कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों के बारे में जताई जा रही चिंताओं के बीच डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को कोविड वैक्सीन के बूस्टर डोज पर जोर देने के बजाय अधिक जोखिम वाले लोगों को बचाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह बात ऐसे समय में कही गई है जब भारत में 8 जून तक कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की संख्या 6,133 दर्ज की गई। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के कोविड डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, 28 अप्रैल को यह आंकड़ा महज 35 था।
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. के. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि इस संक्रमण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील लोगों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बुजुर्गों, मरीजों और कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों को कोविड के प्रति सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने की जरूरत है ताकि वे संक्रमित न हों। उन्हें मास्क पहनने और भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचने पर ध्यान देने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र कोविड-19 टास्क फोर्स की रणनीतिकार और सलाहकार (सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सेवा) सबाइन कापसी ने कहा, ‘पहले के संक्रमण एवं प्राथमिक टीकारण के व्यापक प्रभाव को देखते हुए ऐसा लगता है कि सभी लोगों के लिए बूस्टर डोज की तब तक कोई खास जरूरत नहीं है जब तक कि कोई गंभीर नया वेरिएंट न दिखे।’ रेड्डी ने कहा कि बूस्टर डोज लेना वैकल्पिक हो सकता है लेकिन अभी उसे अनिवार्य बनाने की जरूरत नहीं है। सरकार के कोविन डैशबोर्ड के अनुसार, देश में अब तक कोविड-19 टीकों की 2.2 अरब से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं। इनमें मुख्य रूप से एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन शामिल हैं। पहली खुराक की संख्या 1.02 अरब और दूसरी खुराक की 95.1 करोड़ रही, लेकिन अब तक 22.7 करोड़ लोगों को ही बूस्टर डोज दी गई है।
इस मामले से अवगत स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि फिलहाल केंद्र सरकार ने सभी लोगों के लिए इसे एक अभियान बनाने का कोई निर्देश नहीं दिया है। उन्होंने कहा, ‘डॉक्टर मरीजों की जरूरतों के आधार पर बूस्टर डोज लेने की सिफारिश कर सकते हैं।’
मगर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया कोविड लहरों के दौरान हर्ड इम्युनिटी ने उसकी गंभीरता और प्रसार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। मगर यह भविष्य में होने वाले उछाल को रोकने के लिए अपने आप में पर्याप्त नहीं हो सकती है, खासकर कमजोर लोगों के बीच।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. समीर भाटी ने कहा कि देश ने एक व्यवस्थित दृष्टिकोण के साथ पहली और दूसरी खुराक के जरिये व्यापक कवरेज हासिल किया है, लेकिन समय के साथ-साथ प्रतिरोधक क्षमता स्वाभाविक तौर पर कम हो जाती है। उन्होंने कहा, ‘इससे कोविड के प्रति संवेदनशील लोगों की अच्छी खासी आबादी तैयार हो गई होगी जिनकी प्रतिरोधक क्षमता पिछले 12 से 18 महीनों के दौरान काफी काफी कम हो गई होगी।’ अब कोविड-19 के संक्रमण मामलों में मौसमी उतार-चढ़ाव दिखने की उम्मीद है। डॉक्टरों का कहना है कि मौजूदा उछाल वायरस के अन्य मौसमी संक्रमण जैसे कि इन्फ्लूएंजा के साथ फैलने का उदाहरण है। भारत में ओमिक्रॉन वेरिएंट के कारण कोविड संक्रमण के मामलों में मौजूदा तेजी दिख रही है। इसकी पहचान सबसे पहले 2021 के आखिर में हुई थी। इसके उभरते सब-वेरिएंट जैसे एनबी.1.8.1 और एलएफ.7 शामिल हैं, जो जेएन.1 श्रेणी के हैं।
गुरुग्राम के सीके बिरला हॉस्पिटल में कंसल्टेंट (इंटरनल मेडिसिन) तुषार तयाल ने कहा कि बूस्टर डोज की लॉजिस्टिकल एवं वित्तीय लागत के मद्देनजर भारत को जोखिम आधारित दृष्टिकोण अपनाने से काफी फायदा हो सकता है।