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Indus Waters Treaty suspended: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में मंगलवार को 26 पर्यटकों की हत्या के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाया और सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CSS) की बैठक में यह फैसला लिया गया। पाकिस्तान की लाइफलाइन कहे जाने वाली सिंधु और उसकी सहायक नदियों से जुड़े इस जरूरी संधि को स्थगित कर भारत ने एक तरह से पाकिस्तान पर ‘वाटर स्ट्राइक’ किया है। इससे वहां पर पानी-बिजली का संकट गहरा सकता है।
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर भारत और पाकिस्तान के बीच नौ वर्षों तक चली बातचीत के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षर किए गए थे। संधि के प्रावधानों के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली की “पूर्वी नदियों”— सतलुज, ब्यास और रावी — का सारा जल भारत के “बिना किसी रोक-टोक” उपयोग के लिए उपलब्ध रहेगा। वहीं, पाकिस्तान को “पश्चिमी नदियों” — सिंधु, झेलम और चिनाब — से जल प्राप्त होगा।
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पाकिस्तान की लाइफ लाइन कही जाने वाली सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी पर भारत का नियंत्रण होते ही वहां के लोग पानी के लिए तरस जाएंगे। एक अनुमान के मुताबिक, 21 करोड़ से ज्यादा आबादी की जल जरूरतों की पूर्ति इन्हीं नदियों पर निर्भर करती है। पाकिस्तान के प्रमुख शहर जैसे कराची, लाहौर और मुल्तान सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल पर निर्भर रहते हैं। पाकिस्तान के तरबेला और मंगला जैसे पॉवर प्रोजेक्ट इस नदी पर निर्भर करते हैं। पाकिस्तान की शहरी जल आपूर्ति ठप्प हो सकती है। बिजली उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है।
पाकिस्तान की 80% खेती योग्य भूमि (16 मिलियन हेक्टेयर) सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है। सिंधु जल संधि से मिलेने वाले पानी का 93% हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके बिना वहां खेती करना संभव नहीं है। सिंधु जल संधि के स्थगित होने पर पाकिस्तान में खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
छह साल से ज्यादा समय तक भारत के सिंधु जल आयुक्त रहे और सिंधु जल संधि (IWT) से संबंधित कार्यों से जुड़े रहे प्रदीप कुमार सक्सेना ने कहा कि भारत के पास कई विकल्प हैं क्योंकि वह ऊपरी हिस्से (upper riparian) में आता है। सक्सेना ने पीटीआई से कहा, “यदि सरकार निर्णय लेती है, तो यह संधि को समाप्त करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है।”
सक्सेना बताते हैं कि भारत तुरंत पाकिस्तान के साथ जल प्रवाह संबंधी डेटा साझा करना बंद कर सकता है। सिंधु और इसकी सहायक नदियों के जल उपयोग को लेकर भारत पर अब कोई डिजाइन या संचालन से जुड़ी पाबंदी नहीं रहेगी। इसके अलावा, भारत अब पश्चिमी नदियों — सिंधु, झेलम और चिनाब — पर जल भंडारण (स्टोरेज) भी बना सकता है।”
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सक्सेना ने आगे कहा कि भारत जम्मू-कश्मीर में निर्माणाधीन दो जलविद्युत परियोजनाओं — झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर किशनगंगा परियोजना और चिनाब पर रैटल परियोजना — पर पाकिस्तानी अधिकारियों के निरीक्षण दौरे भी रोक सकता है। उन्होंने कहा, “भारत किशनगंगा परियोजना पर रेजरवॉयर फ्लशिंग (Reservoir Flushing) कर सकता है। यह एक तकनीक है जिसके तहत बांध में जमा गाद को हटाने के लिए निचले स्तर के आउटलेट्स से पानी छोड़ा जाता है, जिससे गाद नीचे की ओर बह जाती है और बांध की आयु बढ़ जाती है।”
संधि के तहत, रेजरवॉयर फ्लशिंग के बाद उसका पुनः भराव अगस्त महीने — यानी मॉनसून की चरम अवधि— में किया जाना होता है। लेकिन अब जब संधि को निलंबित कर दिया गया है, तो यह प्रक्रिया किसी भी समय की जा सकती है। सक्सेना कहते हैं, यदि यह काम उस समय किया जाए जब पाकिस्तान में बुआई का मौसम शुरू होता है, तो इसका गंभीर असर पड़ सकता है, खासकर तब जब पाकिस्तान के पंजाब का बड़ा हिस्सा सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर सिंचाई के लिए निर्भर है।
