Delhi Election: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की राजनीतिक उठापटक ‘रेवड़ी संस्कृति’ को बढ़ावा देने के लिए अक्सर बदनाम रही है। इसकी ठोस वजह भी है क्योंकि ‘रेवड़ी संस्कृति’ सभी राजनीतिक दलों के चुनावी वादों के नस-नस में समा गई है। रेवड़ी संस्कृति यानी चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए जनता से किए जाने वाले लोकलुभावन वादों की आलोचना भी होती रही है। इस आलोचना के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि लोकलुभावन वादों के चक्कर में बुनियादी ढांचे के विकास की जगह सामाजिक कल्याण योजनाओं को बेवजह अधिक तरजीह दी जा रही है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिल्ली की आधारभूत संरचना में कमियां साफ उजागर होने लगी हैं। इससे यह तर्क और मजबूत हो गया है कि सामाजिक कल्याण योजनाओं को वरीयता देने के चक्कर में बुनियादी ढांचा दरकने लगा है।
शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) सरकारों के प्रदर्शन का आकलन करने पर पता चलता है कि अंतर केवल आंकड़ों में ही नहीं बल्कि यह दोनों सरकारों की सोच में भी स्पष्ट झलक रहा है। सरकार की सोच में अंतर के कारण प्राथमिकताएं भी अलग-अलग रही हैं। शीला दीक्षित सरकार के जमाने में वर्ष 2004 से 2013 के दौरान दिल्ली में राजस्व व्यय में लगातार तेजी दिखी थी। उस दौरान यह लगभग 5,000 करोड़ से बढ़कर 2013 तक 22,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया था। वर्ष 2004 में कुल व्यय में राजस्व व्यय का हिस्सा महज 45 प्रतिशत के आसपास था, जो 2013 में बढ़कर करीब 65 प्रतिशत हो गया।
दीक्षित के कार्यकाल में राजस्व व्यय में तेजी दिखी मगर बुनियादी परियोजनाओं के लिए भारी भरकम रकम देने के लिए सजग प्रयास भी दिखे थे। वर्ष 2007-08 में पूंजीगत आवंटन में भारी तेजी दिखी और यह कुल व्यय का 20 प्रतिशत से भी अधिक हो गया। दीक्षित सरकार के कार्यकाल के दौरान यह लगातार दो अंक में रहा। फ्लाईओवर का निर्माण, दिल्ली मेट्रो तंत्र का विस्तार और बुनियादी सुविधाओं का विकास आदि दीक्षित सरकार के काम-काज की सूची में शीर्ष पर थे।
वर्ष 2014 में आप के सत्ता में आने के बाद दिल्ली में व्यय से जुड़ी प्राथमिकता पूरी तरह बदल गई। आप सरकार में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की जगह सामाजिक कल्याण योजनाओं पर दोनों हाथों से खर्च होने लगे। राजस्व व्यय में लगातार इजाफा होता गया और यह वित्त वर्ष 2024-25 के बजट अनुमानों का लगभग 80 प्रतिशत तक पहुंच गया। वर्ष 2017-18 के दौरान तो इसने 82.5 प्रतिशत का स्तर छू लिया था। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल सितंबर 2014 तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज थे। केजरीवाल के बाद आतिशी मुख्यमंत्री के रूप में दिल्ली की बागडोर संभाल रही हैं।
निःशुल्क जल, सस्ती बिजली, स्वास्थ्य सेवाओं एवं शिक्षा क्षेत्र में सुधार दिल्ली की राजकोषीय नीति का अहम हिस्सा बन गए। मगर यह सब पूंजीगत आवंटन को दरकिनार करते हुए किया गया। कुल व्यय के प्रतिशत के रूप में पूंजीगत व्यय एक अंक में आ गया और 2018-19 में 7.06 प्रतिशत के सबसे निचले स्तर तक सरक गया। अनुमान है कि वर्ष 2024-25 में पूंजीगत आवंटन कुल व्यय का महज 7.79 प्रतिशत के आस-पास रह सकता है। वर्ष 2024-25 में पूंजीगत आवंटन 5,919 करोड़ रुपये रखने का प्रस्ताव है, जो वर्ष 2023-24 के संशोधित अनुमान से 29 प्रतिशत कम है।
दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार की तुलना में आप के कार्यकाल में दिल्ली का राजस्व अधिशेष लगातार कम रहा है। दीक्षित के कार्यकाल में राजस्व अधिशेष तुलनात्मक रूप से अधिक था और यह वर्ष 2010-11 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 5.88 प्रतिशत तक पहुंच गया था।
