘मुझे रेलवे से सहयोग नहीं मिल रहा है। लोग इसे (ईयरबुक) रेलवे का इनसाइक्लोपीडिया कहते हैं, लेकिन मैं अपने प्रयासों के लिए रेलवे से कुछ मान्यता चाहती हूं।’’ हालांकि कोई भी चीज चोपड़ा को अपने सपने को पूरा करने से नहीं रोक पाई, यहां तक कि व्यक्तिगत परेशानियां भी नहीं। चोपड़ा ने 2021 में जब अपने बेटे को कोविड-19 महामारी में खो दिया, तब भी वह 300 पृष्ठों की ‘ईयरबुक’ प्रकाशित करने में सफल रहीं।
चोपड़ा ने कहा, ‘‘कोविड-19 में मैंने अपने बेटे को खो दिया। वह मेरा बच्चा था और यह (ईयरबुक) भी मेरा बच्चा है। अपने बेटे की याद में, मैं काम करती रहती हूं और मुझे पता है कि उसे खुशी होगी कि उसकी मां समाज के लिए कुछ सकारात्मक कर रही है।’’
चोपड़ा को उम्मीद है कि उनकी वार्षिक किताब के 40वें संस्करण को आखिरकार वह पहचान मिलेगी जिसकी वह हकदार है। चोपड़ा के पति विनोद ने कहा कि उनकी पत्नी अपने परिवार और बच्चों की पढ़ाई का ख्याल रखते हुए वार्षिकी पर काम करने के लिए समय निकालने में कामयाब रहीं।
विनोद ने कहा, ‘‘हमारी शादी के दस साल बाद सुमन ने अपना प्रकाशन व्यवसाय शुरू किया और रेलवे पत्रिका निकाली। वह पिछले 39 वर्षों से लगातार इसे प्रकाशित कर रही हैं। उन्हें इस काम का जुनून है, भले ही इससे कोई लाभ न हो।’’ चोपड़ा रेलवे बोर्ड के शीर्ष अधिकारियों, विभिन्न जोन और रेल कारखानों के महाप्रबंधकों और मंडल रेल प्रबंधकों को अपनी वार्षिक किताब की प्रतियां भेजती हैं।
चोपड़ा के काम ने उनके 12 वर्षीय पोते विवान को भी प्रेरित किया है, जो जूता रीसाइक्लिंग का छोटा व्यवसाय चलाता है। विवान ने कहा, ‘‘मेरी दादी मुझे अपना व्यवसाय चलाने की सलाह देती हैं। मैंने उनसे सीखा है कि जब कोई चीज आपको प्रेरित करती है, तो आपको उसका पीछा करना चाहिए और कभी हार नहीं माननी चाहिए।’’