भारत में बनी दवाओं के सेवन से पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया में कथित रूप से बच्चों की मौत के बाद उपजे विवाद के बीच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने दवा विनिर्माता इकाइयों की जांच शुरू की है। सीडीएससीओ ने राज्यों के प्राधिकारियों के साथ मिलकर देश भर की चिह्नित दवा फैक्टरियों की जांच करने का फैसला किया है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि संयुक्त जांच का मकसद देश में उपलब्ध दवाओं की सुरक्षा, असर और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना है। बहरहाल यह पहला मौका नहीं है, जब इस तरह से व्यापक पैमाने पर संयुक्त जांच होने जा रही है। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में हिमाचल प्रदेश के राज्य औषधि नियंत्रक नवनीत मारवाह ने कहा कि इस तरह की संयुक्त जांच 2016 में भी की गई थी।
मारवाह ने कहा, ‘2016 में भी कुछ राज्यों की फैक्टरियों की जांच की गई थी। इसका मकसद दवाओं की गुणवत्ता की जांच करना है और गहराई से अध्ययन किया जा रहा है। औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम में जोखिम को लेकर जांच के प्रावधान हैं। इस कानून के मुताबिक समय समय पर जांच की जाती है।’ मारवाह ने कहा कि इस तरह की जांच एक साथ पूरे देश भर में की जाती है। 2016 में करीब ढाई महीने में यह किया गया था और चिह्नित फैक्टरियों की पूरी जांच की गई थी।
उद्योग के सूत्रों का अनुमान है कि भारत में 10,500 दवा विनिर्माण फैक्टरियां हैं। इनमें से ज्यादातर हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश आदि जैसे केंद्रों पर स्थित हैं। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में 642 इकाइयां हैं और 40 राज्य ड्रग इंसपेक्टर हैं। मारवाह ने कहा, ‘हर राज्य ने सेंट्रल ड्रग इंस्पेक्टरों को भी तैनात किया है। इस तरह से संयुक्त जांच कराने में मानव संसाधन की कमी नहीं आएगी।’
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के दिशानिर्देशन में मानक परिचालन प्रक्रिया के तहत इस समय देश भर में संयुक्त जांच का आयोजन हो रहा है। बयान में कहा गया है कि निरीक्षण के पहले मानक गुणवत्ता, मिलावटी या नकली दवाओं के निर्माण के जोखिम वाली विनिर्माण इकाइयों के राष्ट्रव्यापी निरीक्षण के लिए कार्ययोजना बनाई गई थी।
दो संयुक्त औषधि नियंत्रकों की समिति का गठन सीडीएससीओ मुख्यालय में किया गया है, जो जांच की प्रक्रिया की निगरानी, रिपोर्टिंग और उसके बाद कार्रवाई करेंगे, जिससे कि औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 का अनुपालन सुनिश्चित हो सके। इससे देश में दवाओं के उत्पादन में अनुपालन गुणवत्ता का उच्च स्तर सुनिश्चित हो सकेगा।
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स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान में कहा गया है, ‘औषधि नियंत्रण प्रशासन को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 का अनुपालन विनिर्माण कंपनियां करें।’ बहरहाल उद्योग के सूत्रों ने संकेत दिए कि भारत के केंद्रीय औषधि नियामक कार्यालयों और राज्य स्तर पर मानव संसाधन की कमी नहीं है।
आरए माशेलकर समिति के मुताबिक हर 50 विनिर्माण इकाइयों पर एक ड्रग इंसपेक्टर और 200 डिस्ट्रीब्यूशन रिटेलर्स पर एक इंसपेक्टर होना चाहिए। इंडियास्पेंड की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों में ड्रग इंसपेक्टरों के स्वीकृत तमाम पद खाली पड़े हैं। बहरहाल भारत के मैडेन फार्मास्यूटिकल्स में विनिर्मित कफ सिरप के इस्तेमाल से गांबिया में कथित रूप से 70 बच्चों की मौत हो गई, जो अभी सुर्खियों में रहा है। पिछले सप्ताह गांबिया की संसदीय समिति ने भारत के कफ सिरप के भारतीय विनिर्माता को दंडित करने की सिफारिश की थी।