आप सरकार के दौरान राजस्व अधिशेष में भारी कमी आई। वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान यह जीएसडीपी का महज 0.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है। मगर आप सरकार में राजकोषीय घाटा तुलनात्मक रूप से कम रहा है जिसका कारण पूंजीगत आवंटन में कमी है। कुछ वर्षों में राजकोषीय संतुलन में मामूली सुधार दिखा मगर राजकोषीय स्थिरता बरकरार रहने का मुख्य कारण बुनियादी ढांचे पर खर्च में कटौती थी। आप सरकार के दौरान सरकारी कर्ज में भी कमी आई और यह जीएसडीपी का लगातार 2 प्रतिशत से कम रहा जबकि इसकी तुलना में दीक्षित सरकार में यह 2006-07 में 18.9 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया था।
दिल्ली में विधान सभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है और अब राजनीतिक तापमान बढ़ता ही जाएगा। विभिन्न राजनीतिक दल जनता का समर्थन हासिल करने के लिए लोकलुभावन योजनाओं और चुनावी रेवड़ी की घोषणाएं करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। आप सरकार लगातार चौथी बार जीत दर्ज करने की जुगत में भिड़ गई है।
साल 2025 में दिल्ली विधान सभा चुनाव से पहले आप ने वादों की झड़ी लगा दी है। इन वादों में बुजुर्ग पेंशन योजना की जद में 5 लाख से अधिक लोगों को शामिल करने (80,000 नए लोग जोड़ने) और आवेदनों के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू करना भी शामिल हैं। पार्टी ने ‘पुजारी ग्रंथी सम्मान योजना’ शुरू करने का भी वादा किया है जिसमें हिंदू मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारा ग्रंथियों के लिए हरेक महीने 18,000 रुपये मासिक अनुदान देने की बात कही गई है।
केजरीवाल की पार्टी ने सालाना 3 लाख से कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को वित्तीय मदद देने का भी वादा किया है। आप का कहना है कि उसे आगामी चुनाव में जीत मिली तो इन महिलाओं को हरेक महीने 1,000 रुपये की जगह अब 2,100 रुपये दिए जाएंगे। पार्टी ने वादा किया है कि वह ‘डॉ. आंबेडकर सम्मान योजना’ के अंतर्गत शीर्ष अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले दलित छात्रों की फीस, उनकी यात्रा और ठहरने का खर्च का वहन करेगी।
कांग्रेस भी जनता-जनार्दन को साधने के लिए वादे करने में पीछे नहीं रहना चाहती है। पार्टी ने कहा है कि अगर वह दिल्ली में सत्ता में आई तो प्रत्येक महीने 400 यूनिट तक निःशुल्क बिजली देगी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आप सरकार की लोकप्रिय योजनाएं जारी रखने का वादा किया है। भाजपा ने कहा है कि अगर वह सत्ता में आई तो वह निःशुल्क बिजली, पानी पर सब्सिडी और महिलाओं के लिए निःशुल्क बस सेवाओं जैसी योजनाएं पहले की तरह ही जारी रहेंगी। इन लोकलुभावन योजनाओं को पूरा करने में राजनीतिक दलों को इसलिए कोई मशक्कत पेश नहीं आएगी क्योंकि दिल्ली की राजकोषीय स्थिति मजबूत है। इसका कारण यह है कि दिल्ली की कर राजस्व जुटाने की व्यवस्था काफी मजबूत है और ये आंकड़े लगातार ऊंचे स्तरों पर रहे हैं।
मोटा कर राजस्व जुटाने की क्षमता मौजूद होने के कारण दिल्ली सरकार इन लोकलुभावन योजनाओं के लिए धन का बंदोबस्त बिना किसी खास कठिनाई के कर सकती है। आंकड़ों की मदद से इसे समझने की कोशिश करें तो राजस्व संग्रह के प्रतिशत के रूप में दिल्ली का कर राजस्व पिछले 20 वर्षों की अवधि के दौरान ऊंचे स्तरों पर (74 प्रतिशत से 92 प्रतिशत के बीच) रहा है। यानी साफ है कि राज्य सरकार अपनी योजनाएं आराम से चला सकती हैं और कर्ज पर उसकी निर्भरता काफी कम रहेगी।
बेशक अपनी वित्तीय ताकत के दम पर सरकार सामाजिक योजनाएं जारी रख सकती है मगर सरकार चलाने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पूंजीगत आवंटन कम रखना और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर अधिक ध्यान कुछ समय तक तो परेशानी का सबब नहीं बनेगा मगर बुनियादी ढांचे से जुड़ी चुनौतियों से मुंह मोड़ने से शहर के विकास की गति पर नकारात्मक असर होगा।