प्रतीकात्मक तस्वीर
सॉफ्टवेयर ऐज ए सर्विस (सास) उत्पाद मुहैया कराने वाली एमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ओरेकल, आईबीएम और सेल्सफोर्स जैसी कई विदेशी कंपनियों को वित्त वर्ष 2021-22 और 2022-23 के लिए आयकर विभाग से कर मांग का नया नोटिस मिला है। सूत्रों के अनुसार कर विभाग ने इन कंपनियों को मूल्यांकन आदेश जारी किए हैं। इसके तहत इन कंपनियों द्वारा भारतीय ग्राहकों से अर्जित आय को भारतीय कर कानून के अंतर्गत ‘तकनीकी सेवाओं के लिए शुल्क’ (एफटीएस) माना जाएगा। तकनीकी, प्रबंधकीय या परामर्श सेवा के लिए किसी भी भुगतान को एफटीएस माना जाता है और भारत-अमेरिका दोहरा कराधान निषेध संधि के तहत इस तरह की आय पर 15 फीसदी कर लगाया जाता है।
इस बारे में जानकारी के लिए संबंधित कंपनियों के साथ-साथ केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को ईमेल भेजे गए मगर खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया। 2021 से पहले इस तरह के भुगतानों को अक्सर ‘रॉयल्टी’ माना जाता था। हालांकि इंजीनियरिंग एनालिसिस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस मामले में 2021 में एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय कहा था कि मानक, ऑफ-द-शेल्फ सॉफ्टवेयर के लिए भुगतान भारतीय कानून या कर संधियों के तहत रॉयल्टी के रूप में कर योग्य नहीं हैं।
शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद कर विभाग ने इस बात की जांच शुरू कर दी है कि क्या भारतीय उपयोगकर्ताओं द्वारा विदेशी सास प्रदाताओं को किए गए भुगतान पर एफटीएस के रूप में कर लगाया जा सकता है। घटनाक्रम से अवगत एक व्यक्ति ने कहा, ‘आयकर विभाग ने अब वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2023 के लिए कर मांग का प्रस्ताव करते हुए मूल्यांकन आदेश पारित कर दिया है जबकि कई कंपनियों ने उस अवधि के दौरान इन लेनदेन पर 2 फीसदी इक्वलाइजेशन शुल्क का भुगतान पहले ही कर दिया है। इससे दोहरा कराधान का मामला बन सकता है।’
एक कर विशेषज्ञ ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि वित्त मंत्रालय का तर्क है कि ऐसी कंपनियों ने स्वैच्छिक आधार पर इक्वलाइजेशन शुल्क का भुगतान किया है जबकि आयकर कानून के अनुसार उन्हें एफटीएस पर कर का भुगतान करना अनिवार्य है। भारत ने 2020 में उन प्रवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों पर 2 फीसदी इक्वलाइजेशन शुल्क की शुरुआत की थी जिनके भारत में ज्यादा उपयोगकर्ता थे मगर भौतिक उपस्थिति नहीं थी। इस शुल्क का उद्देश्य बैकस्टॉप कर के रूप में था। यह उन जगहों पर लागू होता है जहां आयकर प्रावधानों और कर संधियों को लागू नहीं किया जा सकता था। हालांकि सरकार ने अप्रैल 2024 में इस शुल्क को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर सहमति जताई है।
विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि नए कर मांग से दोहरा कराधान का मामला बन सकता है क्योंकि कंपनियां सकल प्राप्तियों पर इक्वलाइजेशन शुल्क का भुगतान कर चुकी हैं और अब उन्हें उसी आमदनी पर आयकर मांग का सामना करना पड़ रहा है। उनके पास क्रेडिट का दावा करने के लिए कोई स्पष्ट तंत्र भी नहीं है। कर विशेषज्ञों का तर्क है कि सास सेवाएं स्वचालित, मानकीकृत होती हैं और इनमें मानव इनपुट शामिल नहीं होता है तथा बौद्धिक संपदा का हस्तांतरण भी नहीं होता है। ऐसे में भारतीय कानून या भारत-अमेरिका कर संधि के तहत इसे रॉयल्टी या एफटीएस नहीं माना जा सकता है।
केपीएमजी में पार्टनर हिमांशु पारेख ने कहा, ‘इंजीनियरिंग एनालिसिस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सास कंपनियों की आय रॉयल्टी के बराबर नहीं होनी चाहिए। साथ ही सास ग्राहकों को प्रदान की जाने वाली एक मानक सुविधा है, ऐसे में आय को एफटीएस के रूप में माना जाना चाहिए।’ कानून के विशेषज्ञों का मानना है कि प्रभावित कंपनियां मूल्यांकन आदेश को चुनौती दे सकती हैं। एक अन्य विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘जब तक सीबीडीटी आयकर विभाग की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए दिशानिर्देश जारी नहीं करता, तब तक इस मामले में नए मुकदमेबाजी की संभावना है और भारत में संचालित विदेशी डिजिटल व्यवसायों के लिए अनिश्चितता बढ़ सकती है।’