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पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद राजनीति के एक युग का अंत हो गया है। गुरुवार को बादल का अंतिम संस्कार संपन्न होगा। शिरोमणि अकाली दल में बादल की टक्कर का कोई नेता नहीं था।
उनमें सिखों के धार्मिक नेताओं के साथ संवाद करने का राजनीतिक एवं नैतिक सामर्थ्य था। वह मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के साथ भी संतुलन स्थापित करने और राजनीतिक गठबंधन तैयार करने में भी सिद्धहस्त थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को बादल को अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए चंडीगढ़ में शिरोमणि अकाली दल के कार्यालय पहुंचे। बादल का पार्थिव शरीर पार्टी कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। सरकार ने दो दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। पिछले कई वर्षों से पार्टी का कामकाज संभालने वाले बादल के पुत्र सुखबीर सिंह बादल वहां उपस्थित नहीं थे। वह इस सप्ताह के शुरू में कोविड संक्रमित हो गए थे।
मगर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अकाली दल के बीच पर्दे के पीछे सुलह के लिए बातचीत शुरू हो चुकी है। वर्ष 2020 में किसान आंदोलन के बाद दोनों दलों के बीच लंबे समय से चला आ रहा गठबंधन समाप्त हो गया था। बुधवार सुबह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि ने अकाली दल के शीर्ष नेताओं से बातचीत की जिसमें दोनों दलों के बीच बैठक आयोजित करने की गुंजाइश पर चर्चा की हुई थी। दोनों दलों के बीच समझौते से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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हालांकि, फिलहाल ऐसा होना मुमकिन नहीं लग रहा है। इसका कारण यह है कि अकाली दल और भाजपा 10 मई को जालंधर लोकसभा सीट के उप-चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान इस सीट से सांसद संतोख सिंह चौधरी के आकस्मिक निधन के बाद यह सीट रिक्त हो गई थी।
अकाली दल के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘जालंधर सीट के लिए होने वाला उप-चुनाव काफी अहम है क्योंकि यह सुखबीर सिंह बादल की नेतृत्व क्षमता के लिए अग्नि परीक्षा होगी। अगर हम यह चुनाव जीत गए तो एस एस ढींढसा और बीबी जागिर कौर दोबारा पार्टी में लौटने पर विचार कर सकते हैं।
जालंधर में हिंदू और सिख मतों का पूर्ण रूप से ध्रुवीकरण हो चुका है। भाजपा ने जालंधर सीट पर अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। अगर भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा तो इससे यह साबित होगा कि उसे राज्य में अकाली दल के साथ की सख्त जरूरत है।’
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जालंधर लोकसभा में नौ विधानसभा सीट हैं जिनमें पांच कांग्रेस और शेष सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) के पास हैं। जालंधर परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है और पार्टी इस सीट से कई बार विजयी रही है। यहां रविदास समुदाय का दबदबा है। रविदास समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया है। अकाली दल ने विधायक सुखविंदर कुमार सुक्खी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
कांग्रेस की तरफ से चौधरी संतोख सिंह की पत्नी करमजीत कौर चौधरी चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने पूर्व स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल के पुत्र इंदर अटवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है। अटवाल अकाली दल छोड़कर भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं। यह भी भाजपा और अकाली दल के बीच मतभेद का एक कारण है। आप सरकार की प्रतिष्ठा भी इस उप-चुनाव से जुड़ी हुई है। कांग्रेस में रह चुके एवं जालंधर में दलित समुदाय के जाने-माने चेहरे सुशील कुमार रिंकू आप के उम्मीदवार हैं।