सिंधु जल संधि (IWT), जिसने अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच चार युद्ध, दशकों तक चले सीमा पार आतंकवाद और दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखा था, उसे बुधवार को पहली बार भारत ने निलंबित कर दिया। मगर इससे एक बड़ा सवाल जन्म लेता है कि क्या भारत एकतरफा सिंधु जल संधि को समाप्त कर सकता हैं? आइए इसे समझते हैं…
सिंधु जल संधि में बाहर निकलने (एग्जिट) का कोई प्रावधान नहीं है, यानी भारत या पाकिस्तान में से कोई भी इसे एकतरफा रूप से कानूनी तौर पर समाप्त नहीं कर सकता। इस संधि की कोई समाप्ति तिथि नहीं है, और इसमें किसी भी प्रकार का संशोधन दोनों पक्षों की सहमति से ही संभव है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि इस संधि से बाहर नहीं निकला जा सकता, लेकिन इसमें विवाद समाधान की एक प्रक्रिया मौजूद है। अनुच्छेद IX और परिशिष्ट F एवं G में शिकायतों को उठाने की प्रक्रिया बताई गई है — सबसे पहले स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) के समक्ष, फिर एक निष्पक्ष विशेषज्ञ के पास, और अंत में मध्यस्थों के एक फोरम के समक्ष।
प्रदीप कुमार सक्सेना ने कहा, “हालांकि इस संधि में इसे समाप्त करने का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन संधियों के कानून पर आधारित वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 62 के तहत पर्याप्त आधार मौजूद है, जिसके तहत ऐसी संधि को खारिज किया जा सकता है यदि उन परिस्थितियों में बुनियादी बदलाव आ गया हो, जो संधि के समय मौजूद थीं।” उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष भारत ने पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजा था, जिसमें संधि की “समीक्षा और संशोधन” की मांग की गई थी।
भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित किए जाने पर पाकिस्तान की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
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स्वतंत्रता के समय, भारत और पाकिस्तान के बीच जो सीमा रेखा खींची गई, वह सीधे सिंधु नदी घाटी (Indus Basin) के बीचों बीच से गुजरी। इसके परिणामस्वरूप भारत ऊपरी इलाका (upper riparian) बन गया और पाकिस्तान निचला इलाका (lower riparian)। पाकिस्तान के पंजाब में सिंचाई के लिए जो नहरें इस्तेमाल होती थीं, वे दो बड़ी परियोजनाओं पर निर्भर थीं— एक रावी नदी पर माधोपुर और दूसरी सतलुज नदी पर फिरोजपुर। आजादी के बाद ये दोनों जगहें भारत के हिस्से में आ गईं।
इस प्रकार दोनों देशों के बीच मौजूदा सिंचाई सुविधाओं से पानी के उपयोग को लेकर विवाद पैदा हो गया। यह विवाद इंटरनेशनल बैंक ऑफ रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (वर्ल्ड बैंक) की मध्यस्थता में हुई बातचीत के बाद सुलझा, और अंततः 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई।
सिंधु जल संधि के अनुसार, पूर्वी नदियों— सतलुज, ब्यास और रावी— जिनका औसत वार्षिक जल प्रवाह लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) है, उनका पूरा जल भारत को बिना किसी रोक-टोक के उपयोग के लिए आवंटित किया गया है। वहीं, पश्चिमी नदियों— सिंधु, झेलम और चिनाब— जिनका औसत वार्षिक प्रवाह लगभग 135 MAF है, का अधिकांश जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है।
हालांकि, भारत को पश्चिमी नदियों के जल का उपयोग घरेलू जरूरतों, गैर-खपत उपयोग (non-consumptive use), कृषि कार्यों और जल विद्युत उत्पादन (hydro-electric power) के लिए करने की अनुमति है। पश्चिमी नदियों से जल विद्युत उत्पादन का अधिकार भारत को बिना रोक-टोक के प्राप्त है, बशर्ते यह संधि में निर्धारित डिजाइन और संचालन की शर्तों का पालन करता हो। संधि में यह भी कहा गया है कि भारत पश्चिमी नदियों पर अधिकतम 3.6 MAF तक जल भंडारण (storage) भी बना सकता है।
(एजेंसी के इनपुट के साथ)